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'''मौलाना मज़हरुल हक़''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''maulana mazharul haque'', जन्म- [[22 दिसंबर]], [[1866 ]], बाहपुरा गांव, [[पटना]], [[गुजरात]]; मृत्यु- [[2 जनवरी]], [[1950]]) देश के समर्पित स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर शिक्षाविद, [[बिहार]] के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्त्ता और लेखक थे। ये [[असहयोग आंदोलन]] और [[खिलाफत आंदोलन]] के समर्थक थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन=|पृष्ठ संख्या=588|url=}}</ref>
==जन्म एंव शिक्षा==
मज़हरुल हक़ का जन्म पटना जिले के बाहपुरा गांव में 22 दिसंबर, 1866 ई. को एक धनी जमींदार [[परिवार]] में हुआ था। आरंभिक शिक्षा के बाद कुछ समय तक पटना और [[लखनऊ विश्वविद्यालय]] में पढ़ने के बाद उच्च शिक्षा के लिए वे [[इंग्लैंड]] चले गए। उन्हीं [[दिन|दिनों]] [[गांधी जी]] भी वहां छात्र थे। तभी से दोनों में परिचय हुआ जो जीवन-भर बना रहा। बैरिस्टर बनने के बाद मौलाना मज़हरुल हक़  ने छपरा में वकालत शुरू की।
==सार्वजनिक कार्य==
साथ ही मौलाना मज़हरुल हक़ सार्वजनिक कार्यों में भी भाग लेने लगे। बिहार में प्रथम राजनैतिक सम्मेलन आयोजित करने वालों में ये प्रमुख थे। मौलाना मज़हरुल हक़ ने बिहार को अलग प्रदेश बनाने की मांग की। (उस समय बिहार बंगाल प्रदेश के अंतर्गत था) [[पटना]] में विश्वविद्यालय की स्थापना पर जोर दिया। [[मुस्लिम लीग]] की स्थापना में सहयोग देने के साथ-साथ उन्होंने [[1915]] की मुंबई कांग्रेस के समय हुए लीग के अधिवेशन की अध्यक्षता भी की थी। यहीं पर मौलाना मज़हरुल हक़ ने गांधी जी को पटना आने पर अपने घर पर टिकने का निमंत्रण दिया था। वे होमरूल लीग की बिहार शाखा के अध्यक्ष भी रहे।
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'बिहार विद्यापीठ', 'बिहार नेशनल कॉलेज' और प्रसिध 'सदाक़त आश्रम' की स्थापना का श्रेय मज़हरुल हक़ को है।
====लेखक====
मज़हरुल हक़ ने 'मदर लैण्ड' नामक साप्ताहिक पत्र निकाला था। उसके एक लेख को आपत्तिकनक मानकर जब सरकार ने उन पर जुर्माना किया तो हक़ ने जुर्माना न देकर जेल जाना स्वीकार किया था।
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2 जनवरी, 1950 को मज़हरुल हक़ का देहांत हो गया।
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10:56, 22 जनवरी 2017 का अवतरण

माधवी
भूपेंद्र नाथ बोस
भूपेंद्र नाथ बोस
पूरा नाम भूपेंद्र नाथ बोस
जन्म 1859
जन्म भूमि बंगाल
मृत्यु 1924
मृत्यु स्थान कोलकाता
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि राजनेता
पार्टी कांग्रेस
शिक्षा एम.ए.
विद्यालय प्रेसीडेंसी कॉलेज
अन्य जानकारी भूपेंद्र नाथ बोस 1904 से 1910 तक बंगाल लेजिस्लेचर के सदस्य रहे तथा बंगाल प्रदेश राजनीतिक सम्मेलन की भी उन्होंने अध्यक्षता की।
अद्यतन‎ 03:31, 15 जनवरी-2017 (IST)

भूपेंद्र नाथ बोस (अंग्रेज़ी: Bhupendra Nath Bose, जन्म- 1859, बंगाल; मृत्यु- 1924, कोलकाता) भारतीय राजनीतिज्ञ थे और 1914 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे। वे कोलकाता कॉरपोरेशन में म्युनिसिपल कमिश्नर थे।[1]

जन्म एवं परिचय

भूपेंद्र नाथ बोस का जन्म 1859 ई. में कृष्णा नगर बंगाल में हुआ था। उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने एम.ए. और कानून की शिक्षा कोलकाता से पूरी की। आरंभ में भूपेंद्र नाथ ने सार्वजनिक कार्यों में रुचि ली। भूपेंद्र नाथ उदार विचारों के व्यक्ति थे। शिक्षा, नारी उत्थान, अस्पृश्यता निवारण आदि कार्यों में उन्होंने सहयोग दिया। भूपेंद्र नाथ यथासंभव सरकार का समर्थन करने के पक्षपाती थे। साथ ही यह भी कहते थे "कि अनिवार्य होने पर हमें विरोध के लिए भी तत्पर रहना चाहिए।" 1904 से 1910 तक भूपेंद्र नाथ बंगाल लेजिस्लेचर के सदस्य रहे। बंग-भंग के विरोध में जो आंदोलन चला उसके वे समर्थक थे। बंगाल प्रदेश राजनीतिक सम्मेलन की भी उन्होंने अध्यक्षता की।

राजनैतिक जीवन

वह नरम विचार के नेताओं का समय था। भूपेंद्र नाथ बोस की गणना उनमें प्रमुख रूप से की जाती थी। उनका महत्त्व इसी से प्रकट है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1914 में अपना मद्रास अधिवेशन का उन्हें अध्यक्ष बनाया था। परंतु ज्यों-ज्यों कांग्रेस संघर्ष की दिशा में आगे बढ़ने लगी, भूपेंद्र नाथ बोस उससे हटकर ब्रिटिश सरकार के निकट चले गए।

अन्य सरकारी पद

इसके बाद भूपेंद्र नाथ बोस का पूरा जीवन विभिन्न सरकारी पदों पर ही बीता। 1917 में भारत मंत्री की कौंसिल के सदस्य नामजद होकर वे इंग्लैंड गए। 1923 में उन्हें बंगाल के गर्वनर की कौंसिल का सदस्य बनाया गया।

निधन

भूपेंद्र नाथ बोस 1924 में कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति थे, तभी उनका देहांत हो गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 580 |

संबंधित लेख




माधवी
भूपेश गुप्ता
भूपेश गुप्ता
पूरा नाम भूपेश गुप्ता
जन्म अक्टूबर, 1914
जन्म भूमि मैमनसिंह ज़िला, पूर्वी बंगाल
मृत्यु 6 अगस्त, 1981
मृत्यु स्थान मोस्को, रूस
स्मारक बी.ए.
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि राजनेता, सांसद
पार्टी कम्युनिस्ट
कार्य काल 1952 से 1980 तक निरतरं संसद के सदस्य बने रहे।
शिक्षा कानून की डिग्री
अन्य जानकारी इंग्लैंड में ही भूपेश गुप्ता कम्युनिस्ट आंदोलन के संपर्क में आए। 1941 में स्वदेश लौटने पर गिरफ्तारी की आशंका से वे भूमिगत हो गए थे।
अद्यतन‎ 03:31, 15 जनवरी-2017 (IST)

भूपेश गुप्ता (अंग्रेज़ी: Bhupesh Gupta, जन्म- अक्टूबर, 1914, मैमनसिंह ज़िला, पूर्वी बंगाल; मृत्यु- 6 अगस्त, 1981, मोस्को, रूस) भारतीय नेता और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के एक नेता थे। 1952 में भूपेश गुप्ता देश की राज्यसभा के सदस्य चुने गए। वे पार्टी के पत्र 'स्वाधीनता' और 'न्यू एज' के संपादक भी थे।[1]

जन्म एवं परिचय

भूपेश गुप्ता का जन्म अक्टूबर, 1914 ई. में पूर्वी बंगाल के मैमनसिंह ज़िले में एक जमींदार परिवार में हुआ था। छोटी उम्र में ही वे क्रांतिकारी दल 'युगांतर' के सदस्य बन गए थे। भूपेश गुप्ता को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष में भाग लेने के कारण 1930, 1931 और 1933 में जेल की सजाएं भोगनी पड़ीं। अपनी बी.ए. की परीक्षा उन्होंने जेल के अंदर से ही दी थी। 1937 में जेल से छूटने पर भूपेश गुप्ता कानून की शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए। डिग्री लेने पर भी भूपेश गुप्ता ने नियमित रूप से वकालत नहीं की।

कम्युनिस्ट आंदोलन से संपर्क

इंग्लैंड में ही भूपेश गुप्ता कम्युनिस्ट आंदोलन के संपर्क में आए। 1941 में स्वदेश लौटने पर गिरफ्तारी की आशंका से वे भूमिगत हो गए थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दिनों में जब लोकयुद्ध की पॉलिसी आई और कम्युनिस्ट पार्टी पर से प्रतिबंध हटा लिया गया तो भूपेश गुप्ता भी प्रकट रूप से काम करने लगे।

राजनैतिक जीवन

1952 में भूपेश गुप्ता देश की राज्यसभा के सदस्य चुने गए और 1980 तक निरतरं उसके सदस्य बने रहे। एक सांसद के रूप में उनकी योग्यता का सब लोग सम्मान करते थे। भूपेश गुप्ता 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' के 'पोलित ब्यूरो' के सदस्य थे। शोषण का निरंतर विरोध करने वाले भूपेश ने पूर्वी बंगाल में छोड़ी अपनी जमींदारी का कोई मुआवजा नहीं लिया।

निधन

भूपेश गुप्ता का 6 अगस्त, 1981 को मोस्को, रूस में देहांत हो गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 581 |

संबंधित लेख




माधवी
मंगूराम
मंगूराम
पूरा नाम मंगूराम
जन्म 14 जनवरी, 1886
जन्म भूमि होशियापुर ज़िला, पंजाब
मृत्यु 22 अप्रैल, 1980
कर्म-क्षेत्र पंजाब
प्रसिद्धि समाज सुधारक
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी मंगूराम के प्रयत्न से अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों को स्कूल, कॉलेजों में प्रवेश मिलने लगा। यह बहुत बड़ी सफलता थी। मंगूराम के प्रयत्नों से दलितों में शिक्षा का भी प्रचार हुआ।
अद्यतन‎ 03:31, 15 जनवरी-2017 (IST)

मंगूराम (अंग्रेज़ी: Manguram, जन्म- 14 जनवरी, 1886, होशियापुर ज़िला, पंजाब; मृत्यु- 22 अप्रैल, 1980) समाज सुधारक के रूप में कार्य करते थे। इनके संबंध कुछ समय तक 'गदर पार्टी' से भी रहे। मंगूराम ने अछूतों में शिक्षा प्रचार के लिए सबसे पहले अपने गांव में स्कूल खोला- नाम रखा 'आद धर्म स्कूल'। बाबू मंगूराम ने 'लैंड एलिएनेशन एक्ट' के विरोध में आवाज उठाई और अदालत ने अनुसूचित जाति के लोगों को खेती की जमीन खरीदने की मान्यता दे दी[1]

जन्म एवं परिचय

बाबू मंगूराम का जन्म 14 जनवरी, 1886 ई. को होशियापुर ज़िले के मुगोवल गांव में एक गरीब दलित परिवार में हुआ था। उनके घर में चमड़े का काम होता था और बचपन में मंगूराम ने भी इसमें अपने पिता का हाथ बंटाया। परंतु मंगूराम की इच्छा पढ़ने की थी। पर गरीब होने, विशेषत: उनकी जाति के कारण उन्हें इसकी सुविधा नहीं थी। संयोग से बालक मंगूराम का संपर्क एक साधु से हुआ और उनकी लगन देखकर साधु ने पहले स्वयं उन्हें पढ़ाया। फिर दूर के एक स्कूल में और कुछ समय देहरादून में भी पढ़ने का अवसर मिला। दलित वर्ग का होने के कारण मंगूराम को कक्षा के अंदर नहीं बैठने दिया जाता था। वे बाहर खिड़की से भीतर देखकर पढ़ाई किया करते थे।

गदर पार्टी से संबंध

मंगूराम का संबंध कुछ समय तक 'गदर पार्टी' से भी रहा। पार्टी ने उन्हें अमेरिका के लासऐंजल्स शहर में भेजा था।

समाज सुधारक के रूप में कार्य

1925 में मंगूराम भारत लौटे। उन्होंने देश के कई स्थानों का दौरा किया और अपने वर्ग के लोगों की दुर्दशा देखी। मदुरा के मीनाक्षी मंदिर में मंगूराम को प्रवेश नहीं मिला। पंजाब लौटकर मंगूराम ने अछूतों में शिक्षा प्रचार के लिए सबसे पहले अपने गांव में स्कूल खोला- नाम रखा 'आद धर्म स्कूल'। बाद में 'आद धर्म मंडल' के नाम से पूरे पंजाब में उसकी शाखाएं खुलीं और समाजसुधार का कार्य आगे बढ़ा। यह आंदोलन मानव-मानव को परस्पर भाईचारे के बंधन में बांधने का एक प्रयत्न था। इनके प्रयत्न से अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों को स्कूल, कॉलेजों में प्रवेश मिलने लगा। पंजाब में अंग्रेज़ों ने 1890 ई. में 'लैंड एलिएनेशन एक्ट' बनाया था। इसके अनुसार अनुसूचित जाति के लोगों को गैर-किसान घोषित करके उनके द्वारा खेती की जमीन की खरीद पर रोक लगा रखी थी। बाबू मंगूराम ने इसके विरोध में आवाज उठाई और अदालत ने अनुसूचित जाति के लोगों को खेती की जमीन खरीदने की मान्यता दे दी। यह बहुत बड़ी सफलता थी। मंगूराम के प्रयत्नों से दलितों में शिक्षा का भी प्रचार हुआ।

निधन

22 अप्रैल, 1980 को मंगूराम का निधन हो गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 586 |

संबंधित लेख



माधवी
पूरा नाम मगन भाई देसाई
जन्म 11 अक्टूबर, 1889
जन्म भूमि खेड़ा ज़िला, गुजरात
मृत्यु 1 फरवरी, 1969
कर्म भूमि गुजरात
भाषा गुजराती
प्रसिद्धि गुजरात विश्वविद्यालय के उपकुलपति।
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख गांधी जी
अन्य जानकारी मगन भाई देसाई ने गुजराती भाषा में अनेक मौलिक पुस्तकों की रचना की तथा उपनिषदों पर भाष्य लिखे।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

मगन भाई देसाई (अंग्रेज़ी: Magan Bhai Desai, जन्म- 11 अक्टूबर, 1889, खेड़ा ज़िला, गुजरात; मृत्यु- 1 फरवरी, 1969) प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक और शिक्षाविद थे। ये गुजराती भाषा के लेखक भी थे। स्वतंत्रता के बाद अवसर आने पर मगन भाई देसाई कांग्रेस सरकार की नीतियों की आलोचना करने में भी पीछे नहीं रहते थे।[1]

जन्म एवं परिचय

मगन भाई देसाई का जन्म 11 अक्टूबर, 1899 ई. को गुजरात के खेड़ा ज़िले में हुआ था। वे मुबंई में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे कि 1921 में गांधी जी का भाषण सुना और उससे प्रभावित होकर विद्यालय छोड़ दिया। बाद में गुजरात विद्यापीठ में गणित के अध्यापक और रजिस्ट्रार के रूप में काम करने लगे। मगन भाई देसाई स्पष्टवादी व्यक्ति थे।

गांधी जी के अनुयायी

1932 के आंदोलन में मगन भाई देसाई को गिरफ्तार कर लिया गया था। गांधी जी के कहने पर वे वर्धा के महिला महाविद्यालय के प्रभारी रहे। बाद में लगभग 24 वर्ष मगन भाई देसाई ने गुजरात विद्यापीठ की सेवा को समर्पित किए। 1957 में उन्हें गुजरात विश्वविद्यालय का उपकुलपति बनाया गया। मगन भाई देसाई का खादी, हिंदी, मद्यनिषेध, सर्वोदय, प्रौढ़ शिक्षा, स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास और गांधी वांङ्मय आदि से संबंधित प्रादेशिक और राष्ट्रीय स्तर की 30 से अधिक समितियों से संबंध था। उन्होंने अपने विश्वास और निर्भीकता से कभी समझौता नहीं किया।

लेखक

मगन भाई देसाई अच्छे लेखक थे। उन्होंने गुजराती भाषा में अनेक मौलिक पुस्तकों की रचना की तथा उपनिषदों पर भाष्य लिखे।

निधन

1 फरवरी, 1969 को मगन भाई देसाई का देहांत हो गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 588 |

संबंधित लेख

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माधवी
[[चित्र:||200px|center]]

मौलाना मज़हरुल हक़ (अंग्रेज़ी: maulana mazharul haque, जन्म- 22 दिसंबर, 1866 , बाहपुरा गांव, पटना, गुजरात; मृत्यु- 2 जनवरी, 1950) देश के समर्पित स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर शिक्षाविद, बिहार के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्त्ता और लेखक थे। ये असहयोग आंदोलन और खिलाफत आंदोलन के समर्थक थे।[1]

जन्म एंव शिक्षा

मज़हरुल हक़ का जन्म पटना जिले के बाहपुरा गांव में 22 दिसंबर, 1866 ई. को एक धनी जमींदार परिवार में हुआ था। आरंभिक शिक्षा के बाद कुछ समय तक पटना और लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ने के बाद उच्च शिक्षा के लिए वे इंग्लैंड चले गए। उन्हीं दिनों गांधी जी भी वहां छात्र थे। तभी से दोनों में परिचय हुआ जो जीवन-भर बना रहा। बैरिस्टर बनने के बाद मौलाना मज़हरुल हक़ ने छपरा में वकालत शुरू की।

सार्वजनिक कार्य

साथ ही मौलाना मज़हरुल हक़ सार्वजनिक कार्यों में भी भाग लेने लगे। बिहार में प्रथम राजनैतिक सम्मेलन आयोजित करने वालों में ये प्रमुख थे। मौलाना मज़हरुल हक़ ने बिहार को अलग प्रदेश बनाने की मांग की। (उस समय बिहार बंगाल प्रदेश के अंतर्गत था) पटना में विश्वविद्यालय की स्थापना पर जोर दिया। मुस्लिम लीग की स्थापना में सहयोग देने के साथ-साथ उन्होंने 1915 की मुंबई कांग्रेस के समय हुए लीग के अधिवेशन की अध्यक्षता भी की थी। यहीं पर मौलाना मज़हरुल हक़ ने गांधी जी को पटना आने पर अपने घर पर टिकने का निमंत्रण दिया था। वे होमरूल लीग की बिहार शाखा के अध्यक्ष भी रहे।

स्वतंत्रता सेनानी

जब गांधी जी चंपारन के किसानों की दशा देखने के लिए बिहार गए तो पटना में मज़हरुल हक़ से ही उन्हें सर्वप्रथम आवश्यक सुविधा मिली थी। उन्होंने असहयोग आंदोलन और खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया।

समाज सुधारक

'बिहार विद्यापीठ', 'बिहार नेशनल कॉलेज' और प्रसिध 'सदाक़त आश्रम' की स्थापना का श्रेय मज़हरुल हक़ को है।

लेखक

मज़हरुल हक़ ने 'मदर लैण्ड' नामक साप्ताहिक पत्र निकाला था। उसके एक लेख को आपत्तिकनक मानकर जब सरकार ने उन पर जुर्माना किया तो हक़ ने जुर्माना न देकर जेल जाना स्वीकार किया था।

निधन

2 जनवरी, 1950 को मज़हरुल हक़ का देहांत हो गया।

पन्ने की प्रगति अवस्था
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प्रारम्भिक
माध्यमिक
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 588 |

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