देवकीनन्दन खत्री
देवकीनन्दन खत्री
| |
पूरा नाम | देवकीनन्दन खत्री |
जन्म | 29 जून, 1861 ई. |
जन्म भूमि | मुजफ़्फ़रपुर, बिहार |
मृत्यु | 1 अगस्त, 1913 ई. |
मृत्यु स्थान | काशी (वर्तमान बनारस) |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | साहित्य |
मुख्य रचनाएँ | 'चंद्रकांता', 'चंद्रकांता संतति', 'भूतनाथ', 'काजर की कोठरी', 'नरेंद्र-मोहिनी' आदि। |
भाषा | उर्दू, फ़ारसी, हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी |
प्रसिद्धि | उपन्यासकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | हिन्दी के सुप्रसिद्ध उपन्यास लेखक श्री वृंदावनलाल वर्मा ने देवकीनन्दन खत्री को "हिन्दी का शिराज़ी" कहा है। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
देवकीनन्दन खत्री (अंग्रेज़ी: Devaki Nandan Khatri, जन्म- 29 जून, 1861 ई.; बिहार; मृत्यु- 1 अगस्त, 1913 ई., बनारस) हिन्दी के प्रथम तिलिस्मी लेखक थे। उन्होंने 'चंद्रकांता', 'चंद्रकांता संतति', 'काजर की कोठरी', 'नरेंद्र-मोहिनी', 'कुसुम कुमारी', 'वीरेंद्र वीर', 'गुप्त गोंडा', 'कटोरा भर' और 'भूतनाथ' जैसी रचनाएँ कीं। 'भूतनाथ' को उनके पुत्र 'दुर्गा प्रसाद खत्री' ने पूरा किया था। हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में उनके उपन्यास 'चंद्रकांता' का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस उपन्यास ने सबका मन मोह लिया था। इस किताब का रसास्वादन करने के लिए कई गैर-हिन्दीभाषियों ने हिन्दी भाषा सीखी। बाबू देवकीनंदन खत्री ने 'तिलिस्म', 'ऐय्यार' और 'ऐय्यारी' जैसे शब्दों को हिन्दी भाषियों के बीच लोकप्रिय बना दिया।[1]
'जितने हिन्दी पाठक उन्होंने (बाबू देवकीनन्दन खत्री ने) उत्पन्न किये उतने किसी और ग्रंथकार ने नहीं।[2]
जीवनी
देवकीनन्दन खत्री जी का जन्म 29 जून, 1861 (आषाढ़ कृष्ण पक्ष सप्तमी संवत् 1918) शनिवार को पूसा, मुजफ़्फ़रपुर, बिहार में हुआ था। उनके पिता का नाम 'लाला ईश्वरदास' था। उनके पूर्वज पंजाब के निवासी थे और मुग़लों के राज्य काल में ऊँचे पदों पर कार्य करते थे। महाराज रणजीत सिंह के पुत्र शेरसिंह के शासन काल में लाला ईश्वरदास काशी (आधुनिक बनारस) आकर बस गये। देवकीनन्दन खत्री जी की प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू-फ़ारसी में हुई थी। बाद में उन्होंने हिन्दी, संस्कृत एवं अंग्रेज़ी का भी अध्ययन किया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ देवकीनंदन खत्री (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24मई, 2011।
- ↑ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, हिन्दी साहित्य का इतिहास, काशी, संवत् 2012 वि॰, पृ॰ 499) ।