पांडुरंग वामन काणे
पांडुरंग वामन काणे
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पूरा नाम | डॉ. पांडुरंग वामन काणे |
अन्य नाम | डॉ. काणे |
जन्म | 7 मई, 1880 |
जन्म भूमि | रत्नागिरि ज़िला, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 18 अप्रॅल, 1972 |
अभिभावक | वामन राव (पिता) |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | साहित्य, अध्यापक एवं शोध कार्य |
मुख्य रचनाएँ | 'धर्मशास्त्र का इतिहास', 'संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास', 'भारतीय रीति रिवाज़' आदि ग्रंथ |
विषय | धर्म, भाषा, संस्कृति |
भाषा | हिन्दी, संस्कृत, जर्मनी, अंग्रेज़ी, फ्रेंच, उर्दू, फारसी |
विद्यालय | एस. पी. जी. स्कूल, रत्नागिरि |
शिक्षा | एल.एल.बी. (वकालत), एम.ए. (संस्कृत और अंग्रेज़ी) |
पुरस्कार-उपाधि | डी.लिट., भारत रत्न |
विशेष योगदान | छुआछूत का विरोध, अंतर्जातीय और विधवा विवाह को समर्थन |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | 'धर्मशास्त्र का इतिहास' पाँच भागों में प्रकाशित बड़े आकार के 6500 पृष्ठों का भारतीय धर्मशास्त्र का विश्वकोश है। यह ग्रंथ इस बात का प्रमाण है कि डॉ. काणे ने अथक लगन और परिश्रम से इस ग्रंथ का निर्माण किया। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
डॉ. पांडुरंग वामन काणे (अंग्रेज़ी: Pandurang Vaman Kane, जन्म: 7 मई 1880 - 18 अप्रॅल, 1972) संस्कृत के एक विद्वान् एवं प्राच्यविद्या विशारद थे। भारत की अति प्राचीन वैदिक भाषा के रूप में यदि आज संस्कृत को विश्व की सभी भाषाओं की जननी माना जाता है और भारत की अति प्राचीन धर्म संस्कृति को यदि विश्व भर में बड़े सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है, तो उसमें महान् भारतीय संस्कृतज्ञ और विद्वान् पंडित डॉक्टर पांडुरंग वामन काणे के अमूल्य योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।
विषय सूची
परिचय
डॉ. काणे का जन्म 7 मई 1880 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि ज़िले के दापोली नामक गाँव में एक चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता श्री वामन राव पुरोहिताई के कार्य से जुड़े थे, किंतु साथ ही वकालत के कार्य से भी जुड़े थे। वास्तव में डॉ. काणे का परिवार वैदिक संस्कृति और ज्ञान से पैतृक रूप से समृद्ध था। डॉ. काणे ने गाँव के ही स्कूल से प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के साथ साथ अपने परिवार से वैदिक ज्ञान भी प्राप्त किया।