श्याम सुंदर

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श्याम सुंदर (जन्म- 18 दिसंबर, 1908, हैदराबाद, मृत्यु- 19 मई, 1975) हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, मराठी और कन्नड़ भाषाओं के जानकार एवं लेखक‍ थे। वे दलित वर्ग के उत्थान के लिए प्रयत्नशील रहे।

परिचय

कई भाषाओं के ज्ञाता एवं दलित वर्ग के उत्थान के लिए जीवन भर संघर्ष करने वाले श्याम सुंदर का जन्म 18 दिसंबर, 1908 ई. को हैदराबाद में हुआ था। उनके पिता रेलवे के कर्मचारी थे। श्याम सुंदर ने उस्मानिया विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री ली और उसके बाद मजदूर संघ के काम में लग गए। एक दलित परिवार से होने के कारण श्याम सुंदर दलित वर्ग की सामाजिक कठिनाइयों से भली भांति परिचित थे। वे 1957 से 1961 तक कर्नाटक में विधायक रहे और वहां भी दलितों के उत्थान के लिए प्रयत्न करते रहे। [1]

दलितों के शुभचिंतक

श्याम सुंदर दलितों के शुभचिंतक थे। उनके मन में दलित वर्ग की स्थिति को लेकर बड़ी पीड़ा थी। उन्होंने अपनी पूरी शक्ति दलित वर्ग को ऊपर उठाने में लगाई। दलितों में आत्मविश्वास पैदा करने के लिए उन्होंने 'भीम सेना' का गठन किया। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में इस सेना का अधिक प्रचार हुआ। वे दलितों द्वारा किसी अन्य धर्म को अपनाने के विरोधी थे। उनका मानना था कि दलित भारत के मूल निवासी हैं, इसलिए उन्हें कोई नया धर्म स्वीकार करने की आवश्यकता नहीं है। शिक्षा पर वे बहुत जोर देते थे। उनकी मान्यता थी कि शिक्षा के द्वारा ही समाज के पिछड़ेपन को दूर किया जा सकता है।

भाषाओं का ज्ञान

श्याम सुंदर को हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, मराठी और कन्नड़ भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। वे एक अच्छे लेखक‍ भी थे। उनकी पुस्तक 'एन एसेसमेंट ऑफ फाइव थाउजेंडस ईयर्स ऑफ हिस्ट्री एंड कल्चर ऑफ इंडिया' बहुत प्रसिद्ध हुई।

मृत्यु

दलितों के शुभचिंतक श्याम सुंदर का 19 मई, 1975 ई. को देहावसान हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 861 |

बाहरी कड़ियाँ

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