इस्मत चुग़ताई
इस्मत चुग़ताई
| |
पूरा नाम | इस्मत चुग़ताई |
जन्म | 21 अगस्त, 1915 |
जन्म भूमि | बदायूँ, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 24 अक्टूबर, 1991 |
मृत्यु स्थान | मुंबई |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | साहित्य |
मुख्य रचनाएँ | 'लिहाफ', 'टेढ़ी लकीर', एक बात, कलियाँ, जंगली कबूतर, एक कतरा-ए-खून, दिल की दुनिया, बहरूप नगर, छुईमुई आदि। |
भाषा | हिन्दी, उर्दू |
पुरस्कार-उपाधि | 'गालिब अवार्ड' (1974), 'साहित्य अकादमी पुरस्कार', 'इक़बाल सम्मान', 'नेहरू अवार्ड', 'मखदूम अवार्ड' |
प्रसिद्धि | उर्दू लेखिका |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | इस्मत चुग़ताई ने ठेठ मुहावरेदार गंगा-जमुनी भाषा का इस्तेमाल किया, जिसे हिन्दी-उर्दू की सीमाओं में क़ैद नहीं किया जा सकता। उनका भाषा प्रवाह अद्भुत था। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
इस्मत चुग़ताई (अंग्रेज़ी: Ismat Chughtai जन्म: 21 अगस्त, 1915; मृत्यु: 24 अक्टूबर, 1991) का नाम भारतीय साहित्य में एक चर्चित और सशक्त कहानीकार के रूप में विख्यात हैं। उन्होंने महिलाओं से जुड़े मुद्दों को अपनी रचनाओं में बेबाकी से उठाया और पुरुष प्रधान समाज में उन मुद्दों को चुटीले और संजीदा ढंग से पेश करने का जोखिम भी उठाया। आलोचकों के अनुसार इस्मत चुग़ताई ने शहरी जीवन में महिलाओं के मुद्दे पर सरल, प्रभावी और मुहावरेदार भाषा में ठीक उसी प्रकार से लेखन कार्य किया है, जिस प्रकार से प्रेमचंद ने देहात के पात्रों को बखूबी से उतारा है। इस्मत के अफ़सानों में औरत अपने अस्तित्व की लड़ाई से जुड़े मुद्दे उठाती है।
विषय सूची
जीवन परिचय
इस्मत चुग़ताई का जन्म 21 अगस्त, 1915 को बदायूँ, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनका बचपन अधिकांशत: जोधपुर में व्यतीत हुआ, जहाँ उनके पिता एक सिविल सेवक थे। इनके पिता की दस संतानें थीं- छ: पुत्र और चार पुत्रियाँ। इनमें इस्मत चुग़ताई उनकी नौवीं संतान थीं। जब चुग़ताई युवावस्था को प्राप्त कर रही थीं, तभी इनकी बहनों का विवाह हो चुका था। इनके जीवन का वह समय काफ़ी महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ, जो इन्होंने अपने भाइयों के साथ व्यतीत किया। इनके भाई मिर्ज़ा आजिम बेग़ चुग़ताई पहले से ही एक जाने-माने लेखक थे। इस प्रकार इस्मत चुग़ताई को किशोरावस्था में ही भाई के साथ-साथ एक गुरु भी मिल गया था।
लेखन कार्य
अपनी शिक्षा पूर्ण करने के साथ ही इस्मत चुग़ताई लेखन क्षेत्र में आ गई थीं। उन्होंने अपनी कहानियों में स्त्री चरित्रों को बेहद संजीदगी से उभारा और इसी कारण उनके पात्र ज़िंदगी के बेहद क़रीब नजर आते हैं। इस्मत चुग़ताई ने ठेठ मुहावरेदार गंगा-जमुनी भाषा का इस्तेमाल किया, जिसे हिन्दी-उर्दू की सीमाओं में क़ैद नहीं किया जा सकता। उनका भाषा प्रवाह अद्भुत था। इसने उनकी रचनाओं को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।