राहुल सांकृत्यायन
राहुल सांकृत्यायन
| |
पूरा नाम | राहुल सांकृत्यायन |
अन्य नाम | केदारनाथ पाण्डे, दामोदर स्वामी |
जन्म | 9 अप्रैल, 1893 |
जन्म भूमि | पन्दहा ग्राम, ज़िला आजमगढ़, (उत्तर प्रदेश) |
मृत्यु | 14 अप्रैल, 1963 |
मृत्यु स्थान | दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल |
अभिभावक | गोवर्धन पाण्डे, कुलवन्ती |
कर्म भूमि | बिहार |
कर्म-क्षेत्र | साहित्य |
मुख्य रचनाएँ | घुमक्कड़ शास्त्र, 'सतमी के बच्चे', 'जीने के लिए', 'सिंह सेनापति', 'वोल्गा से गंगा' आदि। |
विषय | दर्शन, धर्म, यात्रा, राजनीति |
भाषा | हिन्दी, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश |
पुरस्कार-उपाधि | साहित्य अकादमी पुरस्कार (1958), पद्म भूषण (1963), त्रिपिटिका चार्य |
नागरिकता | भारतीय |
अद्यतन | 15:17, 19 अगस्त 2012 (IST)
|
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
महापण्डित राहुल सांकृत्यायन (जन्म- 9 अप्रैल, 1893; मृत्यु- 14 अप्रैल, 1963) को हिन्दी यात्रा साहित्य का जनक माना जाता है। वे एक प्रतिष्ठित बहुभाषाविद थे और 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में उन्होंने यात्रा वृतांत तथा विश्व-दर्शन के क्षेत्र में साहित्यिक योगदान किए। बौद्ध धर्म पर उनका शोध हिन्दी साहित्य में युगान्तरकारी माना जाता है, जिसके लिए उन्होंने तिब्बत से लेकर श्रीलंका तक भ्रमण किया था।
जीवन परिचय
राहुल सांकृत्यायन जी का जन्म 9 अप्रैल, 1893 को पन्दहा ग्राम, ज़िला आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) में हुआ। राहुल सांकृत्यायन के पिता का नाम गोवर्धन पाण्डे और माता का नाम कुलवन्ती था। इनके चार भाई और एक बहिन थी, परन्तु बहिन का देहान्त बाल्यावस्था में ही हो गया था। भाइयों में ज्येष्ठ राहुल जी थे। पितृकुल से मिला हुआ उनका नाम 'केदारनाथ पाण्डे' था। सन् 1930 ई. में लंका में बौद्ध होने पर उनका नाम 'राहुल' पड़ा। बौद्ध होने के पूर्व राहुल जी 'दामोदर स्वामी' के नाम से भी पुकारे जाते थे। 'राहुल' नाम के आगे 'सांस्कृत्यायन' इसलिए लगा कि पितृकुल सांकृत्य गोत्रीय है।
बाल्य काल
राहुल जी का बाल्य जीवन ननिहाल अर्थात पन्दहा ग्राम में व्यतीत हुआ। राहुल जी के नाना का नाम था पण्डित राम शरण पाठक, जो अपनी युवावस्था में फ़ौज में नौकरी कर चुके थे। नाना के मुख से सुनी हुई फ़ौज़ी जीवन की कहानियाँ, शिकार के अद्भुत वृत्तान्त, देश के विभिन्न प्रदेशों का रोचक वर्णन, अजन्ता-एलोरा की किवदन्तियों तथा नदियों, झरनों के वर्णन आदि ने राहुल जी के आगामी जीवन की भूमिका तैयार कर दी थी। इसके अतिरिक्त दर्जा तीन की उर्दू किताब में पढ़ा हुआ 'नवाजिन्दा-बाजिन्दा' का शेरसैर कर दुनिया की गाफिल ज़िन्दगानी फिर कहाँ,
ज़िन्दगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहाँ
जीवन यात्रा
राहुल जी की जीवन यात्रा के अध्याय इस प्रकार हैं-
इसके बाद पुन: वापस आने पर हिमालय की यात्रा पर गये, सन् 1990 ई. से 1914 ई. तक वैराग्य से प्रभावित रहे और हिमालय पर यायावर जीवन जिया। वाराणसी में संस्कृत का अध्ययन किया। परसा महन्त का सहचर्य मिला, आगरा में पढ़ाई की, लाहौर में मिशनरी कार्य किया, इसके बाद पुन: 'घुमक्कड़ी का भूत' हावी रहा। कुर्ग में भी चार मास तक रहे।
- राजनीति में प्रवेश (1921-27)
राहुल सांकृत्यायन ने छपरा के लिए प्रस्थान किया, बाढ़ पीड़ितों की सेवा की, स्वतंत्रता आंदोलन में सत्याग्रह में भाग लिया और उसमें जेल की सज़ा मिली, बक्सर जेल में छ: मास तक रहे, ज़िला कांग्रेस के मंत्री रहे, इसके बाद नेपाल में डेढ़ मास तक रहे, हज़ारी बाग़ जेल में रहे। राजनीतिक शिथिलता आने पर पुन: हिमालय की ओर गये, कौंसिल का चुनाव भी लड़ा।
- लंका के लिए प्रस्थान (1927)
राहुल सांकृत्यायन ने लंका में 19 मास प्रवास किया, नेपाल में अज्ञातवास किया, तिब्बत में सवा बरस तक रहे, लंका में दूसरी बार गये, इसके बाद सत्याग्रह के लिए भारत में लौटकर आये। कुछ समय बाद लंका के लिए तीसरी बार प्रस्थान किया।
- यात्राएँ (1932-33)
राहुल सांकृत्यायन ने इंग्लैण्ड और यूरोप की यात्रा की। दो बार लद्दाख यात्रा, दो बार तिब्बत यात्रा, जापान, कोरिया, मंचूरिया, सोवियत भूमि (1935 ई.), ईरान में पहली बार, तिब्बत में तीसरी बार 1936 ई. में, सोवियत भूमि में दूसरी बार 1937 ई. में, तिब्बत में चौथी बार 1938 ई.में यात्रा की।
- आंदोलन (1938)
किसान मज़दूरों के आन्दोलन में 1938-44 तक भाग लिया, किसान संघर्ष में 1936 में भाग लिया और सत्याग्रह भूख हड़ताल किया।
- सज़ा, जेल और एक नये जीवन का प्रारम्भ
राहुल सांकृत्यायन जी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने। जेल में 29 मास (1940-42 ई.) रहे। इसके बाद सोवियत रूस के लिए पुन: प्रस्थान किया। रूस से लौटने के बाद राहुल जी भारत में रहे और कुछ समय के पश्चात् चीन चले गये, फिर लंका चले गये।
- महान पर्यटक
राहुल जी की प्रारम्भिक यात्राओं ने उनके चिंतन को दो दिशाएँ दीं। एक तो प्राचीन एवं अर्वाचीन विषयों का अध्ययन तथा दूसरे देश-देशान्तरों की अधिक से अधिक प्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त करना। इन दो प्रवृत्तियों से अभिभूत होकर राहुल जी महान् पर्यटक और महान् अध्येता बने।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ राहुल सांकृत्यायन का घुमक्कड़ शास्त्र [जीवन परिचय - कृष्ण कुमार यादव] (हिंदी) साहित्य शिल्पी। अभिगमन तिथि: 24 मार्च, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
- महापण्डित राहुल सांकृत्यायन
- राहुल सांकृत्यायन और बिहार में किसान आंदोलन
- अथातो घुमक्कड़ - जिज्ञासा : राहुल सांकृत्यायन
- भोजपुरी के बारे में क्या सोचते थे राहुल सांकृत्यायन
- राहुल सांकृत्यायन का घुमक्कड़ शास्त्र