रामकृष्ण खत्री
रामकृष्ण खत्री
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पूरा नाम | रामकृष्ण खत्री |
जन्म | 3 मार्च, 1902 |
जन्म भूमि | महाराष्ट्र |
मृत्यु | 18 अक्टूबर, 1996 |
मृत्यु स्थान | लखनऊ, उत्तर प्रदेश |
अभिभावक | पिता- शिवलाल चोपड़ा, माता- कृष्णाबाई |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी |
संबंधित लेख | रामप्रसाद बिस्मिल, काकोरी काण्ड |
अन्य जानकारी | रामकृष्ण खत्री हिन्दी, मराठी, गुरुमुखी तथा अंग्रेज़ी के अच्छे जानकार थे। उन्होंने 'शहीदों की छाया में' शीर्षक से एक पुस्तक भी लिखी थी, जो नागपुर से प्रकाशित हुई थी। |
रामकृष्ण खत्री (अंग्रेज़ी: Ramkrishna Khatri, जन्म- 3 मार्च, 1902, महाराष्ट्र; मृत्यु- 18 अक्टूबर, 1996, लखनऊ) भारत के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक थे। उन्हें 'काकोरी काण्ड' के अंतर्गत दस वर्ष के कारावास की सजा मिली थी। रामकृष्ण खत्री ने 'हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ' का विस्तार मध्य भारत और महाराष्ट्र में किया था। खत्री जी हिन्दी, मराठी, गुरुमुखी तथा अंग्रेज़ी के अच्छे जानकार थे। उन्होंने 'शहीदों की छाया में' शीर्षक से एक पुस्तक भी लिखी थी, जो नागपुर से प्रकाशित हुई थी। भारत की आज़ादी के बाद रामकृष्ण खत्री ने भारत सरकार से मिलकर स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों की सहायता के लिये कई योजनायें चलवायी थीं।
विषय सूची
परिचय
स्वतंत्रता सेनानी रामकृष्ण खत्री का जन्म 3 मार्च सन 1902 को वर्तमान महाराष्ट्र के ज़िला बुलढाना बरार के चिखली नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम शिवलाल चोपड़ा व माता का नाम कृष्णाबाई था। अपने छात्र जीवन में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के व्याख्यान से प्रभावित होकर रामकृष्ण खत्री ने साधु समाज को संगठित करने का संकल्प किया और 'उदासीनमण्डल' के नाम से एक संस्था बना ली। इस संस्था में उन्हें महन्त गोविन्द प्रकाश के नाम से लोग जानते थे।
रामकृष्ण खत्री पाँच पुत्रों के पिता थे। उनके पुत्रों के नाम- प्रताप, अरुण, उदय, स्वप्न और आलोक थे। लखनऊ में कैसरबाग की मशहूर मेंहदी बिल्डिंग के दो नम्बर मकान में अपने तीसरे पुत्र उदय खत्री के साथ उन्होंने अपने जीवन की अन्तिम बेला तक निवास किया था।