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{{सूचना बक्सा राजनीतिज्ञ
|चित्र=Bhupendra-Nath-Bose.jpg
|चित्र का नाम=भूपेंद्र नाथ बोस
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}}
'''भूपेंद्र नाथ बोस''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Bhupendra Nath Bose'', जन्म- [[1859]], [[बंगाल]]; मृत्यु- [[1924]], [[कोलकाता]]) भारतीय राजनीतिज्ञ थे और [[1914]] में [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के [[अध्यक्ष]] थे। वे कोलकाता कॉरपोरेशन में म्युनिसिपल कमिश्नर थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन=|पृष्ठ संख्या=580|url=}}</ref>
==जन्म एवं परिचय==
भूपेंद्र नाथ बोस का जन्म 1859 ई. में कृष्णा नगर बंगाल में हुआ था। उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने एम.ए. और कानून की शिक्षा कोलकाता से पूरी की। आरंभ में भूपेंद्र नाथ ने सार्वजनिक कार्यों में रुचि ली। भूपेंद्र नाथ उदार विचारों के व्यक्ति थे। शिक्षा, नारी उत्थान, अस्पृश्यता निवारण आदि कार्यों में उन्होंने सहयोग दिया। भूपेंद्र नाथ यथासंभव सरकार का समर्थन करने के पक्षपाती थे। साथ ही यह भी कहते थे "कि अनिवार्य होने पर हमें विरोध के लिए भी तत्पर रहना चाहिए।" [[1904]] से [[1910]] तक भूपेंद्र नाथ बंगाल लेजिस्लेचर के सदस्य रहे। [[बंग भंग|बंग-भंग]] के विरोध में जो आंदोलन चला उसके वे समर्थक थे। बंगाल प्रदेश राजनीतिक सम्मेलन की भी उन्होंने अध्यक्षता की।
==राजनैतिक जीवन==
वह नरम विचार के नेताओं का समय था। भूपेंद्र नाथ बोस की गणना उनमें प्रमुख रूप से की जाती थी। उनका महत्त्व इसी से प्रकट है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने [[1914]] में अपना मद्रास अधिवेशन का उन्हें अध्यक्ष बनाया था। परंतु ज्यों-ज्यों [[कांग्रेस]] संघर्ष की दिशा में आगे बढ़ने लगी, भूपेंद्र नाथ बोस उससे हटकर [[ब्रिटिश सरकार]] के निकट चले गए।
==अन्य सरकारी पद==
इसके बाद भूपेंद्र नाथ बोस का पूरा जीवन विभिन्न सरकारी पदों पर ही बीता। [[1917]] में भारत मंत्री की कौंसिल के सदस्य नामजद होकर वे [[इंग्लैंड]] गए। [[1923]] में उन्हें [[बंगाल]] के गर्वनर की कौंसिल का सदस्य बनाया गया।
==निधन==
भूपेंद्र नाथ बोस [[1924]] में [[कोलकाता विश्वविद्यालय]] के [[कुलपति]] थे, तभी उनका देहांत हो गया।
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक1 |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:जीवनी_साहित्य]][[Category:राजनीति कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:इतिहास कोश]]
__INDEX__
__NOTOC__
{{सूचना बक्सा राजनीतिज्ञ
|चित्र=Blankimage.png
|चित्र का नाम=भूपेश गुप्ता
|पूरा नाम=भूपेश गुप्ता
|अन्य नाम=
|जन्म=[[अक्टूबर]], [[1914]]
|जन्म भूमि=मैमनसिंह ज़िला, [[पूर्वी बंगाल]]
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|कार्य काल=[[1952]] से [[1980]] तक निरतरं [[संसद]] के सदस्य बने रहे।
|शिक्षा=कानून की डिग्री
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|अन्य जानकारी=[[इंग्लैंड]] में ही भूपेश गुप्ता कम्युनिस्ट आंदोलन के संपर्क में आए। [[1941]] में स्वदेश लौटने पर गिरफ्तारी की आशंका से वे भूमिगत हो गए थे।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=03:31, [[15 जनवरी]]-[[2017]] (IST)
}}
'''भूपेश गुप्ता''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Bhupesh Gupta'', जन्म- [[अक्टूबर]], [[1914]], मैमनसिंह ज़िला, [[पूर्वी बंगाल]]; मृत्यु- [[6 अगस्त]], [[1981]], मोस्को, [[रूस]]) भारतीय नेता और [[भारत]] की कम्युनिस्ट पार्टी के एक नेता थे। [[1952]] में भूपेश गुप्ता देश की [[राज्यसभा]] के सदस्य चुने गए। वे पार्टी के पत्र 'स्वाधीनता' और 'न्यू एज' के संपादक भी थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन=|पृष्ठ संख्या=581|url=}}</ref>
==जन्म  एवं परिचय==
भूपेश गुप्ता का जन्म अक्टूबर, 1914 ई. में पूर्वी बंगाल के मैमनसिंह ज़िले में एक जमींदार [[परिवार]] में हुआ था। छोटी उम्र में ही वे क्रांतिकारी दल 'युगांतर' के सदस्य बन गए थे। भूपेश गुप्ता को [[ब्रिटिश शासन]] के विरुद्ध संघर्ष में  भाग लेने के कारण [[1930]], [[1931]] और [[1933]] में जेल की सजाएं भोगनी पड़ीं। अपनी बी.ए. की परीक्षा उन्होंने जेल के अंदर से ही दी थी। [[1937]] में जेल से छूटने पर भूपेश गुप्ता कानून की शिक्षा के लिए [[इंग्लैंड]] गए। डिग्री लेने पर भी भूपेश गुप्ता ने नियमित रूप से वकालत नहीं की।
==कम्युनिस्ट आंदोलन से संपर्क==
इंग्लैंड में ही भूपेश गुप्ता कम्युनिस्ट आंदोलन के संपर्क में आए। [[1941]] में स्वदेश लौटने पर गिरफ्तारी की आशंका से वे भूमिगत हो गए थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के [[दिन|दिनों]] में जब लोकयुद्ध की पॉलिसी आई और कम्युनिस्ट पार्टी पर से प्रतिबंध हटा लिया गया तो भूपेश गुप्ता भी प्रकट रूप से काम करने लगे।
==राजनैतिक जीवन==
[[1952]] में भूपेश गुप्ता देश की [[राज्यसभा]] के सदस्य चुने गए और [[1980]] तक निरतरं उसके सदस्य बने रहे। एक [[सांसद]] के रूप में उनकी योग्यता का सब लोग सम्मान करते थे। भूपेश गुप्ता '[[भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी]]' के 'पोलित ब्यूरो' के सदस्य थे। शोषण का निरंतर विरोध करने वाले भूपेश ने पूर्वी बंगाल में छोड़ी अपनी जमींदारी का कोई मुआवजा नहीं लिया।
==निधन==
भूपेश गुप्ता का [[6 अगस्त]], [[1981]] को मोस्को, [[रूस]] में देहांत हो गया।
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक1 |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:जीवनी_साहित्य]][[Category:राजनीति कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:इतिहास कोश]]
__INDEX__
__NOTOC__
{{सूचना बक्सा प्रसिद्ध व्यक्तित्व
|चित्र=Blankimage.png
|चित्र का नाम=मंगूराम
|पूरा नाम=मंगूराम
|अन्य नाम=
|जन्म=[[14 जनवरी]], [[1886]]
|जन्म भूमि=होशियापुर ज़िला, [[पंजाब]]
|मृत्यु=[[22 अप्रैल]], [[1980]]
|मृत्यु स्थान=
|अभिभावक=
|पति/पत्नी=
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|गुरु=
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|कर्म-क्षेत्र=[[पंजाब]]
|मुख्य रचनाएँ=
|विषय=
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|पुरस्कार-उपाधि=
|प्रसिद्धि=समाज सुधारक
|विशेष योगदान=
|नागरिकता=भारतीय
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=
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|अन्य जानकारी=मंगूराम के प्रयत्न से अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों को स्कूल, कॉलेजों में प्रवेश मिलने लगा। यह बहुत बड़ी सफलता थी। मंगूराम के प्रयत्नों से दलितों में शिक्षा का भी प्रचार हुआ।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=03:31, [[15 जनवरी]]-[[2017]] (IST)
}}
'''मंगूराम''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Manguram'', जन्म- [[14 जनवरी]], [[1886]], होशियापुर ज़िला, [[पंजाब]]; मृत्यु- [[22 अप्रैल]], [[1980]]) समाज सुधारक के रूप में कार्य करते थे। इनके संबंध कुछ समय तक '[[गदर पार्टी]]' से भी रहे। मंगूराम ने अछूतों में शिक्षा प्रचार के लिए सबसे पहले अपने गांव में स्कूल खोला- नाम रखा 'आद धर्म स्कूल'। बाबू मंगूराम ने 'लैंड एलिएनेशन एक्ट' के विरोध में आवाज उठाई और [[अदालत]] ने अनुसूचित जाति के लोगों को खेती की जमीन खरीदने की मान्यता दे दी<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन=|पृष्ठ संख्या=586|url=}}</ref>
==जन्म एवं परिचय==
बाबू मंगूराम का जन्म 14 जनवरी, 1886 ई. को होशियापुर ज़िले के मुगोवल गांव में एक गरीब दलित [[परिवार]] में हुआ था। उनके घर में चमड़े का काम होता था और बचपन में मंगूराम ने भी इसमें अपने [[पिता]] का हाथ बंटाया। परंतु मंगूराम की इच्छा पढ़ने की थी। पर गरीब होने, विशेषत: उनकी जाति के कारण उन्हें इसकी सुविधा नहीं थी। संयोग से बालक मंगूराम का संपर्क एक साधु से हुआ और उनकी लगन देखकर साधु ने पहले स्वयं उन्हें पढ़ाया। फिर दूर के एक स्कूल में और कुछ समय [[देहरादून]] में भी पढ़ने का अवसर मिला। दलित वर्ग का होने के कारण मंगूराम को कक्षा के अंदर नहीं बैठने दिया जाता था। वे बाहर खिड़की से भीतर देखकर पढ़ाई किया करते थे।
====गदर पार्टी से संबंध====
मंगूराम का संबंध कुछ समय तक '[[गदर पार्टी]]' से भी रहा। पार्टी ने उन्हें [[अमेरिका]] के लासऐंजल्स शहर में भेजा था।
==समाज सुधारक के रूप में कार्य==
[[1925]] में मंगूराम [[भारत]] लौटे। उन्होंने देश के कई स्थानों का दौरा किया और अपने वर्ग के लोगों की दुर्दशा देखी। [[मदुरा]] के [[मीनाक्षी मंदिर]] में मंगूराम को प्रवेश नहीं मिला।
[[पंजाब]] लौटकर मंगूराम ने अछूतों में शिक्षा प्रचार के लिए सबसे पहले अपने गांव में स्कूल खोला- नाम रखा 'आद धर्म स्कूल'। बाद में 'आद धर्म मंडल' के नाम से पूरे पंजाब में उसकी शाखाएं खुलीं और समाजसुधार का कार्य आगे बढ़ा। यह आंदोलन मानव-मानव को परस्पर भाईचारे के बंधन में बांधने का एक प्रयत्न था। इनके प्रयत्न से अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों को स्कूल, कॉलेजों में प्रवेश मिलने लगा। [[पंजाब]] में [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने [[1890]] ई. में 'लैंड एलिएनेशन एक्ट' बनाया था। इसके अनुसार अनुसूचित जाति के लोगों को गैर-किसान घोषित करके उनके द्वारा खेती की जमीन की खरीद पर रोक लगा रखी थी। बाबू मंगूराम ने इसके विरोध में आवाज उठाई और [[अदालत]] ने अनुसूचित जाति के लोगों को खेती की जमीन खरीदने की मान्यता दे दी। यह बहुत बड़ी सफलता थी। मंगूराम के प्रयत्नों से दलितों में शिक्षा का भी प्रचार हुआ।
==निधन==
[[22 अप्रैल]], [[1980]] को मंगूराम का निधन हो गया।
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक1 |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:जीवनी_साहित्य]][[Category:समाज सुधारक]][[Category:चरित कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:इतिहास कोश]]
__INDEX__
__NOTOC__
{{सूचना बक्सा साहित्यकार
{{सूचना बक्सा साहित्यकार
|चित्र=Blankimage.png
|चित्र=Blankimage.png
पंक्ति 205: पंक्ति 36:
मगन भाई देसाई का जन्म 11 अक्टूबर, 1899 ई. को गुजरात के खेड़ा ज़िले में हुआ था। वे [[मुम्बई|मुबंई]] में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे कि [[1921]] में [[गांधी जी]] का भाषण सुना और उससे प्रभावित होकर विद्यालय छोड़ दिया। बाद में गुजरात विद्यापीठ में गणित के अध्यापक और रजिस्ट्रार के रूप में काम करने लगे। मगन भाई देसाई स्पष्टवादी व्यक्ति थे।
मगन भाई देसाई का जन्म 11 अक्टूबर, 1899 ई. को गुजरात के खेड़ा ज़िले में हुआ था। वे [[मुम्बई|मुबंई]] में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे कि [[1921]] में [[गांधी जी]] का भाषण सुना और उससे प्रभावित होकर विद्यालय छोड़ दिया। बाद में गुजरात विद्यापीठ में गणित के अध्यापक और रजिस्ट्रार के रूप में काम करने लगे। मगन भाई देसाई स्पष्टवादी व्यक्ति थे।
==गांधी जी के अनुयायी==
==गांधी जी के अनुयायी==
[[1932]] के आंदोलन में मगन भाई देसाई को गिरफ्तार कर लिया गया था। गांधी जी के कहने पर वे वर्धा के महिला महाविद्यालय के प्रभारी रहे। बाद में लगभग 24 [[वर्ष]] मगन भाई देसाई ने गुजरात विद्यापीठ की सेवा को समर्पित किए। [[1957]] में उन्हें गुजरात विश्वविद्यालय का उपकुलपति बनाया गया। मगन भाई देसाई का खादी, [[हिंदी]], मद्यनिषेध, सर्वोदय, प्रौढ़ शिक्षा, [[स्वतंत्रता संग्राम]] के [[इतिहास]] और गांधी वांङ्मय आदि से संबंधित प्रादेशिक और राष्ट्रीय स्तर की 30 से अधिक समितियों से संबंध था। उन्होंने अपने विश्वास और निर्भीकता से कभी समझौता नहीं किया।
[[1932]] के आंदोलन में मगन भाई देसाई को गिरफ्तार कर लिया गया था। गांधी जी के कहने पर वे [[वर्धा ज़िला |वर्धा]] के महिला महाविद्यालय के प्रभारी रहे। बाद में लगभग 24 [[वर्ष]] मगन भाई देसाई ने गुजरात विद्यापीठ की सेवा को समर्पित किए। [[1957]] में उन्हें गुजरात विश्वविद्यालय का उपकुलपति बनाया गया। मगन भाई देसाई का खादी, [[हिंदी]], मद्यनिषेध, सर्वोदय, प्रौढ़ शिक्षा, [[स्वतंत्रता संग्राम]] के [[इतिहास]] और गांधी वांङ्मय आदि से संबंधित प्रादेशिक और राष्ट्रीय स्तर की 30 से अधिक समितियों से संबंध था। उन्होंने अपने विश्वास और निर्भीकता से कभी समझौता नहीं किया।
==लेखक==
==लेखक==
मगन भाई देसाई अच्छे लेखक थे। उन्होंने [[गुजराती भाषा]] में अनेक मौलिक पुस्तकों की रचना की तथा [[उपनिषद|उपनिषदों]] पर भाष्य लिखे।
मगन भाई देसाई अच्छे लेखक थे। उन्होंने [[गुजराती भाषा]] में अनेक मौलिक पुस्तकों की रचना की तथा [[उपनिषद|उपनिषदों]] पर भाष्य लिखे।
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|क़ब्र=  
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|नागरिकता=भातीय
|नागरिकता=भातीय
|प्रसिद्धि=लेखक, समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी
|प्रसिद्धि=स्वतंत्रता सेनानी
|धर्म=[[मुस्लिम]]  
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|अन्य जानकारी='बिहार विद्यापीठ', 'बिहार नेशनल कॉलेज' और प्रसिध 'सदाक़त आश्रम' की स्थापना का श्रेय मज़हरुल हक़ को है।
|अन्य जानकारी=मौलाना मज़हरुल हक़ [[असहयोग आंदोलन]] और [[खिलाफत आंदोलन]]  में सम्मलित थे।
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|अद्यतन=04:31, [[22 जनवरी]]-[[2017]] (IST)
|अद्यतन=04:31, [[24 जनवरी]]-[[2017]] (IST)
}}
}}
'''मौलाना मज़हरुल हक़''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''maulana mazharul haque'', जन्म- [[22 दिसंबर]], [[1866 ]], बाहपुरा गांव, [[पटना]]; मृत्यु- [[2 जनवरी]], [[1950]]) देश के समर्पित स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर शिक्षाविद, [[बिहार]] के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्त्ता और लेखक थे। ये [[असहयोग आंदोलन]] और [[खिलाफत आंदोलन]] के समर्थक थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन=|पृष्ठ संख्या=588|url=}}</ref>
'''मौलाना मज़हरुल हक़''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Maulana Mazharul Haque'', जन्म- [[22 दिसंबर]], [[1866 ]], बाहपुरा गांव, [[पटना]]; मृत्यु- [[2 जनवरी]], [[1950]]) देश के समर्पित स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर शिक्षाविद, [[बिहार]] के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक थे। ये [[असहयोग आंदोलन]] और [[खिलाफत आंदोलन]] के समर्थक थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन=|पृष्ठ संख्या=588|url=}}</ref>
==जन्म एंव शिक्षा==
==जन्म एंव शिक्षा==
मज़हरुल हक़ का जन्म पटना जिले के बाहपुरा गांव में 22 दिसंबर, 1866 ई. को एक धनी जमींदार [[परिवार]] में हुआ था। आरंभिक शिक्षा के बाद कुछ समय तक पटना और [[लखनऊ विश्वविद्यालय]] में पढ़ने के बाद उच्च शिक्षा के लिए वे [[इंग्लैंड]] चले गए। उन्हीं [[दिन|दिनों]] [[गांधी जी]] भी वहां छात्र थे। तभी से दोनों में परिचय हुआ जो जीवन-भर बना रहा। बैरिस्टर बनने के बाद मौलाना मज़हरुल हक़  ने छपरा में वकालत शुरू की।  
मज़हरुल हक़ का जन्म पटना ज़िले के बाहपुरा गांव में 22 दिसंबर, 1866 ई. को एक धनी जमींदार [[परिवार]] में हुआ था। आरंभिक शिक्षा के बाद कुछ समय तक पटना और [[लखनऊ विश्वविद्यालय]] में पढ़ने के बाद उच्च शिक्षा के लिए वे [[इंग्लैंड]] चले गए। उन्हीं दिनों [[गांधी जी]] भी वहां छात्र थे। तभी से दोनों में परिचय हुआ जो जीवन-भर बना रहा। बैरिस्टर बनने के बाद मौलाना मज़हरुल हक़  ने [[छपरा]] में वकालत शुरू की।  
==सार्वजनिक कार्य==
==सार्वजनिक कार्य==
साथ ही मौलाना मज़हरुल हक़ सार्वजनिक कार्यों में भी भाग लेने लगे। बिहार में प्रथम राजनैतिक सम्मेलन आयोजित करने वालों में ये प्रमुख थे। मौलाना मज़हरुल हक़ ने बिहार को अलग प्रदेश बनाने की मांग की। (उस समय बिहार बंगाल प्रदेश के अंतर्गत था) [[पटना]] में विश्वविद्यालय की स्थापना पर जोर दिया। [[मुस्लिम लीग]] की स्थापना में सहयोग देने के साथ-साथ उन्होंने [[1915]] की मुंबई कांग्रेस के समय हुए लीग के अधिवेशन की अध्यक्षता भी की थी। यहीं पर मौलाना मज़हरुल हक़ ने गांधी जी को पटना आने पर अपने घर पर टिकने का निमंत्रण दिया था। वे होमरूल लीग की बिहार शाखा के अध्यक्ष भी रहे।  
मौलाना मज़हरुल हक़ सार्वजनिक कार्यों में भी भाग लेने लगे। बिहार में प्रथम राजनैतिक सम्मेलन आयोजित करने वालों में ये प्रमुख थे। मौलाना मज़हरुल हक़ ने बिहार को अलग प्रदेश बनाने की मांग की।<ref>उस समय बिहार बंगाल प्रदेश के अंतर्गत था</ref>[[पटना]] में विश्वविद्यालय की स्थापना पर जोर दिया। [[मुस्लिम लीग]] की स्थापना में सहयोग देने के साथ-साथ उन्होंने [[1915]] की मुंबई कांग्रेस के समय हुए लीग के अधिवेशन की अध्यक्षता भी की थी। यहीं पर मौलाना मज़हरुल हक़ ने गांधी जी को पटना आने पर अपने घर पर टिकने का निमंत्रण दिया था। वे होमरूल लीग की बिहार शाखा के अध्यक्ष भी रहे।  
====स्वतंत्रता सेनानी====
====स्वतंत्रता सेनानी====
जब [[गांधी जी]] चंपारन के किसानों की दशा देखने के लिए [[बिहार]] गए तो [[पटना]] में मज़हरुल हक़ से ही उन्हें सर्वप्रथम आवश्यक सुविधा मिली थी। उन्होंने [[असहयोग आंदोलन]] और [[खिलाफत आंदोलन]] का समर्थन किया।  
जब [[गांधी जी]] चंपारन के किसानों की दशा देखने के लिए [[बिहार]] गए तो [[पटना]] में मज़हरुल हक़ से ही उन्हें सर्वप्रथम आवश्यक सुविधा मिली थी। उन्होंने [[असहयोग आंदोलन]] और [[खिलाफत आंदोलन]] का समर्थन किया।  
====समाज सुधारक====
====स्थापना ====
'बिहार विद्यापीठ', 'बिहार नेशनल कॉलेज' और प्रसिध 'सदाक़त आश्रम' की स्थापना का श्रेय मज़हरुल हक़ को है।  
'बिहार विद्यापीठ', 'बिहार नेशनल कॉलेज' और प्रसिध 'सदाक़त आश्रम' की स्थापना का श्रेय मज़हरुल हक़ को है।  
====लेखक====
====सम्पादन====
मज़हरुल हक़ ने 'मदर लैण्ड' नामक साप्ताहिक पत्र निकाला था। उसके एक लेख को आपत्तिकनक मानकर जब सरकार ने उन पर जुर्माना किया तो हक़ ने जुर्माना न देकर जेल जाना स्वीकार किया था।
मज़हरुल हक़ ने 'मदर लैण्ड' नामक साप्ताहिक पत्र निकाला था। उसके एक लेख को आपत्तिकनक मानकर जब सरकार ने उन पर जुर्माना किया तो हक़ ने जुर्माना न देकर जेल जाना स्वीकार किया था।
==निधन==
==निधन==
2 जनवरी, 1950 को मज़हरुल हक़ का देहांत हो गया।
[[2 जनवरी]], [[1950]] को मज़हरुल हक़ का देहांत हो गया।
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{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक1 |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{स्वतंत्रता सेनानी}}
{{स्वतंत्रता सेनानी}}
{{साहित्यकार}}
__INDEX__
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__NOTOC__
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10:31, 24 जनवरी 2017 का अवतरण

माधवी
पूरा नाम मगन भाई देसाई
जन्म 11 अक्टूबर, 1889
जन्म भूमि खेड़ा ज़िला, गुजरात
मृत्यु 1 फरवरी, 1969
कर्म भूमि गुजरात
भाषा गुजराती
प्रसिद्धि गुजरात विश्वविद्यालय के उपकुलपति।
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख गांधी जी
अन्य जानकारी मगन भाई देसाई ने गुजराती भाषा में अनेक मौलिक पुस्तकों की रचना की तथा उपनिषदों पर भाष्य लिखे।
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मगन भाई देसाई (अंग्रेज़ी: Magan Bhai Desai, जन्म- 11 अक्टूबर, 1889, खेड़ा ज़िला, गुजरात; मृत्यु- 1 फरवरी, 1969) प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक और शिक्षाविद थे। ये गुजराती भाषा के लेखक भी थे। स्वतंत्रता के बाद अवसर आने पर मगन भाई देसाई कांग्रेस सरकार की नीतियों की आलोचना करने में भी पीछे नहीं रहते थे।[1]

जन्म एवं परिचय

मगन भाई देसाई का जन्म 11 अक्टूबर, 1899 ई. को गुजरात के खेड़ा ज़िले में हुआ था। वे मुबंई में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे कि 1921 में गांधी जी का भाषण सुना और उससे प्रभावित होकर विद्यालय छोड़ दिया। बाद में गुजरात विद्यापीठ में गणित के अध्यापक और रजिस्ट्रार के रूप में काम करने लगे। मगन भाई देसाई स्पष्टवादी व्यक्ति थे।

गांधी जी के अनुयायी

1932 के आंदोलन में मगन भाई देसाई को गिरफ्तार कर लिया गया था। गांधी जी के कहने पर वे वर्धा के महिला महाविद्यालय के प्रभारी रहे। बाद में लगभग 24 वर्ष मगन भाई देसाई ने गुजरात विद्यापीठ की सेवा को समर्पित किए। 1957 में उन्हें गुजरात विश्वविद्यालय का उपकुलपति बनाया गया। मगन भाई देसाई का खादी, हिंदी, मद्यनिषेध, सर्वोदय, प्रौढ़ शिक्षा, स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास और गांधी वांङ्मय आदि से संबंधित प्रादेशिक और राष्ट्रीय स्तर की 30 से अधिक समितियों से संबंध था। उन्होंने अपने विश्वास और निर्भीकता से कभी समझौता नहीं किया।

लेखक

मगन भाई देसाई अच्छे लेखक थे। उन्होंने गुजराती भाषा में अनेक मौलिक पुस्तकों की रचना की तथा उपनिषदों पर भाष्य लिखे।

निधन

1 फरवरी, 1969 को मगन भाई देसाई का देहांत हो गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 588 |

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माधवी
मौलाना मज़हरुल हक़
मौलाना मज़हरुल हक़
पूरा नाम मौलाना मज़हरुल हक़
जन्म 22 दिसंबर, 1866
जन्म भूमि बाहपुरा गांव, पटना
मृत्यु 2 जनवरी, 1950
नागरिकता भातीय
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी
धर्म मुस्लिम
संबंधित लेख गांधी जी
अन्य जानकारी मौलाना मज़हरुल हक़ असहयोग आंदोलन और खिलाफत आंदोलन में सम्मलित थे।
अद्यतन‎ 04:31, 24 जनवरी-2017 (IST)

मौलाना मज़हरुल हक़ (अंग्रेज़ी: Maulana Mazharul Haque, जन्म- 22 दिसंबर, 1866 , बाहपुरा गांव, पटना; मृत्यु- 2 जनवरी, 1950) देश के समर्पित स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर शिक्षाविद, बिहार के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक थे। ये असहयोग आंदोलन और खिलाफत आंदोलन के समर्थक थे।[1]

जन्म एंव शिक्षा

मज़हरुल हक़ का जन्म पटना ज़िले के बाहपुरा गांव में 22 दिसंबर, 1866 ई. को एक धनी जमींदार परिवार में हुआ था। आरंभिक शिक्षा के बाद कुछ समय तक पटना और लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ने के बाद उच्च शिक्षा के लिए वे इंग्लैंड चले गए। उन्हीं दिनों गांधी जी भी वहां छात्र थे। तभी से दोनों में परिचय हुआ जो जीवन-भर बना रहा। बैरिस्टर बनने के बाद मौलाना मज़हरुल हक़ ने छपरा में वकालत शुरू की।

सार्वजनिक कार्य

मौलाना मज़हरुल हक़ सार्वजनिक कार्यों में भी भाग लेने लगे। बिहार में प्रथम राजनैतिक सम्मेलन आयोजित करने वालों में ये प्रमुख थे। मौलाना मज़हरुल हक़ ने बिहार को अलग प्रदेश बनाने की मांग की।[2]पटना में विश्वविद्यालय की स्थापना पर जोर दिया। मुस्लिम लीग की स्थापना में सहयोग देने के साथ-साथ उन्होंने 1915 की मुंबई कांग्रेस के समय हुए लीग के अधिवेशन की अध्यक्षता भी की थी। यहीं पर मौलाना मज़हरुल हक़ ने गांधी जी को पटना आने पर अपने घर पर टिकने का निमंत्रण दिया था। वे होमरूल लीग की बिहार शाखा के अध्यक्ष भी रहे।

स्वतंत्रता सेनानी

जब गांधी जी चंपारन के किसानों की दशा देखने के लिए बिहार गए तो पटना में मज़हरुल हक़ से ही उन्हें सर्वप्रथम आवश्यक सुविधा मिली थी। उन्होंने असहयोग आंदोलन और खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया।

स्थापना

'बिहार विद्यापीठ', 'बिहार नेशनल कॉलेज' और प्रसिध 'सदाक़त आश्रम' की स्थापना का श्रेय मज़हरुल हक़ को है।

सम्पादन

मज़हरुल हक़ ने 'मदर लैण्ड' नामक साप्ताहिक पत्र निकाला था। उसके एक लेख को आपत्तिकनक मानकर जब सरकार ने उन पर जुर्माना किया तो हक़ ने जुर्माना न देकर जेल जाना स्वीकार किया था।

निधन

2 जनवरी, 1950 को मज़हरुल हक़ का देहांत हो गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 588 |
  2. उस समय बिहार बंगाल प्रदेश के अंतर्गत था

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