"जे. बी. कृपलानी": अवतरणों में अंतर
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'''जीवतराम भगवानदास कृपलानी''' ([[अंग्रेज़ी]]: | {{सूचना बक्सा राजनीतिज्ञ | ||
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'''जीवतराम भगवानदास कृपलानी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Jivatram Bhagwandas Kripalani'', जन्म- [[11 नवम्बर]], [[1888]] ; मृत्यु- [[19 मार्च]], [[1982]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध स्वतंत्रतासेनानी और राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने एक शिक्षक के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन प्रारम्भ किया था। राष्ट्रपिता [[महात्मा गाँधी]] से उनका निकट सम्पर्क था। वे 'गुजरात विद्यापीठ' के प्राचार्य भी रहे थे, तभी से उन्हें 'आचार्य कृपलानी' पुकारा जाने लगा था। हरिजन उद्धार के लिए कृपलानी जी निरंतर गाँधीजी के सहयोगी रहे। वे 'अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के महामंत्री तथा वर्ष [[1946]] की [[मेरठ]] [[कांग्रेस]] के अध्यक्ष भी रहे थे। उनकी पत्नी [[सुचेता कृपलानी]] भी [[उत्तर प्रदेश]] की [[मुख्यमंत्री]] रही थीं। | |||
==जन्म तथा शिक्षा== | ==जन्म तथा शिक्षा== | ||
जे. बी. कृपलानी का जन्म 11 नवम्बर, 1888 को हैदराबाद ([[सिंध]]) में हुआ था। वे [[क्षत्रिय]] परिवार से सम्बन्ध रखते थे। उनके [[पिता]] काका भगवान दास तहसीलदार के पद पर नियुक्त थे। कृपलानी जी की शिक्षा सिंध और [[मुंबई]] के 'विल्सन कॉलेज' में आरंभ हुई। उन्होंने एम. ए. तक की शिक्षा [[पुणे]] के 'फ़र्ग्यूसन कॉलेज' से प्राप्त की थी, जिसकी स्थापना [[लोकमान्य तिलक]] और उनके साथियों ने की थी। | जे. बी. कृपलानी का जन्म 11 नवम्बर, 1888 को [[हैदराबाद]] ([[सिंध]]) में हुआ था। वे [[क्षत्रिय]] [[परिवार]] से सम्बन्ध रखते थे। उनके [[पिता]] काका भगवान दास तहसीलदार के पद पर नियुक्त थे। कृपलानी जी की शिक्षा सिंध और [[मुंबई]] के 'विल्सन कॉलेज' में आरंभ हुई। उन्होंने एम. ए. तक की शिक्षा [[पुणे]] के 'फ़र्ग्यूसन कॉलेज' से प्राप्त की थी, जिसकी स्थापना [[लोकमान्य तिलक]] और उनके साथियों ने की थी।[[चित्र:JB-Kripalani-stmap.jpg|thumb|left|सम्मान में जारी [[डाक टिकट]]]] | ||
====व्यावसायिक जीवन की शुरुआत==== | ====व्यावसायिक जीवन की शुरुआत==== | ||
कृपलानी जी ने एक शिक्षक के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन आंरभ किया था। सन [[1912]] से [[1917]] तक वे [[बिहार]] के मुजफ़्फ़रपुर कॉलेज में [[अंग्रेज़ी]] और [[इतिहास]] के प्रोफेसर रहे। | कृपलानी जी ने एक शिक्षक के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन आंरभ किया था। सन [[1912]] से [[1917]] तक वे [[बिहार]] के मुजफ़्फ़रपुर कॉलेज में [[अंग्रेज़ी]] और [[इतिहास]] के प्रोफेसर रहे। | ||
==गाँधीजी के सहयोगी== | ==गाँधीजी के सहयोगी== | ||
इन्हीं दिनों गाँधीजी ने चम्पारन की प्रसिद्ध यात्रा की थी और जे. बी. कृपलानी उनके निकट संपर्क में आए। वर्ष [[1919]]-[[1920]] में वे कुछ समय तक '[[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]]' में भी रहे और गाँधीजी के '[[असहयोग आंदोलन]]' के समय वहाँ से हट गए। 'असहयोग आंदोलन' आंरभ होने पर विद्यालयों का बहिष्कार करने वाले छात्रों के लिए गाँधीजी की प्ररेणा से कई प्रदेशों में विद्यापीठ स्थापित किए थे। जे. बी. कृपलानी 1920 से [[1927]] तक 'गुजरात विद्यापीठ' के प्रचार्य रहे। तभी से वे 'आचार्य़ कृपलानी' के नाम से प्रसिद्ध हुए। | इन्हीं दिनों गाँधीजी ने [[चम्पारन सत्याग्रह|चम्पारन]] की प्रसिद्ध यात्रा की थी और जे. बी. कृपलानी उनके निकट संपर्क में आए। वर्ष [[1919]]-[[1920]] में वे कुछ समय तक '[[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]]' में भी रहे और गाँधीजी के '[[असहयोग आंदोलन]]' के समय वहाँ से हट गए। 'असहयोग आंदोलन' आंरभ होने पर विद्यालयों का बहिष्कार करने वाले छात्रों के लिए गाँधीजी की प्ररेणा से कई प्रदेशों में विद्यापीठ स्थापित किए थे। जे. बी. कृपलानी 1920 से [[1927]] तक 'गुजरात विद्यापीठ' के प्रचार्य रहे। तभी से वे 'आचार्य़ कृपलानी' के नाम से प्रसिद्ध हुए। | ||
====क्रांतिकारी गतिविधियाँ==== | ====क्रांतिकारी गतिविधियाँ==== | ||
सन 1927 के बाद | सन 1927 के बाद आचार्य कृपलानी का जीवन पूर्ण रूप से स्वाधीनता संग्राम और [[गाँधीजी]] की रचनात्मक प्रवृत्तियों को आगे बढ़ाने में ही बीता। उन्होंने खादी और ग्राम उद्योगों को पुर्न:जीवित करने के लिए [[उत्तर प्रदेश]] में 'गाँधी आश्रम' नामक एक संस्था की स्थापना भी की। हरिजनों के उद्धार के लिए गाँधीजी की देशव्यापी यात्रा में वे बराबर उनके साथ रहे और इस दिशा में निरंतर अपने प्रयत्न जारी रखे। ये उनकी समाज सेवा की भावना ही थी, जो उन्हें राष्टपिता के इतने क़रीब ले आई। देश और समाज सेवा की निस्वार्थ भावना ने उन्हें देश की जनता के बीच लोकप्रिय बना दिया था। | ||
==उच्च पद प्राप्ति== | ==उच्च पद प्राप्ति== | ||
[[1935]] से [[1945]] तक उन्होंने [[कांग्रेस]] के महासचिव के रूप में काम किया। वर्ष [[1946]] की [[मेरठ]] कांग्रेस के वे अध्यक्ष चुने गए थे। कई प्रश्नों पर [[पंडित जवाहरलाल नेहरू]] से मतभेद हो जाने कारण उन्होंने अध्यक्षता छोड़ दी और 'किसान मजदूर प्रजा पार्टी' बनाकर विपक्ष में चले गए। वे एकाधिक बार [[लोक सभा]] के सदस्य भी रहे। | [[1935]] से [[1945]] तक उन्होंने [[कांग्रेस]] के महासचिव के रूप में काम किया। वर्ष [[1946]] की [[मेरठ]] कांग्रेस के वे अध्यक्ष चुने गए थे। कई प्रश्नों पर [[पंडित जवाहरलाल नेहरू]] से मतभेद हो जाने कारण उन्होंने अध्यक्षता छोड़ दी और 'किसान मजदूर प्रजा पार्टी' बनाकर विपक्ष में चले गए। वे एकाधिक बार [[लोक सभा]] के सदस्य भी रहे। | ||
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जे. बी. कृपलानी ने सभी आंदोंलनों में भाग लिया था और जेल की सज़ाएँ भोगीं। देश की आज़ादी में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले आचार्य कृपलानी जी का [[19]] | जे. बी. कृपलानी ने सभी आंदोंलनों में भाग लिया था और जेल की सज़ाएँ भोगीं। देश की आज़ादी में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले आचार्य कृपलानी जी का [[19 मार्च]], [[1982]] में निधन हुआ। | ||
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10:48, 5 मार्च 2013 का अवतरण
जे. बी. कृपलानी
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पूरा नाम | आचार्य जीवतराम भगवानदास कृपलानी |
अन्य नाम | आचार्य कृपलानी |
जन्म | 11 नवम्बर, 1888 |
जन्म भूमि | हैदराबाद |
मृत्यु | 19 मार्च, 1982 |
पति/पत्नी | सुचेता कृपलानी |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रतासेनानी और राजनीतिज्ञ |
पार्टी | कांग्रेस, किसान मजदूर प्रजा पार्टी |
पद | कांग्रेस के अध्यक्ष |
शिक्षा | एम. ए. |
विद्यालय | फ़र्ग्यूसन कॉलेज, पुणे |
जीवतराम भगवानदास कृपलानी (अंग्रेज़ी: Jivatram Bhagwandas Kripalani, जन्म- 11 नवम्बर, 1888 ; मृत्यु- 19 मार्च, 1982) भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रतासेनानी और राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने एक शिक्षक के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन प्रारम्भ किया था। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी से उनका निकट सम्पर्क था। वे 'गुजरात विद्यापीठ' के प्राचार्य भी रहे थे, तभी से उन्हें 'आचार्य कृपलानी' पुकारा जाने लगा था। हरिजन उद्धार के लिए कृपलानी जी निरंतर गाँधीजी के सहयोगी रहे। वे 'अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के महामंत्री तथा वर्ष 1946 की मेरठ कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे थे। उनकी पत्नी सुचेता कृपलानी भी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही थीं।
जन्म तथा शिक्षा
जे. बी. कृपलानी का जन्म 11 नवम्बर, 1888 को हैदराबाद (सिंध) में हुआ था। वे क्षत्रिय परिवार से सम्बन्ध रखते थे। उनके पिता काका भगवान दास तहसीलदार के पद पर नियुक्त थे। कृपलानी जी की शिक्षा सिंध और मुंबई के 'विल्सन कॉलेज' में आरंभ हुई। उन्होंने एम. ए. तक की शिक्षा पुणे के 'फ़र्ग्यूसन कॉलेज' से प्राप्त की थी, जिसकी स्थापना लोकमान्य तिलक और उनके साथियों ने की थी।

व्यावसायिक जीवन की शुरुआत
कृपलानी जी ने एक शिक्षक के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन आंरभ किया था। सन 1912 से 1917 तक वे बिहार के मुजफ़्फ़रपुर कॉलेज में अंग्रेज़ी और इतिहास के प्रोफेसर रहे।
गाँधीजी के सहयोगी
इन्हीं दिनों गाँधीजी ने चम्पारन की प्रसिद्ध यात्रा की थी और जे. बी. कृपलानी उनके निकट संपर्क में आए। वर्ष 1919-1920 में वे कुछ समय तक 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' में भी रहे और गाँधीजी के 'असहयोग आंदोलन' के समय वहाँ से हट गए। 'असहयोग आंदोलन' आंरभ होने पर विद्यालयों का बहिष्कार करने वाले छात्रों के लिए गाँधीजी की प्ररेणा से कई प्रदेशों में विद्यापीठ स्थापित किए थे। जे. बी. कृपलानी 1920 से 1927 तक 'गुजरात विद्यापीठ' के प्रचार्य रहे। तभी से वे 'आचार्य़ कृपलानी' के नाम से प्रसिद्ध हुए।
क्रांतिकारी गतिविधियाँ
सन 1927 के बाद आचार्य कृपलानी का जीवन पूर्ण रूप से स्वाधीनता संग्राम और गाँधीजी की रचनात्मक प्रवृत्तियों को आगे बढ़ाने में ही बीता। उन्होंने खादी और ग्राम उद्योगों को पुर्न:जीवित करने के लिए उत्तर प्रदेश में 'गाँधी आश्रम' नामक एक संस्था की स्थापना भी की। हरिजनों के उद्धार के लिए गाँधीजी की देशव्यापी यात्रा में वे बराबर उनके साथ रहे और इस दिशा में निरंतर अपने प्रयत्न जारी रखे। ये उनकी समाज सेवा की भावना ही थी, जो उन्हें राष्टपिता के इतने क़रीब ले आई। देश और समाज सेवा की निस्वार्थ भावना ने उन्हें देश की जनता के बीच लोकप्रिय बना दिया था।
उच्च पद प्राप्ति
1935 से 1945 तक उन्होंने कांग्रेस के महासचिव के रूप में काम किया। वर्ष 1946 की मेरठ कांग्रेस के वे अध्यक्ष चुने गए थे। कई प्रश्नों पर पंडित जवाहरलाल नेहरू से मतभेद हो जाने कारण उन्होंने अध्यक्षता छोड़ दी और 'किसान मजदूर प्रजा पार्टी' बनाकर विपक्ष में चले गए। वे एकाधिक बार लोक सभा के सदस्य भी रहे।
निधन
जे. बी. कृपलानी ने सभी आंदोंलनों में भाग लिया था और जेल की सज़ाएँ भोगीं। देश की आज़ादी में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले आचार्य कृपलानी जी का 19 मार्च, 1982 में निधन हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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