सोनिया गाँधी

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सोनिया गाँधी
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पूरा नाम सोनिया गाँधी
जन्म 9 दिसंबर 1946
जन्म भूमि इटली
अभिभावक स्टीफैनो
पति/पत्नी स्व.श्री राजीव गांधी
संतान राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी
नागरिकता भारतीय
पार्टी काँग्रेस
पद कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष
कार्य काल अध्यक्ष- 14 मार्च 1998 – 11 दिसंबर 2017 (19 वर्ष)
भाषा हिन्दी, अंग्रेज़ी
अन्य जानकारी सोनिया गाँधी कांग्रेस के अध्यक्ष के पद पर सबसे ज्यादा समय (19 वर्ष) तक कार्यरत रही हैं।
अद्यतन‎

सोनिया गाँधी (अंग्रेज़ी: Sonia Gandhi) प्रसिद्ध भारतीय नेत्री हैं। सोनिया का जन्म 9 दिसंबर 1946 को इटली के 'लुसियाना' में 'मैनो' परिवार में हुआ था। सोनिया गाँधी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष हैं। वे रायबरेली, उत्तर प्रदेश की सांसद हैं और इसके साथ ही वे 14 वीं लोकसभा में 'यूपीए' की भी प्रमुख हैं। पति राजीव गाँधी की हत्या होने के बाद उन्होंने अपना क़दम राजनीति में रखा। राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय राजनीतिक क्षितिज पर सोनिया गाँधी ने महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया हैं। सोनिया गाँधी भारत के प्रभावशाली राजनीतिक घराने की बहू हैं।

जीवन परिचय

सोनिया के पैदा होने पर लुसियाना के घरों में परंपरा के अनुसार गुलाबी रिबन बांधे गए। चर्च में सोनिया का नाम 'एडविजे एनटोनिया अलबिना मैनो' रखा गया, लेकिन उनके पिता 'स्टीफैनो' ने उन्हें सोनिया के नाम से पुकारा। रूसी नाम रखकर वो उन रूसी परिवारों का शुक्रिया अदा करना चाहते थे जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उनकी जान बचाई थी। सोनिया के पिता स्टीफैनो, मुसोलिनी की सेना में थे जो रूसी सेना से हार गई थी।

सोनिया गाँधी
Sonia Gandhi

सोनिया ने 'जियावेनो' के कॉन्वेन्ट स्कूल में शिक्षा गृहण की, वो अच्छी स्टूडेन्ट नहीं थी, लेकिन हंसमुख और दूसरों की मदद करने वाली थीं। क़फ और अस्थमा की शिकायत की वजह से वो बोर्डिंग स्कूल में अकेली सोती थीं। आगे जाकर 'तूरीन' में पढ़ाई के दौरान उनके मन में एयर होस्टेस बनने का अरमान भी जागा लेकिन वो सपना जल्द ही बदल गया। इसके बाद वो 'विदेशी भाषा की अध्यापिका' या 'संयुक्त राष्ट्र में अनुवादक' भी बनना चाहती थीं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को भारतीयों ने भले ही बड़ी सहजता से स्वीकार कर लिया हो, पर दूसरे देशों के लिए उनकी सफलता आश्चर्य का विषय बनी हुई है। एक साधारण परिवार से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के शीर्ष पर पहुंचने का उनका यह सफ़र लोगों में गहरी उत्सुकता जगाता रहा है। इसी को ध्यान में रखकर 'स्पैनिश लेखक और पत्रकार' 'जेवियर मोरो' ने उनके जीवन पर 'एल सारी रोजो' (द रेड साड़ी) नामक एक किताब लिखी है।

वैवाहिक जीवन

प्रारम्भिक शिक्षा के पश्चात, उन्होंने विदेशी भाषा सिखाने वाले एक शैक्षिक संस्था में दाख़िला लिया और अंग्रेज़ी, फ्रेंच व रूसी भाषाएं सीखीं। श्री राजीव गाँधी से उनकी मुलाकात 'कैंब्रिज' में हुई थी, जहां वे अंग्रेज़ी भाषा में आगे की पढ़ाई कर रही थीं। राजीव, उस वक़्त कैंम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में पढ़ रहे थे। साल 1965 में दोनों की मुलाकात एक 'ग्रीक रेस्त्रां' में हुई। उसके बाद सोनिया गाँधी भारत आ गई। राजीव गाँधी के साथ इनका विवाह 1968 में नयी दिल्ली में सम्पन्न हुआ। राजीव गाँधी पायलट थे और उनकी दिलचस्पी राजनीति में नहीं थी। सोनिया गाँधी ने अपने वैवाहिक जीवन का अधिकांश समय अपने परिवार की देखभाल करते हुए बिताया। अपनी सास इंदिरा गाँधी के सहयोगी के रूप में भी अपनी ज़िम्मेदारियों को इन्होंने बखूबी निभाया। सोनिया गाँधी की दो संतान, बेटा राहुल गाँधी और बेटी प्रियंका गाँधी हैं।[1]

पति के साथ योगदान

सोनिया गाँधी के पति राजीव गाँधी को राजनीति में कोई रुचि नहीं थी और वो एक एयरलाइन पायलेट की नौकरी करते थे। इमरजेन्सी के उपरान्त जब इन्दिरा गाँधी को सत्ता छोड़नी पड़ी थी तब कुछ समय के लिए राजीव गाँधी परिवार के साथ विदेश में रहने चले गए थे। परंतु 1980 में अपने छोटे भाई संजय गाँधी की एक हवाई जहाज़ दुर्घटना में असामयिक मृत्यु के बाद माता इन्दिरा गाँधी को सहयोग देने के लिए 1982 में राजीव गाँधी ने राजनीति में प्रवेश लिया। प्रारम्भ में सोनिया राजनीतिक गतिविधियों से बचती रही और पूरी तरह एक 'गृहिणी' की भूमिका में ढल चुकी थीं। भारतीय सार्वजनिक जीवन में उनकी मौजूदगी उनकी सास तथा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की हत्या और उनके पति के प्रधानमंत्री निर्वाचित होने के बाद बढ़ी।

सोनिया गाँधी एवं राजीव गाँधी
Rajiv Gandhi And Sonia Gandhi

प्रधानमंत्री की पत्नी होने के नाते सोनिया उनकी सरकारी मेज़बान की भूमिका अदा करतीं और उनके साथ अलग अलग देशो की यात्रा पर जातीं। वह अपने पति के निर्वाचन क्षेत्र अमेठी से जुड़े मामलों को भी समय समय पर देखती रहीं। उत्तर प्रदेश के विकास कार्यों पर उन्होंने पूरा ध्यान दिया, ख़ासतौर पर 'स्वास्थ्य संबंधी कैंप' एवं 'जन कल्याण कार्यों' को उन्होंने अपनी भागीदारी से बहुत बढ़ावा दिया। सन् 1984 में उनके पति के प्रधानमंत्रित्व काल में 'भारतीय सेना' द्वारा 'बोफ़ोर्स तोप' की ख़रीदारी में लिए गये 'किकबैक (कमीशन - घूस) का मुद्दा' उछला जिसका मुख्य पात्र इटली का एक नागरिक, ओटावियो क्वाटोराची था जो कि सोनिया गाँधी का मित्र था। अगले चुनाव में कांग्रेस की हार हुई और राजीव गाँधी को प्रधानमंत्री पद से हटना पड़ा। अगले चुनावों में कांग्रेस के जीतने और राजीव गाँधी के पुन: प्रधानमंत्री बनने की पूरी संभावना थी परंतु 21 मई , 1991 को तमिल आतंकवादियों ने राजीव गाँधी की एक बम विस्फ़ोट में हत्या कर दी थी।

संस्था अध्यक्ष

1991 में अपने पति की हत्या के बाद उन्होंने 'राजीव गाँधी फाउंडेशन' और इसकी सहयोगी संस्था 'राजीव गाँधी इन्स्टीट्यूट फ़ॉर कन्टेम्प्रेरी स्टडीज़' की स्थापना की। इन संस्थाओं के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने अपने पति की वैचारिक विरासत को आगे बढ़ाने में सक्रिय योगदान किया। साथ ही वे और भी अन्य गैर सरकारी संस्थाओं की अध्यक्ष हैं।

सोनिया गाँधी का राजनीतिक जीवन

पति की हत्या होने के पश्चात् कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया से पूछे बिना सोनिया गाँधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने की घोषणा कर दी परंतु सोनिया ने इसे स्वीकार नहीं किया और राजनीतिज्ञों के प्रति अपनी नफ़रत और अविश्वास को इन शब्दों में व्यक्त किया कि मैं अपने बच्चों को भीख मांगते देख लूँगी, परंतु मैं राजनीति में क़दम नहीं रखूँगी। काफ़ी समय तक राजनीति में क़दम न रख कर उन्होंने अपने बेटे और बेटी का पालन पोषण करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया। 'पी वी नरसिंहाराव' के कमज़ोर प्रधानमंत्रित्व काल के कारण कांग्रेस 1996 का आम चुनाव भी हार गई और उसके बाद 'सीताराम केसरी' के कांग्रेस के कमज़ोर अध्यक्ष होने से कांग्रेस का समर्थन कम होता जा रहा था जिससे कांग्रेस के नेताओं ने फिर से नेहरु-गाँधी परिवार के किसी सदस्य की आवश्यकता अनुभव की। 1997 में कोलकाता में कांग्रेस के सम्मेलन में आख़िरकार वह कांग्रेस की प्राथमिक सदस्य के रूप में शामिल हो गईं। उनके दबाव में सोनिया गाँधी ने 1997 में कोलकाता के 'प्लेनरी सेशन' में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की और उसके 62 दिनों के अंदर 1998 में सोनिया गाँधी कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं। उन्होंने सरकार बनाने की नाक़ामयाब कोशिश भी की। राजनीति में क़दम रखने के बाद उनका विदेशी होने का मुद्दा उठाया गया। उनकी कमज़ोर हिन्दी को भी मुद्दा बनाया गया। उन पर परिवारवाद का भी आरोप लगा लेकिन कांग्रेसियों ने उनका साथ नहीं छोडा और इन मुद्दों को नकारते रहे।

राजनीतिक जीवन की शुरुआत

डॉ. मनमोहन सिंह और सोनिया गाँधी
Manmohan Singh and Sonia Gandhi

राजनीतिक जीवन की शुरुआत में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को सबसे ज़्यादा मदद पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत माधवराव सिंधिया से मिली थी। सोनिया गाँधी अक्टूबर 1999 में बेल्लारी, कर्नाटक से और साथ ही अपने दिवंगत पति के निर्वाचन क्षेत्र अमेठी, उत्तर प्रदेश से लोकसभा के लिए चुनाव लड़ीं और क़रीब तीन लाख वोटों की विशाल बढत से विजयी हुईं। 1999 में 13 वीं लोक सभा में वे विपक्ष की नेता चुनी गयी। 2003 में तत्कालिक प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की एन डी ए सरकार के विरुद्ध सोनिया गाँधी सबके विरोध के बावज़ूद अकेले ही एक अविश्वास प्रस्ताव लाईं जो सफल नहीं हो पाया परंतु इससे एन डी ए सरकार की विरोधी के रूप में सोनिया गाँधी की व्यक्तिगत छवि अच्छी तरह स्थापित हो गई जिसका लाभ उन्हें 2004 के आम चुनावों में मिला।

सांसद

वामपंथी दलों ने भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर रखने के लिये कांग्रेस और सहयोगी दलों की सरकार का समर्थन करने का फ़ैसला किया जिससे कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों का स्पष्ट बहुमत पूरा हुआ। 2004 के चुनाव से पूर्व आम राय ये बनाई गई थी कि अटल बिहारी वाजपेयी ही प्रधानमंत्री बनेंगे पर सोनिया ने देश भर में घूमकर खूब प्रचार किया और सब को चौंका देने वाले नतीजों में कांग्रेस को अनपेक्षित 200 से ज़्यादा सीटें मिली। 2004 के आम चुनाव में उन्होंने कांग्रेस पार्टी के चुनाव अभियान का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया, जिसके परिणाम-स्वरूप कांग्रेस पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर आयी और कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) की गठबंधन सरकार बनी। इस चुनाव में सोनिया गाँधी उत्तर प्रदेश के रायबरेली क्षेत्र से सांसद चुनी गयीं।

प्रधानमंत्री बनने से इंकार

अपनी हार पर ख़ीजे हुए एन डी ए के नेताओं ने सोनिया गाँधी पर विदेशी मूल का होने पर आक्षेप लगाए और कुछ सुषमा स्वराज और उमा भारती जैसी जानी मानी नेताओं ने ऐसी घोषणा कर दी कि यदि सोनिया गाँधी प्रधानमंत्री बनीं तो वो अपना सिर मुँडवा लेंगीं और भूमि पर ही सोयेंगीं। कांग्रेस पार्टी ने सर्वसम्मति से संसद में सोनिया गाँधी को अपना नेता चुना तथा जनता की अपेक्षा थी कि वे प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगी परंतु उन्होंने इस पद के लेने से इंकार किया और यह घोषित किया कि वे प्रधान मंत्री नहीं बनना चाहती। 18 मई को उन्होंने मनमोहन सिंह को अपना उम्मीदवार बताया और पार्टी को उनका समर्थन करने की गुज़ारिश की । सबने इसका खूब विरोध किया और उनसे इस फ़ैसले को बदलने की गुज़ारिश की गई पर उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री बनना उनका लक्ष्य कभी नहीं था। सब नेताओं ने मनमोहन सिंह का समर्थन किया और वे प्रधानमंत्री बने पर सोनिया को दल का तथा गठबंधन का अध्यक्ष चुना गया।

त्यागपत्र

'राष्ट्रीय सुझाव समिति' का अध्यक्ष होने के कारण सोनिया गाँधी पर लाभ के पद पर होने के साथ लोकसभा का सदस्य होने का आक्षेप लगा जिसके फलस्वरूप 23 मार्च 2006 को उन्होंने राष्ट्रीय सुझाव समिति के अध्यक्ष के पद और लोकसभा का सदस्यता दोनों से त्यागपत्र दे दिया। मई 2006 में वे रायबरेली, उत्तरप्रदेश से पुन: सांसद चुनी गई और उन्होंने अपने समीपस्थ प्रतिद्वंदी को चार लाख से अधिक वोटों से हराया।[2]

आर्थिक मुद्दे

मई, 2006 तक सोनिया गाँधी 'राष्ट्रीय सलाहकार परिषद' की अध्यक्ष रहीं। 'राष्ट्रीय सलाहकार परिषद' ने समय समय पर सरकार को महत्त्वपूर्ण सामाजिक आर्थिक मुद्दों पर सुझाव दिये। परिषद के सुझावों पर आधारित जो योजनाएँ व नीतियाँ कार्यरूप में सामने आयीं, उनमें 'राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना', 'सूचना का अधिकार', 'राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य योजना', 'मिड डे मील स्कीम', जवाहरलाल नेहरू 'शहरी नवीकरण मिशन' और 'राष्ट्रीय पुनर्वास नीति' शामिल हैं। महात्मा गाँधी की वर्षगाँठ 2 अक्टूबर 2007 को सोनिया गाँधी ने संयुक्त राष्ट्र संघ को संबोधित किया। आज, श्रीमती गाँधी हिंदुस्तान की सियासत में सबसे ताकतवर शख़्सियतों में से एक हैं जिन्हें 'फोर्ब्स पत्रिका' ने दुनिया की तीन सबसे ताकतवर महिलाओं में शुमार किया है। वे साल 2007 और 2008 के लिए 'टाईम मैगजीन' की लिस्ट में दुनिया के 100 ताक़तवर शख़्सियतों में भी जगह बना चुकी हैं।

जनकल्याणकारी योजनाएँ

राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के अध्यक्ष के तौर पर उनकी पहल पर सरकार ने कई जनकल्याणकारी योजनाओं को लागू किया। उन्हें पर्यावरण के मुद्दों, कमज़ोर युवकों और महिला सशक्तिकरण और बच्चों के कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाओं में ख़ासी दिलचस्पी है। इनमें से कुछ अहम हैं-

सोनिया गाँधी और राहुल गांधी
Sonia Gandhi and Rahul Gandhi
  • राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना
  • सूचना का अधिकार
  • राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन
  • दोपहर का भोजन
  • जवाहरलाल अरबन रिन्यूएल मिशन
  • राष्ट्रीय पुनर्वास नीति आदि।

रुचि और पसंद

उन्होंने अपने पति पर दो किताब - 'राजीव' और 'राजीव्स वर्ल्ड' भी लिखी हैं। इसके अलावा दो भाग में समाहित पुस्तक - 'फ़्रीडम्स डॉटर' एवं 'टू एलोन, टू टुगेदर' का सम्पादन किया है। जिनमें पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गाँधी के बीच, 1922 से 1964 के दौरान हुए पत्राचार का संकलन किया गया है। इसके अलावा श्रीमती गाँधी को हिंदुस्तानी, शास्त्रीय और आदिवासी कला का भी शौक़ है। वे हथकरघा, हस्तकला, भारतीय समकालीन साहित्य, पारंपरिक और आदिवासी कला, और लोकगीतों में भी दिलचस्पी रखती हैं। उन्होंने तैलचित्रों के संरक्षण विषय में बकायदा 'नेशनल म्यूजियम' से डिप्लोमा भी हासिल किया है।

कांग्रेस अध्यक्ष

सोनिया गाँधी देश की सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस के सबसे लंबे समय तक रहने वाली कांग्रेस अध्यक्ष रही हैं। इस मामले में इन्होंने नेहरू-गाँधी परिवार के सारे रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। वर्ष 1885 ईस्वी में कांग्रेस की स्थापना मुंबई में हुई। इसके पहले अध्यक्ष 'डब्ल्यू सी बनर्जी' हैं। कांग्रेस पार्टी के 1885 ईस्वी में स्थापना के बाद के 125 वर्षों के इतिहास में 35 साल नेहरू-गाँधी परिवार के लोग अध्यक्ष रहे। इसमें 2 साल मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू 6 साल, इंदिरा गाँधी 8 साल, राजीव गाँधी 7 साल, जबकि सोनिया गाँधी 12 साल कांग्रेस के अध्यक्ष के पद पर रहे। अब सोनिया गाँधी पुन: और 4 साल के लिए कांग्रेस की अध्यक्ष चुन ली गयी हैं। अपने पूरे राजनीतिक जीवन में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने त्याग और सेवा की प्राचीन भारतीय परंपरा का उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने सत्ता के लिए राजनीति की परंपरा को तोड़कर एक नयी मिसाल क़ायम की है। श्रीमती गाँधी दरअसल पंडित नेहरु, इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी के उन्हीं कामों को आगे बढ़ा रही हैं जिसका मकसद हिंदुस्तान को एक आधुनिक, ताकतवर और गतिशील देश बनाना है।[3]

अविचलित साहसी

सोनिया गाँधी भारत की एक अविचलित साहसी हैं। वे भारत की सभ्यता, संस्कृति, कला, विश्वास, रीति-रिवाज में बसी हुई हैं। वे भारत के महान् स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार की बहू हैं, उन्होंने पं. मोतीलाल नेहरू, श्रीमती इन्दिरा गाँधी व अपने भारत रत्न पति राजीव गाँधी के आदर्शों, परम्पराओं को बड़ी शिद्दत से महसूस किया है। वे भारत आयीं तो देश श्रीमती इन्दिरा गाँधी के नेतृत्व में दुनिया के विकासवाद में अपने होने का एहसास करा रहा था। सारी दुनिया ने इस महिला की पद के प्रति निर्लिप्त भावना को देखा है।[4]


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