भारतीय जनता पार्टी
भारतीय जनता पार्टी
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पूरा नाम | भारतीय जनता पार्टी |
संक्षेप नाम | भाजपा (BJP) |
गठन | वर्ष 1980 |
प्रथम अध्यक्ष | अटल बिहारी वाजपेयी |
वर्तमान अध्यक्ष | जगत प्रकाश नड्डा |
नेता लोकसभा | नरेंद्र मोदी |
नेता राज्यसभा | थावर चंद गहलोत |
मुख्यालय | 11, अशोक रोड, नई दिल्ली |
विचारधारा | हिंदुत्व, हिन्दू राष्ट्रवाद, आर्थिक उदारीकरण, अखंड मानवतावाद |
चुनाव चिह्न | कमल का फूल |
समाचार पत्र | कमल संदेश |
गठबंधन | राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) |
युवा संगठन | भारतीय जनता युवा मोर्चा |
महिला संगठन | बीजेपी महिला मोर्चा |
विद्यार्थी संगठन | अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद |
संबंधित लेख | भारतीय जनसंघ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दीनदयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, लाल कृष्ण आडवाणी |
रंग | भगवा |
अन्य जानकारी | भारतीय जनता पार्टी की स्थापना 1980 में की गई थी। इससे पहले 1977 से 1979 तक इसे 'जनता पार्टी' और उससे पहले 1951 से 1977 तक 'भारतीय जनसंघ' के नाम से जाना जाता था। |
संसद में सीटों की संख्या
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लोकसभा | 303/543[1] |
राज्यसभा | 73/245 |
आधिकारिक वेबसाइट | भारतीय जनता पार्टी |
अद्यतन | 14:39, 15 दिसम्बर 2019 (IST)
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भारतीय जनता पार्टी (अंग्रेज़ी: Bharatiya Janata Party, संक्षेप नाम:भाजपा) भारत का एक प्रमुख राजनीतिक दल है। इस दल के वर्तमान अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा हैं। भारतीय जनता युवा मोर्चा इस दल का युवा संगठन है। इस पार्टी ने अपनी शुरुआत हिन्दू एजेंडे के साथ की थी। पार्टी का गठन पुर्नगठित जनसंघ के रूप में 6 अप्रैल, 1980 को सम्पन्न हुआ था। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में प्रथम व्यक्ति अटल बिहारी वाजपेयी रहे। इस दल में अधिकांश सदस्य भूतपूर्व जनसंघ के शामिल हुए, जिसका 1977 में जनता पार्टी में विलय हो गया था। इसके साथ ही कुछ गैर जनसंघी भी इसमें शामिल हुए। इस दल के गठन के बाद जो चुनाव हुये, उसमें इस दल को अपेक्षाकृत सफलता नहीं मिली और 1984 के लोकसभा के आम चुनाव में इस दल के दो सदस्य लोकसभा के लिए निर्वाचित किये गये। 1989 में चुनाव तथा 1991 के लोकसभा के मध्यावधि चुनाव में इस दल को पर्याप्त सफलता मिली।
इतिहास
भारतीय जनता पार्टी की स्थापना 1980 में की गई थी। इससे पहले 1977 से 1979 तक इसे 'जनता पार्टी' के साथ के 'भारतीय जनसंघ' और उससे पहले 1951 से 1977 तक 'भारतीय जनसंघ' के नाम से जाना जाता था। भारतीय जनता पार्टी के इतिहास को तीन अलग-अलग हिस्सों में बांटा जा सकता है-
- भारतीय जनसंघ
- जनता पार्टी
- भारतीय जनता पार्टी
भारतीय जनसंघ
'भारतीय जनसंघ' की स्थापना श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में की थी। पार्टी को पहले आम चुनाव में कोई ख़ास सफलता नहीं मिली, लेकिन इसे अपनी पहचान स्थापित करने में कामयाबी ज़रुर प्राप्त हो गई थी। भारतीय जनसंघ ने शुरु से ही कश्मीर की एकता, गौ-रक्षा, ज़मींदारी प्रथा और परमिट-लाइसेंस-कोटा राज आदि समाप्त करने जैसे मुद्दों पर विशेष रूप से ज़ोर दिया था। कांग्रेस का विरोध करते हुए जनसंघ ने राज्यों में अपना संगठन फैलाने और उसे मज़बूती प्रदान करने का काम प्रारम्भ किया, लेकिन चुनावों में पार्टी को आशा के अनुरूप कामयाबी प्राप्त नहीं हुई।[2] कांग्रेस का विरोध करने के लिए जनसंघ ने जयप्रकाश नारायण का समर्थन भी किया। जयप्रकाश नारायण ने श्रीमती इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ नारा दिया कि "सिंहासन हटाओ कि जनता आती है।" 1975 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की। इस दौरान दूसरी विपक्षी पार्टियों की तरह जनसंघ के भी हज़ारों कार्यकर्ताओं और नेताओं को जेल में डाला गया।
जनता पार्टी
1977 में आपातकाल की समाप्ति के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। तब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और भारतीय जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री और लालकृष्ण आडवाणी को सूचना और प्रसारण मंत्री बनाया गया। लेकिन ये सरकार अधिक दिनों तक टिक नहीं सकी, क्योंकि आपसी गुटबाज़ी और लड़ाई की वजह से सरकार तीस माह में ही गिर गई।
भारतीय जनता पार्टी
1980 के चुनावों में विभाजित जनता पार्टी की हार हुई। भारतीय जनसंघ, जनता पार्टी से पृथक् हो गया और अब उसने अपना नया नाम 'भारतीय जनता पार्टी' रख लिया। इस समय पार्टी संसट के दौर से गुजर रही थी। अटल बिहारी वाजपेयी को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया। दिसंबर, 1980 में मुंबई में भारतीय जनता पार्टी का पहला अधिवेशन हुआ। भाजपा ने कांग्रेस के साथ अपने विरोध को जारी रखा और पंजाब और श्रीलंका को लेकर तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार की आलोचना की।[2]
1984 की चुनावी हार
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए आम चुनावों में उनके पुत्र राजीव गांधी को तीन-चौथाई बहुमत प्राप्त हुआ। चुनाव में भाजपा को सिर्फ़ दो सीटें ही प्राप्त हुईं। ये बीजेपी के लिए एक बहुत बड़ा झटका था। पार्टी ने इस झटके से उबरने के प्रयास शुरु कर दिए। उसने 1984 में हुए आम चुनावों के नतीजों का विश्लेषण किया। चुनाव सुधारों की वक़ालत की गई। बंगलादेश से आने वाले घुसपैठियों की समस्या को उठाया गया।
भाजपा ने बोफ़ोर्स तोप सौदे को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को घेरा। 1989 के चुनावों में भाजपा ने विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल से सीटों का तालमेल किया। इन चुनावों में भाजपा ने लोकसभा में अपने सदस्यों की संख्या 1984 में दो से बढ़ाकर 89 तक कर दी। विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार को भाजपा ने बाहर से बिना शर्त समर्थन देने का ऐलान किया। बाद में पार्टी के नेताओं ने अपने इस फ़ैसले को ग़लत ठहराया।
1991 की चुनावी विजय
विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछड़ी जातियों और जनजातियों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए मंडल आयोग की सिफ़ारिशें लागू कीं। भाजपा को ऐसा लगने लगा कि वे अपना वोट बैंक खड़ा करना चाहते हैं। इसीलिए अब भाजपा ने हिंदुत्व के मुद्दे को दोबारा उठाया। पार्टी ने अयोध्या में 'बाबरी मस्जिद' की जगह राम मंदिर बनाने की बात कही। इस प्रकार हिंदू वोट बैंक को इकठ्ठा रखने की कोशिश की गई, जिसके मंडल रिपोर्ट आने के बाद बँट जाने का ख़तरा पैदा हो गया था। अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा भी की। उनकी गिरफ़्तारी के बाद भाजपा ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद 1991 में हुए चुनावों में प्रचार के दौरान ही राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। भाजपा को इन चुनावों में 119 सीटों पर विजय मिली। इसका बड़ा श्रेय अयोध्या मुद्दे को जाता था। कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, लेकिन पी. वी. नरसिंहराव अल्पमत की सरकार चलाते रहे। भाजपा ने सरकार का विरोध किया। शेयर घोटाले और आर्थिक उदारीकरण को लेकर उसने सरकार को घेरना लगातार जारी रखा।[2]
जीत-हार का सिलसिला
1996 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रुप में उभरी। राष्ट्रपति डॉक्टर शंकरदयाल शर्मा ने अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से उनकी सरकार सिर्फ़ 13 दिन में गिर गई। बाद में कांग्रेस के बाहरी समर्थन से बनीं एच.डी. देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल की सरकारें भी कार्यकाल पूरा करने में असमर्थ रहीं। 1998 में एक बार फिर आम चुनाव हुए। इन चुनावों में भाजपा ने क्षेत्रीय पार्टियों से गठबंधन और सीटों का तालेमल किया। ख़ुद पार्टी को 181 सीटों पर जीत हासिल हुई। अटल बिहारी वाजपेयी एक बार फिर प्रधानमंत्री बने, लेकिन गठबंधन की एक प्रमुख सहयोगी जयललिता की एआईएडीएमके के समर्थन वापस लेने से वाजपेयी सरकार गिर गई। 1999 में एक बार फिर आम चुनाव हुए। इन चुनावों को भाजपा ने 23 सहयोगी पार्टियों के साथ साझा घोषणा-पत्र पर लड़ा और गठबंधन को "राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन" (एन.डी.ए.) का नाम दिया। एनडीए को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी फिर प्रधानमंत्री बनाये गये। वे सही मायनों में पहले ग़ैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ https://www.bbc.com/hindi/india-48429467
- ↑ 2.0 2.1 2.2 भारतीय जनता पार्टी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 31 अगस्त, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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