"सुचेता कृपलानी": अवतरणों में अंतर
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'''सुचेता कृपलानी''' अथवा सुचेता मज़ूमदार ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sucheta Kriplani'', जन्म- [[25 जून]], [[1908]]; मृत्यु- [[1 दिसंबर]], [[1974]]) एक प्रसिद्ध भारतीय स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनीतिज्ञ थीं। ये [[उत्तर प्रदेश]] की चौथी और [[भारत]] की प्रथम महिला [[मुख्यमंत्री]] थीं। | '''सुचेता कृपलानी''' अथवा सुचेता मज़ूमदार ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sucheta Kriplani'', जन्म- [[25 जून]], [[1908]]; मृत्यु- [[1 दिसंबर]], [[1974]]) एक प्रसिद्ध भारतीय स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनीतिज्ञ थीं। ये [[उत्तर प्रदेश]] की चौथी और [[भारत]] की प्रथम महिला [[मुख्यमंत्री]] थीं। | ||
== | ==जीवन परिचय== | ||
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====मजबूत इच्छाशक्ति और जुझारूपन की मिसाल==== | |||
[[1963]] | [[भारत छोड़ो आंदोलन]] में लडकियों को ड्रिल और लाठी चलाना सिखाया। नोआखली के दंगा पीडित इलाकों में [[गांधी जी]] के साथ चलते हुए पीड़ित महिलाओं की मदद की। [[15 अगस्त]] [[1947]] को संविधान सभा में वन्देमातरम् गाया। [[उत्तर प्रदेश]] की मुख्यमंत्री के रूप में राज्य कर्मचारियों की हड़ताल को मजबूत इच्छाशक्ति के साथ वापस लेने पर मजबूर किया। पहले साम्यवाद से प्रभावित हुईं और फिर पूरी तरह गांधीवादी हो गईं। उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी की जिंदगी के ये पहलू उन्हें ऐसी महिला की पहचान देते हैं, जिसमें अपनत्व और जुझारूपन कूट-कूट कर भरा था। एक शख्सीयत कई रूप- आज इतने गुणों वाले राजनेता शायद ही मिलें। भारत छोड़ो आंदोलन में जब सारे पुरुष नेता जेल चले गए तो सुचेता कृपलानी ने अलग रास्ते पर चलने का फैसला किया। ‘बाकियों की तरह मैं भी जेल चली गई तो आंदोलन को आगे कौन बढ़ाएगा।’ वह भूमिगत हो गईं। उस दौरान उन्होंने [[कांग्रेस]] का महिला विभाग बनाया और पुलिस से छुपते-छुपाते दो साल तक आंदोलन भी चलाया। इसके लिए अंडरग्राउण्ड वालंटियर फोर्स बनाई। लड़कियों को ड्रिल, लाठी चलाना, प्राथमिक चिकित्सा और संकट में घिर जाने पर आत्मरक्षा के लिए हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी दी। राजनीतिक कैदियों के परिवार को राहत देने का जिम्मा भी उठाती रहीं। दंगों के समय महिलाओं को राहत पहुंचाने, चीन हमले के बाद भारत आए तिब्बती शरणार्थियों के पुनर्वास या फिर किसी से भी मिलने पर उसका दुख-दर्द पूछकर उसका हल तलाशने की कोशिश हमेशा रहती।<ref name="Hlive">{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/up/winner/article1-UP-election-344-345-209140.html |title=सुचेता कृपलानी जैसी महिलाओं की हमदर्द अब कहां |accessmonthday=18 जून |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=हिन्दुस्तान लाइव |language=हिंदी }}</ref> | ||
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* [[1942]] से [[1944]] तक निरन्तर निरन्तर सफल भूमिगत आंदोलन चलाया फिर 1944 में गिरफ्तार किया गया। | |||
* [[1946]] में केन्द्रीय विधानसभा की सदस्य। | |||
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12:35, 18 जून 2014 का अवतरण
सुचेता कृपलानी
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पूरा नाम | सुचेता कृपलानी |
अन्य नाम | सुचेता मज़ूमदार |
जन्म | 25 जून, 1908 |
जन्म भूमि | अम्बाला, हरियाणा |
मृत्यु | 1 दिसंबर, 1974 |
पति/पत्नी | जे. बी. कृपलानी |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | भारत की प्रथम महिला मुख्यमंत्री |
पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
पद | उत्तर प्रदेश की चौथी मुख्यमंत्री |
कार्य काल | 2 अक्तूबर, 1963 – 13 मार्च, 1967 |
शिक्षा | बी.ए, एम.ए. |
विद्यालय | पंजाब विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय |
भाषा | हिंदी, अंग्रेज़ी |
अन्य जानकारी | 1948 से 1960 तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव रहीं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में इतिहास की प्राध्यापिका भी रहीं। |
सुचेता कृपलानी अथवा सुचेता मज़ूमदार (अंग्रेज़ी: Sucheta Kriplani, जन्म- 25 जून, 1908; मृत्यु- 1 दिसंबर, 1974) एक प्रसिद्ध भारतीय स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनीतिज्ञ थीं। ये उत्तर प्रदेश की चौथी और भारत की प्रथम महिला मुख्यमंत्री थीं।
जीवन परिचय
सुचेता कृपलानी का जन्म 25 जून, 1908 को भारत के हरियाणा राज्य के अम्बाला शहर में हुआ और सुचेता कृपलानी की शिक्षा लाहौर और दिल्ली में हुई थी। 1963 से 1967 तक वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। सुचेता कृपलानी को देश की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं। ये बंटवारे की त्रासदी में महात्मा गांधी के बेहद क़रीब रहीं। सुचेता कृपलानी उन चंद महिलाओं में शामिल हैं, जिन्होंने बापू के क़रीब रहकर देश की आज़ादी की नींव रखी। वह नोवाखली यात्रा में बापू के साथ थीं। वर्ष 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने से पहले वह लगातार दो बार लोकसभा के लिए चुनी गई। सुचेता दिल की कोमल तो थीं, लेकिन प्रशासनिक फैसले लेते समय वह दिल की नहीं, दिमाग की सुनती थीं। उनके मुख्यमंत्री काल के दौरान राज्य के कर्मचारियों ने लगातार 62 दिनों तक हड़ताल जारी रखी, लेकिन वह कर्मचारी नेताओं से सुलह को तभी तैयार हुई, जब उनके रुख़ में नरमी आई। जबकि सुचेता के पति आचार्य कृपलानी खुद समाजवादी थे। आज़ादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें जेल की सज़ा हुई। 1946 में वह संविधान सभा की सदस्य चुनी गई। 1948 से 1960 तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव थी।
मजबूत इच्छाशक्ति और जुझारूपन की मिसाल
भारत छोड़ो आंदोलन में लडकियों को ड्रिल और लाठी चलाना सिखाया। नोआखली के दंगा पीडित इलाकों में गांधी जी के साथ चलते हुए पीड़ित महिलाओं की मदद की। 15 अगस्त 1947 को संविधान सभा में वन्देमातरम् गाया। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के रूप में राज्य कर्मचारियों की हड़ताल को मजबूत इच्छाशक्ति के साथ वापस लेने पर मजबूर किया। पहले साम्यवाद से प्रभावित हुईं और फिर पूरी तरह गांधीवादी हो गईं। उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी की जिंदगी के ये पहलू उन्हें ऐसी महिला की पहचान देते हैं, जिसमें अपनत्व और जुझारूपन कूट-कूट कर भरा था। एक शख्सीयत कई रूप- आज इतने गुणों वाले राजनेता शायद ही मिलें। भारत छोड़ो आंदोलन में जब सारे पुरुष नेता जेल चले गए तो सुचेता कृपलानी ने अलग रास्ते पर चलने का फैसला किया। ‘बाकियों की तरह मैं भी जेल चली गई तो आंदोलन को आगे कौन बढ़ाएगा।’ वह भूमिगत हो गईं। उस दौरान उन्होंने कांग्रेस का महिला विभाग बनाया और पुलिस से छुपते-छुपाते दो साल तक आंदोलन भी चलाया। इसके लिए अंडरग्राउण्ड वालंटियर फोर्स बनाई। लड़कियों को ड्रिल, लाठी चलाना, प्राथमिक चिकित्सा और संकट में घिर जाने पर आत्मरक्षा के लिए हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी दी। राजनीतिक कैदियों के परिवार को राहत देने का जिम्मा भी उठाती रहीं। दंगों के समय महिलाओं को राहत पहुंचाने, चीन हमले के बाद भारत आए तिब्बती शरणार्थियों के पुनर्वास या फिर किसी से भी मिलने पर उसका दुख-दर्द पूछकर उसका हल तलाशने की कोशिश हमेशा रहती।[1]
राजनीतिक सफ़र
- 1939 में नौकरी छोड़कर राजनीति में आईं।
- 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह किया और गिरफ्तार।
- 1941-1942 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महिला विभाग और विदेश विभाग की मंत्री।
- 1942 से 1944 तक निरन्तर निरन्तर सफल भूमिगत आंदोलन चलाया फिर 1944 में गिरफ्तार किया गया।
- 1946 में केन्द्रीय विधानसभा की सदस्य।
- 1946 में संविधान सभा की सदस्य और फिर इसकी प्रारूप समिति की सदस्य बनीं।
- 1948-1951 तक कांग्रेस कार्यकारिणी की सदस्य।
- 1948 में पहली बार विधानसभा के लिए चुनी गईं।
- 1950 से लेकर 1952 तक प्रॉविजनल लोकसभा की सदस्य रहीं।
- 1949 में संयुक्त राष्ट्रसंघ महासभा अधिवेशन में भारतीय प्रतिनिधि मंडल की सदस्य के रूप में गईं।
- 1952 और 1957 में नई दिल्ली से लोकसभा के लिए निर्वाचित। इस दौरान लघु उद्योग मंत्रालय में राज्य मंत्री रहीं।
- 1962-1967 तक मेंहदावल से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए निर्वाचित।
- 2 अक्तूबर, 1963 से 13 मार्च, 1967 तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री।
- 1967 में गोण्डा से लोकसभा के लिए चुनी गईं।[1]
निधन
स्वतंत्रता आंदोलन में श्रीमती सुचेता कृपलानी के योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। 1 दिसंबर, 1974 को उनका निधन हो गया। अपने शोक संदेश में श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा कि “सुचेता जी ऐसे दुर्लभ साहस और चरित्र की महिला थीं, जिनसे भारतीय महिलाओं को सम्मान मिलता है।”
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 सुचेता कृपलानी जैसी महिलाओं की हमदर्द अब कहां (हिंदी) हिन्दुस्तान लाइव। अभिगमन तिथि: 18 जून, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
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