"पूर्णानंद दास गुप्ता": अवतरणों में अंतर
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पूर्णानंद दास गुप्ता (अंग्रेज़ी: Purananand Das Gupta, जन्म- 1900, ज़िला ढाका, बांग्लादेश; ) समाजवादी पार्टी के सदस्य थे। ये दो बार आजीवन कारावास सजा से दंडित किये गये थे। पूर्णानंद दास गुप्ता असहयोग आंदोलन में भी सम्मिलित हुए थे।।[1]
जन्म एवं परिचय
पूर्णानंद दास गुप्ता का जन्म 1900 ई. में ढाका (अब बाग्ला देश) में हुआ था। 1920 में जब वे ढाका कॉलेज में बी. ए. की परीक्षा देने ही वाले थे, परीक्षा छोड़कर असहयोग आंदोलन में सम्मिलित हो गए। कुछ समय तक ढाका के राष्ट्रीय विद्यालय में अध्यापक भी रहे थे।
क्रांतिकारी गतिविधियाँ
भारतवासियों पर अंग्रेज़ों के अत्याचार, विशेषत: जलियांवाला बाग़ हत्याकांड की घटना ने पूर्णानंद को पक्का राष्ट्रवादी बना दिया था। उन्होंने कांग्रेस और खिलाफत आंदोलन को संगठित करने में योग दिया था।पूर्णानंद दास गुप्ता का शीघ्र ही संपर्क क्रांतिकारी संगठन ‘अनुशीलन समिती' से हो गया था। वे मजदूरों और किसानों में काम करने लगे थे। ये सब काम प्रकट थे पर परदे के पीछे पूर्णानंद दास क्रांतिकारी कार्यो में लगे रहते थे।
कारावास
शीघ्र ही पुलिस को पूर्णानंद दास गुप्ता की वास्तविक गतिविधियों का पता चल गया था। 1924 में पूर्णानंद दास गुप्ता पहली बार गिरफ्तार हुए और 4 वर्ष तक जेल में बंद रहे थे। 1930 में ‘चिटगांव शस्त्रागार’ कांड में पूर्णानंद दास गुप्ता की गिरफ्तारी हुई थी। मुकदमा चलने से पहले ही अंग्रेज अधीक्षक पर आक्रमण करने के अभियोग में 3 वर्ष की सजा हो गई थी। 1934 में पचास साथियों के साथ पूर्णानंद दास गुप्ता पर मुकदमा चला और आजीवन कारावास की सजा हुई। पर इस बीच पूर्णानंद अपने तीन साथियों के साथ अलीपुर सेंट्रल जेल से फरार हो गए। 1935 में गिरफ्तार हुए और ‘टीटागढ़ षड्यंत्र केस’ में मुकदमा चला और इसमें भी पूर्णानंद दास गुप्ता को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। इस प्रकार पूर्णानंद दास गुप्ता को कुल 50 वर्ष की कैद की सजा हुई थी। जेल में उन पर बड़े. अत्याचार किए गए थे।[1]
समाजवादी पार्टी के सदस्य
1946 में अन्य बंदियों के साथ पूर्णानंद दास गुप्ता भी जेल से रिहा हुए थे और समाजवादी पार्टी के सदस्य बन गए थे। किंतु मतभेद होने के कारण 1994 में पूर्णानंद दास गुप्ता ने यह पार्टी छोड़ दी और शेष जीवन सक्रिय राजनीति से अलग रह कर बिताया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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