तिलका माँझी

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तिलका माँझी (अंग्रेज़ी: Tilka Manjhi ; जन्म- 11 फ़रवरी, 1750, सुल्तानगंज; शहादत- 1785, भागलपुर) 'भारतीय स्वाधीनता संग्राम' के पहले शहीद थे। इन्होंने अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध एक लम्बी लड़ाई छेड़ी थी। तिलका माँझी ने संथाल विद्रोह का भी नेतृत्त्व किया था। इस वीर स्वतंत्रता सेनानी को 1785 में गिरफ़्तार कर लिया गया और फिर फ़ाँसी दे दी गई।

  • तिलका माँझी का जन्म एक संथाल परिवार में 11 फरवरी, 1750 को बिहार के सुल्तानगंज के 'तिलकपुर' गाँव में हुआ था।
  • इनके पिता का नाम 'सुंदरा मुर्मू' था।
  • तिलका माँझी को 'जाबरा पहाड़िया' के नाम से भी जाना जाता था।
  • 1771 से 1784 तक तिलका माँझी अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध लड़ते रहे। इन्होंने संथाल विद्रोह का भी नेतृत्व किया था और अंग्रेज़ों से कई बार घमासान लड़ाई छेड़ी। यही कारण है कि 1857 के सिपाही विद्रोह को भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम न मानकर यहाँ के संथाल विद्रोह को ही प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम मानने की वकालत की जाती रही है।
  • इनकी क्रान्तिकारी गतिविधियों का मुख्य केंद्र 'वनचरीजोर' (भागलपुर) था।
  • तिलका माँझी द्वारा गांव में विद्रोह का संदेश सखुवा पत्ता के माध्यम से भेजा जाता था।[1]
  • राजमहल के सुपरिटेंडेंट क्लीवलैंड को तिलका माँझी ने 13 जनवरी, 1784 को अपने तीरों से मार गिराया।
  • एक अन्य पहाड़िया सरदार जउराह ने धोखे से तिलका माँझी को 1785 में गिरफ़्तार करवा दिया।
  • बाद में भागलपुर में बरगद के वृक्ष पर लटकाकर तिलका माँझी को फाँसी दे दी गई।

 

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. तिलका मांझी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 26 मई, 2014।

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