भारत का प्रथम गणतंत्र दिवस

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भारत का प्रथम गणतंत्र दिवस
गणतंत्र दिवस पर गुरखा राइफल्स की परेड
विवरण प्रत्येक वर्ष का 26 जनवरी एक ऐसा दिन है जब प्रत्‍येक भारतीय के मन में देश भक्ति की लहर और मातृभूमि के प्रति अपार स्‍नेह भर उठता है।
उद्देश्य यह आयोजन हमें देश के सभी शहीदों के नि:स्‍वार्थ बलिदान की याद दिलाता है, जिन्‍होंने आज़ादी के संघर्ष में अपने जीवन बलिदान कर दिए और विदेशी आक्रमणों के विरुद्ध अनेक लड़ाइयाँ जीती।
इतिहास 26 जनवरी, 1950 को देश का संविधान लागू हुआ और इस प्रकार भारत सरकार के संसदीय रूप के साथ एक संप्रभुताशाली समाजवादी लोक‍तांत्रिक गणतंत्र के रूप में भारत देश सामने आया। भारतीय संविधान, जिसे देश की सरकार की रूपरेखा का प्रतिनिधित्‍व करने वाले पर्याप्‍त विचार विमर्श के बाद विधान मंडल द्वारा अपनाया गया, तब से 26 जनवरी को भारत के गणतंत्र दिवस के रूप में भारी उत्‍साह के साथ मनाया जाता है और इसे राष्‍ट्रीय अवकाश घोषित किया जाता है।
विशेष प्रधानमंत्री द्वारा गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्‍या (25 जनवरी) पर राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित किया जाता है। इसके बाद अगले दिन, जो जवान आज़ादी की लड़ाई में शहीद हुए उनकी याद में इंडिया गेट पर अमर ज्योति जलाई जाती है। इसके शीघ्र बाद 21 तोपों की सलामी दी जाती है और राष्ट्रपति महोदय द्वारा राष्‍ट्रीय ध्‍वज फहराया जाता है एवं राष्‍ट्रगान होता है। महामहिम राष्ट्रपति के साथ एक उल्‍लेखनीय विदेशी राष्ट्र प्रमुख आते हैं, जिन्‍हें आयोजन के मुख्‍य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है।
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अन्य जानकारी सबसे पहली बार 21 तोपों की सलामी के बाद भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने फहरा कर 26 जनवरी, 1950 को भारतीय गणतंत्र के ऐतिहासिक जन्‍म की घो‍षणा की। ब्रिटिश राज से आज़ादी पाने के 894 दिन बाद हमारा देश स्‍वतंत्र राज्‍य बना। तब से हर वर्ष पूरे राष्‍ट्र में बड़े उत्‍साह और गर्व से यह दिन मनाया जाता है।

भारत के पहले गणतंत्र दिवस पर तत्कालीन गवर्नमेंट हाउस (वर्तमान राष्ट्रपति भवन) जगमग रोशनी से गुलजार था जहां भारत के गणतंत्र के रूप में दुनिया के पटल पर उभरने के साक्षी रहे लोगों में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो शामिल थे। ‘रेमिनिसेंस ऑफ फर्स्ट रिपब्लिक डे’ के अनुसार, 26 जनवरी 1950 को देश के पहले गणतंत्र दिवस पर तत्कालीन गवर्नमेंट हाउस में कई देशों के राजनयिकों और सुकर्णो सहित 500 से अधिक अतिथि थे। इन सब अतिथियों के बीच देश के अंतिम गर्वनर जनरल सी. राजगोपालाचारी ने भारत के गणतंत्र बनने की घोषणा करते हुए कहा, ‘इंडिया जो भारत है, वह सम्प्रभुता सम्पन्न लोकतांत्रिक गणतंत्र होगा।’ देश के इतिहास के उस अभूतपूर्व क्षण में स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलायी गई। भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति हीरालाल कानिया ने हिन्दी में शपथ दिलायी। इस मौके पर राजेन्द्र प्रसाद काली अचकन, उजला चूड़ीदार पाजामा और सफेद गांधी टोपी पहने हुए थे। 20वीं शताब्दी के उस ऐतिहासिक क्षण के गवाहों में निवर्तमान गर्वनर जलरल सी. राजगोपालाचारी, प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, उपप्रधानमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल, कैबिनेट मंत्री, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, भारत के ऑडिटर जनरल आदि मौजूद थे। इस अवसर पर पंडित नेहरू और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों को पद एवं गोपनीयता की शपथ भी दिलायी गई। लोकसभा के पहले अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर भव्य दरबार हाल में पहली पंक्ति में बैठे हुए थे। दरबार हाल में हर्ष और उल्लास के अविस्मरणीय दृश्य था। देश के विभिन्न क्षेत्रों से बड़ी संख्या में आए लोग राष्ट्रपति भवन परिसर के आसपास एकत्र थे। बाद में हजारों की संख्या में लोगों ने महात्मा गांधी की समाधि ‘राजघाट’ जाकर अपने प्यारे बापू को श्रद्धांजलि अर्पित की। दरबार हाल में पहली बार राष्ट्रीय प्रतीक (चार शेर मुख वाले अशोक स्तम्भ) को उस स्थान पर रखा गया जहां ब्रिटिश वायसराय बैठा करते थे। पहली बार ही वहां सिंहासन के पीछे मुस्कुराते बुद्ध की मूर्ति भी रखी गई थी। प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने सभी उपस्थित लोगों का हाथ जोड़कर अभिवादन किया और हिन्दी एवं अंग्रेजी में संक्षिप्त भाषण दिया। दिल्ली समेत देश के अनेक स्थानों पर देश के प्रथम गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रभात फेरी भी निकाली गई और यह परंपरा आज भी जारी है।[1]

उत्सव आयोजन

जब 15 अगस्त, 1947 को भारत को अंग्रेज़ी शासन से मुक्ति मिली, तब हमारे देश का कोई अपना संविधान नहीं था। अपना संविधान ना होने के कारण हम अपनी प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था का कार्य अंग्रेज़ों द्वारा संचालित नीतियों के अनुसार ही करते थे। प्रशासनिक रूप से हम 26 जनवरी, 1950 को स्वतंत्र हुए। इसी कारण से भारतीय इतिहास में 26 जनवरी, 1950 का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन भारत के अंतिम गवर्नर-जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने भारत को गणतंत्र राष्ट्र घोषित किया था। यह दिन भारत के लिए ऐतिहासिक है, क्योंकि इस दिन हमारे देश को पहली बार संप्रभु, धर्म-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतंत्र राज्य घोषित किया गया था। तब से लगातार इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप मे मनाया जाता है। 26 जनवरी, 1950 को हमें भारत का संविधान और भारत का प्रथम राष्ट्रपति भी मिला। सच कहा जाय तो वास्तव में हमें अंग्रेज़ों से आज़ादी भी इसी दिन मिली थी। प्रथम राष्ट्रपति के रूप में डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इसी दिन इरविन स्टेडयिम में भारतीय तिरंगा फहराया था तथा सेना द्वारा की हुई परेड और तोपों की सलामी भी ली थी। इस परेड में सशस्त्र सेना के तीनों बलों ने हिस्सा लिया था। तब से लगातार इस दिन भारतीय सेना के तीनों अंग नए-नए करतब दिखाकर अपनी कार्यक्षमता का परिचय देते हैं। राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उसी दिन 26 जनवरी को राष्ट्रीय अवकाश घोषित कर दिया। गणतंत्र दिवस के दिन मुख्य अतिथि बुलाने की परंपरा भी इसी दिन से शुरू हुई थी। 1950 मे पहले मुख्य अतिथि के रूप में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो आए थे तो 2012 में मुख्य अतिथि के रूप में थाईलैंड की पहली महिला प्रधानमंत्री यिंगलक शिनावात्रा ने शिरकत की।[2]

26 जनवरी, 1955 को पहली बार परेड राजपथ से होकर गुजरा था, तब से लगातार परेड राजपथ से होकर गुजरता है। परेड की शुरूआत रायसीना हिल से होती है और वह राजपथ, इंडिया गेट से गुजरती हुई लाल क़िला तक जाती है। इसका मार्ग 8 किलोमीटर का है। सुविधाओं में बढ़ोत्तरी के कारण आज राष्ट्रपति कार में सवार होते हैं, जबकि पहले परेड में राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद बग्घी में सवार थे। गणतंत्र दिवस समारोह का आरंभ "अमर जवान ज्योति" पर प्रधानमंत्री द्वारा शहीदों की श्रदांजलि देने से होता है तत्पश्चात् शहीदों की याद में दो मिनट का मौन रखा जाता है। इसके बाद प्रधानमंत्री इंडिया गेट आते हैं, जहाँ 21 तोपों की सलामी दी जाती है। राज्यों से आयी हुई झाँकियाँ सभी का मनमोह लेती हैं। इन झाँकियों में राज्यों में हुए विकास कार्य, संस्कृति और विविधता आदि को दिखाया जाता है। इस दिन वीरों को अशोक चक्र, कीर्ति चक्र, परमवीर चक्र, वीर चक्र और महावीर चक्र से सम्मानित किया जाता है। इस दिन 24 बच्चों को, जिनकी उम्र 16 साल से कम है, को उनके अदम्य साहस और वीरता के लिये 'गीता चोपड़ा' और 'संजय चोपड़ा अवार्ड' से सम्मानित किया जाता है। सम्मान स्वरूप बच्चों को मेडल, प्रमाणपत्र और नकद राशि दी जाती है।

इस दिन पूरे भारतवर्ष में रंगारंग उत्सव मनाया जाता है। प्रत्येक राज्य में राज्यपाल तिरंगा फहराते हैं और परेड की सलामी लेते हैं। यह राष्ट्रीय उत्सव तीन दिनों तक चलता है। 26 जनवरी के बाद 27 जनवरी को एन.सी.सी. कैडेट कई कार्यक्रम पेश करते हैं। अंतिम दिन 29 जनवरी को विजय चौक पर 'बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी' होती है, जिसमें बैंड भी शामिल होता है। पूरी दुनिया में गणतंत्र दिवस एक ऐसा विशाल उत्सव है जो केवल भारत में ही दिखता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत के गणतंत्र बनने के साक्षी थे सुकर्णो (हिंदी) ज़ी न्यूज़। अभिगमन तिथि: 22 अप्रैल, 2017।
  2. 26 जनवरी का इतिहास (हिंदी) sudhalok.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 29 जनवरी, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

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