होली
होली
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अन्य नाम | डोल यात्रा या डोल पूर्णिमा (पश्चिम बंगाल), कामन पोडिगई (तमिलनाडु), होला मोहल्ला (पंजाब), कामना हब्बा (कर्नाटक), फगुआ (बिहार), रंगपंचमी (महाराष्ट्र), शिमगो (गोवा), धुलेंडी (हरियाणा), गोविंदा होली (गुजरात), योसांग होली (मणिपुर) आदि। |
अनुयायी | हिन्दू, भारतीय, भारतीय प्रवासी |
उद्देश्य | धार्मिक निष्ठा, सामाजिक एकता, मनोरंजन |
प्रारम्भ | पौराणिक काल |
तिथि | फाल्गुन पूर्णिमा |
उत्सव | रंग खेलना, हुड़दंग, मौज-मस्ती |
अनुष्ठान | होलिका दहन |
प्रसिद्धि | लट्ठमार होली (बरसाना) |
संबंधित लेख | ब्रज में होली, होलिका, होलिका दहन, कृष्ण, राधा, गोपी, हिरण्यकशिपु, प्रह्लाद, गुलाल, दाऊजी का हुरंगा, फालेन की होली, रंगभरनी एकादशी आदि। |
वर्ष 2018 | 1 मार्च को होलिका दहन एवं 2 मार्च को होली (धुलेंडी) |
अद्यतन | 18:14, 25 फ़रवरी 2018 (IST)
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होली (अंग्रेज़ी: Holi) भारत का प्रमुख त्योहार है। होली जहाँ एक ओर सामाजिक एवं धार्मिक त्योहार है, वहीं रंगों का भी त्योहार है। बाल-वृद्ध, नर-नारी सभी इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं। इसमें जातिभेद-वर्णभेद का कोई स्थान नहीं होता। इस अवसर पर लकड़ियों तथा कंडों आदि का ढेर लगाकर होलिकापूजन किया जाता है फिर उसमें आग लगायी जाती है। पूजन के समय मंत्र उच्चारण किया जाता है। इन्हें भी देखें: होली महोत्सव, ब्रज, होलाष्टक एवं होलिका दहन
इतिहास
प्रचलित मान्यता के अनुसार यह त्योहार हिरण्यकशिपु की बहन होलिका के मारे जाने की स्मृति में मनाया जाता है। पुराणों में वर्णित है कि हिरण्यकशिपु की बहन होलिका वरदान के प्रभाव से नित्य अग्नि स्नान करती थी और जलती नहीं थी। हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका से प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि स्नान करने को कहा। उसने समझा कि ऐसा करने से प्रह्लाद अग्नि में जल जाएगा तथा होलिका बच जाएगी। होलिका ने ऐसा ही किया, किंतु होलिका जल गयी, प्रह्लाद बच गये। होलिका को यह स्मरण ही नहीं रहा कि अग्नि स्नान वह अकेले ही कर सकती है। तभी से इस त्योहार के मनाने की प्रथा चल पड़ी।
प्राचीन शब्दरूप
यह बहुत प्राचीन उत्सव है। इसका आरम्भिक शब्दरूप होलाका था।[1] भारत में पूर्वी भागों में यह शब्द प्रचलित था। जैमिनि एवं शबर का कथन है कि 'होलाका' सभी आर्यो द्वारा सम्पादित होना चाहिए। काठकगृह्य[2] में एक सूत्र है 'राका होला के', जिसकी व्याख्या टीकाकार देवपाल ने यों की है- 'होला एक कर्म-विशेष है जो स्त्रियों के सौभाग्य के लिए सम्पादित होता है, उस कृत्य में राका[3] देवता है।'[4] अन्य टीकाकारों ने इसकी व्याख्या अन्य रूपों में की है। 'होलाका' उन बीस क्रीड़ाओं में एक है जो सम्पूर्ण भारत में प्रचलित हैं। इसका उल्लेख वात्स्यायन के कामसूत्र[5] में भी हुआ है जिसका अर्थ टीकाकार जयमंगल ने किया है। फाल्गुन की पूर्णिमा पर लोग श्रृंग से एक-दूसरे पर रंगीन जल छोड़ते हैं और सुगंधित चूर्ण बिखेरते हैं। हेमाद्रि[6] ने बृहद्यम का एक श्लोक उद्भृत किया है। जिसमें होलिका-पूर्णिमा को हुताशनी[7] कहा गया है। लिंग पुराण में आया है- 'फाल्गुन पूर्णिमा को 'फाल्गुनिका' कहा जाता है, यह बाल-क्रीड़ाओं से पूर्ण है और लोगों को विभूति, ऐश्वर्य देने वाली है।' वराह पुराण में आया है कि यह 'पटवास-विलासिनी' [8] है। [9]
शताब्दियों पूर्व से होलिका उत्सव
जैमिनि एवं काठकगृह्य में वर्णित होने के कारण यह कहा जा सकता है कि ईसा की कई शताब्दियों पूर्व से 'होलाका' का उत्सव प्रचलित था। कामसूत्र एवं भविष्योत्तर पुराण इसे वसन्त से संयुक्त करते हैं, अत: यह उत्सव पूर्णिमान्त गणना के अनुसार वर्ष के अन्त में होता था। अत: होलिका हेमन्त या पतझड़ के अन्त की सूचक है और वसन्त की काम-प्रेममय लीलाओं की द्योतक है। मस्ती भरे गाने, नृत्य एवं संगीत वसन्तागमन के उल्लासपूर्ण क्षणों के परिचायक हैं। वसन्त की आनन्दाभिव्यक्ति रंगीन जल एवं लाल रंग, अबीर-गुलाल के पारस्परिक आदान-प्रदान से प्रकट होती है। कुछ प्रदेशों में यह रंग युक्त वातावरण 'होलिका के दिन' ही होता है, किन्तु दक्षिण में यह होलिका के पाँचवें दिन (रंग-पंचमी) मनायी जाती है। कहीं-कहीं रंगों के खेल पहले से आरम्भ कर दिये जाते हैं और बहुत दिनों तक चलते रहते हैं; होलिका के पूर्व ही 'पहुनई' में आये हुए लोग एक-दूसरे पर पंक (कीचड़) भी फेंकते हैं।[10] कहीं-कहीं दो-तीन दिनों तक मिट्टी, रंग, गान आदि से लोग मतवाले होकर दल बना कर होली का हुड़दंग मचाते हैं, सड़कें लाल हो जाती हैं। वास्तव में यह उत्सव प्रेम करने से सम्बन्धित है, किन्तु शिष्टजनों की नारियाँ इन दिनों बाहर नहीं निकल पातीं, क्योंकि उन्हें भय रहता है कि लोग भद्दी गालियाँ न दे बैठें। श्री गुप्ते ने अपने लेख[11] में प्रकट किया है कि यह उत्सव ईजिप्ट, मिस्र या ग्रीस, यूनान से लिया गया है। किन्तु यह भ्रामक दृष्टिकोण है। लगता है, उन्होंने भारतीय प्राचीन ग्रन्थों का अवलोकन नहीं किया है, दूसरे, वे इस विषय में भी निश्चित नहीं हैं कि इस उत्सव का उद्गम मिस्त्र से है या यूनान से। उनकी धारणा को गम्भीरता से नहीं लेना चाहिए।
होलिका
हेमाद्रि[12] ने भविष्योत्तर[13] से उद्धरण देकर एक कथा दी है। युधिष्ठिर ने कृष्ण से पूछा कि फाल्गुन-पूर्णिमा को प्रत्येक गाँव एवं नगर में एक उत्सव क्यों होता है, प्रत्येक घर में बच्चे क्यों क्रीड़ामय हो जाते हैं और 'होलाका' क्यों जलाते हैं, उसमें किस देवता की पूजा होती है, किसने इस उत्सव का प्रचार किया, इसमें क्या होता है और यह 'अडाडा' क्यों कही जाती है।
होलिका दहन
होली और राधा-कृष्ण की कथा
भगवान श्रीकृष्ण तो सांवले थे, परंतु उनकी आत्मिक सखी राधा गौरवर्ण की थी। इसलिए बालकृष्ण प्रकृति के इस अन्याय की शिकायत अपनी माँ यशोदा से करते तथा इसका कारण जानने का प्रयत्न करते। एक दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को यह सुझाव दिया कि वे राधा के मुख पर वही रंग लगा दें, जिसकी उन्हें इच्छा हो। नटखट श्रीकृष्ण यही कार्य करने चल पड़े। आप चित्रों व अन्य भक्ति आकृतियों में श्रीकृष्ण के इसी कृत्य को जिसमें वे राधा व अन्य गोपियों पर रंग डाल रहे हैं, देख सकते हैं। यह प्रेममयी शरारत शीघ्र ही लोगों में प्रचलित हो गई तथा होली की परंपरा के रूप में स्थापित हुई। इसी ऋतु में लोग राधा व कृष्ण के चित्रों को सजाकर सड़कों पर घूमते हैं। मथुरा की होली का विशेष महत्त्व है, क्योंकि मथुरा में ही कृष्ण का जन्म हुआ था।
होली और धुंधी की कथा
भविष्य पुराण में वर्णित है कि सत्ययुग में राजा रघु के राज्य में माली नामक दैत्य की पुत्री ढोंढा या धुंधी थी। उसने शिव की उग्र तपस्या की। शिव ने वर माँगने को कहा। उसने वर माँगा- प्रभो! देवता, दैत्य, मनुष्य आदि मुझे मार न सकें तथा अस्त्र-शस्त्र आदि से भी मेरा वध न हो। साथ ही दिन में, रात्रि में, शीतकाल में, उष्णकाल तथा वर्षाकाल में, भीतर-बाहर कहीं भी मुझे किसी से भय नहीं हो।' शिव ने तथास्तु कहा तथा यह भी चेतावनी दी कि तुम्हें उन्मत्त बालकों से भय होगा। वही ढोंढा नामक राक्षसी बालकों व प्रजा को पीड़ित करने लगी। 'अडाडा' मंत्र का उच्चारण करने पर वह शांत हो जाती थी। इसी से उसे 'अडाडा' भी कहते हैं। इस प्रकार भगवान शिव के अभिशाप वश वह ग्रामीण बालकों की शरारत, गालियों व चिल्लाने के आगे विवश थी। ऐसा विश्वास किया जाता है कि होली के दिन ही सभी बालकों ने अपनी एकता के बल पर आगे बढ़कर धुंधी को गाँव से बाहर धकेला था। वे ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते हुए तथा चालाकी से उसकी ओर बढ़ते ही गये। यही कारण है कि इस दिन नवयुवक कुछ अशिष्ट भाषा में हँसी मजाक कर लेते हैं, परंतु कोई उनकी बात का बुरा नहीं मानता।
इन्हें भी देखें: दाऊजी का हुरंगा
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जैमिनि, 1।3।15-16
- ↑ काठकगृह्य, 73,1
- ↑ पूर्णचन्द्र
- ↑ राका होलाके। काठकगृह्य (73।1)। इस पर देवपाल की टीका यों है: 'होला कर्मविशेष: सौभाग्याय स्त्रीणां प्रातरनुष्ठीयते। तत्र होला के राका देवता। यास्ते राके सुभतय इत्यादि।'
- ↑ कामसूत्र, 1।4।42
- ↑ काल, पृ. 106
- ↑ आलकज की भाँति
- ↑ चूर्ण से युक्त क्रीड़ाओं वाली
- ↑ लिंगपुराणे। फाल्गुने पौर्णमासी च सदा बालविकासिनी। ज्ञेया फाल्गुनिका सा च ज्ञेया लोकर्विभूतये।।
वाराहपुराणे। फाल्गुने पौर्णिमास्यां तु पटवासविलासिनी। ज्ञेया सा फाल्गुनी लोके कार्या लोकसमृद्धये॥ हेमाद्रि (काल, पृ. 642)।
इसमें प्रथम का.वि. (पृ. 352) में भी आया है जिसका अर्थ इस प्रकार है-बालवज्जनविलासिन्यामित्यर्थ: - ↑ वर्षकृत्यदीपक (पृ0 301) में निम्न श्लोक आये हैं-
'प्रभाते बिमले जाते ह्यंगे भस्म च कारयेत्। सर्वागे च ललाटे च क्रीडितव्यं पिशाचवत्॥
सिन्दरै: कुंकुमैश्चैव धूलिभिर्धूसरो भवेत्। गीतं वाद्यं च नृत्यं च कृर्याद्रथ्योपसर्पणम् ॥
ब्राह्मणै: क्षत्रियैर्वैश्यै: शूद्रैश्चान्यैश्च जातिभि:। एकीभूय प्रकर्तव्या क्रीडा या फाल्गुने सदा। बालकै: वह गन्तव्यं फाल्गुन्यां च युधिष्ठिर ॥' - ↑ हिन्दू हॉलीडेज एवं सेरीमनीज'(पृ. 92
- ↑ व्रत, भाग 2, पृ. 174-190
- ↑ भविष्योत्तर, 132।1।51
- ↑ पुस्तक- धर्मशास्त्र का इतिहास-4 | लेखक- पांडुरंग वामन काणे | प्रकाशक- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान
- ↑ 15.0 15.1 15.2 15.3 होली की प्राचीन कथाएं (हिन्दी) (पी.एच.पी) हिन्दी मीडिया डॉट इन। अभिगमन तिथि: 10 मार्च, 2011।
- ↑ संस्कृत साहित्य में होली (हिन्दी) शब्दम। अभिगमन तिथि: 3 मार्च, 2015।
- ↑ भारतीय साहित्य, संस्कृति और परंपरा में होली (हिन्दी) (पी.एच.पी) हिन्दी मीडिया डॉट इन। अभिगमन तिथि: 10 मार्च, 2011।
- ↑ देख बहारें होली की -नज़ीर अकबराबादी (भारतकोश), यू-ट्यूब पर सुनें
- ↑ 19.0 19.1 19.2 19.3 19.4 उर्दू साहित्य में होली (हिन्दी) (पी.एच.पी) हिन्दी मीडिया डॉट इन। अभिगमन तिथि: 10 मार्च, 2011।
- ↑ शीतल पेय जिसे दूध, भांग, बादाम मिलाकर घोटकर बनाया जाता है
- ↑ यह एक नशीले पौधे की पत्तियों का घोल है
- ↑ फ़िल्म- मदर इंडिया
- ↑ फ़िल्म- नवरंग
- ↑ फ़िल्म- कटी पतंग
- ↑ फ़िल्म- शोले
- ↑ फ़िल्म- सिलसिला
- ↑ फ़िल्म- कामचोर
- ↑ फ़िल्म- डर
- ↑ फ़िल्म- बाग़बान
- ↑ आजकल नहीं मिलते होली के गीत (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) लाइव हिन्दुस्तान डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 4 मार्च, 2011।
- ↑ शूलपाणिकृत 'दोलयात्राविवेक।'
- ↑ 32.0 32.1 32.2 32.3 32.4 हर जगह होली सिर्फ़ होली है (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) visfot.com। अभिगमन तिथि: 10 मार्च, 2011।
- ↑ दरअसल कोंकणी बोली में होली को शिमगो कहते हैं
- ↑ भूषण, ललित। उमंग और उल्लास से भरा यही तो है मदनोत्सव (हिन्दी) Speaking tree.in। अभिगमन तिथि: 1 जून, 2015।