राधा

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Disamb2.jpg राधा एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- राधा (बहुविकल्पी)
संक्षिप्त परिचय
राधा
राधा
अन्य नाम राधे, राधिका
अवतार महालक्ष्मी देवी
पिता वृषभानु
माता कीर्ति
जन्म विवरण राधाजी का जन्म यमुना के निकट स्थित रावल ग्राम में भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को माना जाता है।
धर्म-संप्रदाय हिंदू धर्म
विवाह राधा के पति का नाम ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार 'रायाण' था। अन्य नाम 'रापाण' और 'अयनघोष' भी मिलते हैं।
अन्य जानकारी 'राधा' कृष्ण की विख्यात प्राणसखी, उपासिका थीं। राधा-कृष्ण शाश्वत प्रेम का प्रतीक हैं। पद्म पुराण ने इसे वृषभानु राजा की कन्या बताया है। यह राजा जब यज्ञ की भूमि साफ़ कर रहा था, इसे भूमि कन्या के रूप में राधा मिली। यह भी कथा मिलती है कि विष्णु ने कृष्ण अवतार लेते समय अपने परिवार के सभी देवताओं से पृथ्वी पर अवतार लेने के लिए कहा। तभी राधा भी जो चतुर्भुज विष्णु की अर्धांगिनी और लक्ष्मी के रूप में बैकुंठ लोक में निवास करती थीं, राधा बनकर पृथ्वी पर आई।

राधा कृष्ण की विख्यात प्राणसखी, उपासिका और वृषभानु नामक गोप की पुत्री थी। राधा-कृष्ण शाश्वत प्रेम का प्रतीक हैं। राधा की माता कीर्ति के लिए 'वृषभानु पत्नी' शब्द का प्रयोग किया जाता है। पद्म पुराण ने इसे वृषभानु राजा की कन्या बताया है। यह राजा जब यज्ञ की भूमि साफ़ कर रहा था, इसे भूमि कन्या के रूप में राधा मिली। राजा ने अपनी कन्या मानकर इसका पालन-पोषण किया। यह भी कथा मिलती है कि विष्णु ने कृष्ण अवतार लेते समय अपने परिवार के सभी देवताओं से पृथ्वी पर अवतार लेने के लिए कहा। तभी राधा भी जो चतुर्भुज विष्णु की अर्धांगिनी और लक्ष्मी के रूप में बैकुंठ लोक में निवास करती थीं, राधा बनकर पृथ्वी पर आई।

श्रीकृष्ण की उपासिका

राधा को कृष्ण की प्रेमिका और कहीं-कहीं पत्नी के रूप में माना जाता हैं। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार राधा कृष्ण की सखी थी और उसका विवाह रापाण अथवा रायाण नामक व्यक्ति के साथ हुआ था। अन्यत्र राधा और कृष्ण के विवाह का भी उल्लेख मिलता है। कहते हैं, राधा अपने जन्म के समय ही वयस्क हो गई थी।

राधा-कृष्ण

ब्रज में राधा का महत्त्व

ब्रज में राधा का महत्त्व सर्वोपरि है। राधा के लिए विभिन्न उल्लेख मिलते हैं। राधा के पति का नाम ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार रायाण था अन्य नाम रापाण और अयनघोष भी मिलते हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार कृष्ण की आराधिका का ही रूप राधा है। आराधिका शब्द में से हटा देने से राधिका बनता है। राधाजी का जन्म यमुना के निकट स्थित रावल ग्राम में हुआ था। यहाँ राधा का मंदिर भी है। राधारानी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर बरसाना ग्राम की पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ की लट्ठमार होली सारी दुनिया में मशहूर है। यह आश्चर्य की बात है कि राधा-कृष्ण की इतनी अभिन्नता होते हुए भी महाभारत या भागवत पुराण में राधा का नामोल्लेख नहीं मिलता, यद्यपि कृष्ण की एक प्रिय सखी का संकेत अवश्य है। राधा ने श्रीकृष्ण के प्रेम के लिए सामाजिक बंधनों का उल्लंघन किया। कृष्ण की अनुपस्थिति में उसके प्रेम-भाव में और भी वृद्धि हुई। दोनों का पुनर्मिलन कुरुक्षेत्र में बताया जाता है जहां सूर्यग्रहण के अवसर पर द्वारिका से कृष्ण और वृन्दावन से नंद, राधा आदि गए थे। राधा-कृष्ण की भक्ति का कालांतर में निरंतर विस्तार होता गया। निम्बार्क संप्रदाय, वल्लभ-सम्प्रदाय, राधावल्लभ संप्रदाय, सखीभाव संप्रदाय आदि ने इसे और भी पुष्ट किया।

राधा-कृष्ण संबंधी प्रचलित कथाएँ

राधा-कृष्ण का विवाह

माना जाता है कि राधा और कृष्ण का विवाह कराने में ब्रह्मा जी का बड़ा योगदान था। भगवान ब्रह्मा ने जब श्रीकृष्ण को सारी बातें याद दिलाईं तो उन्हें सब कुछ याद आ गया। इसके बाद ब्रह्मा जी ने अपने हाथों से शादी के लिए वेदी को सजाया। गर्ग संहिता के मुताबिक़ विवाह से पहले उन्होंने श्रीकृष्ण और राधा से सात मंत्र पढ़वाए। भांडीरवन में वेदीनुमा वही पेड़ है जिसके नीचे, जहां पर बैठकर राधा और कृष्ण ने शादी हुई थी। दोनों की शादी कराने के बाद भगवान ब्रह्मा अपने लोक को लौट गए। लेकिन इस वन में राधा और कृष्ण अपने प्रेम में डूब गए। दरअसल गर्ग संहिता के मुताबिक़ भगवान श्रीकृष्ण ही इस जगत् के आधार हैं। माना जाता है कि जिस तरह से शिव की शक्ति पार्वती है, उसी तरह से भगवान कृष्ण की शक्ति राधा है।[1]

राधा-कृष्ण, चित्रकार राजा रवि वर्मा

इस बीच एक बड़ी ही अनोखी घटना घटती है। अचानक तेज हवाएं चलने लगती हैं। बिजली कौंधने लगती है। देखते ही देखते चारों ओर अंधेरा छा जाता है। और इसी अंधेरे में एक बहुत ही दिव्य रोशनी आकाश मार्ग से नीचे आती है। नंद जी समझ जाते हैं कि ये कोई और नहीं खुद राधा देवी हैं जो कृष्ण के लिए इस वन में आई हैं। वो झुककर उन्हें प्रणाम करते हैं। और बालक कृष्ण को उनकी गोद में देते हुए कहते हैं कि हे देवी! मैं इतना भाग्यशाली हूं कि भगवान कृष्ण मेरी गोद में हैं और आपका मैं साक्षात्‌ दर्शन कर रहा हूं। भगवान कृष्ण को राधा के हवाले करके नंद जी घर वापस आते हैं तब तक तूफान थम जाता है। अंधेरा दिव्य प्रकाश में बदल जाता है और इसके साथ ही भगवान भी अपने बालक रूप का त्याग कर के किशोर बन जाते हैं। भांडीरवन के पास ही एक वंशी वन है जहां भगवान कृष्ण अक्सर वंशी बजाने जाया करते थे। कहा जाता है कि हज़ारों साल पुराना वंशी वन आज भी मौजूद है साथ ही वो वृक्ष भी मौजूद है जिसपर कृष्ण भगवान बांसुरी बजाए करते थे। कहा तो इतना जाता है कि आज भी अगर उस वृक्ष में कान लगाकर सुनेंगे तो आपको बांसुरी और तबले की आवाज़ सुनाई देती है। राधा से शादी के बाद भगवान कृष्ण काफ़ी दिनों तक इस वन में रहे। लेकिन एक दिन उन्हें अचानक नंद गांव की याद आ गई। विवाह के बाद काफ़ी दिनों तक भगवान श्रीकृष्ण राधा के साथ इन वनों में रास रचाते रहे। लेकिन एक दिन उन्हें नंद गांव की याद आई और वो राधा की गोद में वैसे ही बालक बन गए जैसे राधा को नंद जी ने दिया था। इस घटना के बाद तो राधा रोने लगी। इसके बाद एक आकाशवाणी हुई। "हे राधा! इस वक्त शोक मत करो। अब तुम्हारा मनोरथ कुछ वक्त के बाद पूरा होगा।" राधा समझ गई कि भगवान अब अपने उस काम के लिए आगे बढ़ रहे हैं जिसके लिए उन्होंने अवतार लिया है। इसके बाद राधा भगवान श्रीकृष्ण के बालक रुप को गोद में लेकर नंदगांव गई और नंद के हाथों बाल गोपाल को समर्पित कर दिया।[2]

राधा जी का मंदिर, बरसाना

श्रीकृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी

राधाजी भगवान श्री कृष्ण की परम प्रिया हैं तथा उनकी अभिन्न मूर्ति भी। श्रीमद्‌भागवत में कहा गया है कि श्री राधा जी की पूजा नहीं की जाए तो मनुष्य श्रीकृष्ण की पूजा का अघिकार भी नहीं रखता। राधा जी भगवान श्रीकृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी हैं, अत: भगवान इनके अधीन रहते हैं। राधाजी का एक नाम कृष्णवल्लभा भी है क्योंकि वे श्रीकृष्ण को आनन्द प्रदान करने वाली हैं। माता यशोदा ने एक बार राधाजी से उनके नाम की व्युत्पत्ति के विषय में पूछा। राधाजी ने उन्हें बताया कि 'रा' तो महाविष्णु हैं और 'धा' विश्व के प्राणियों और लोकों में मातृवाचक धाय हैं। अत: पूर्वकाल में श्री हरि ने उनका नाम राधा रखा। भगवान श्रीकृष्ण दो रूपों में प्रकट हैं—द्विभुज और चतुर्भुज। चतुर्भुज रूप में वे बैकुंठ में देवी लक्ष्मी, सरस्वती, गंगा और तुलसी के साथ वास करते हैं परन्तु द्विभुज रूप में वे गौलोक घाम में राधाजी के साथ वास करते हैं। राधा-कृष्ण का प्रेम इतना गहरा था कि एक को कष्ट होता तो उसकी पीड़ा दूसरे को अनुभव होती। सूर्योपराग के समय श्रीकृष्ण, रुक्मिणी आदि रानियां वृन्दावनवासी आदि सभी कुरुक्षेत्र में उपस्थित हुए। रुक्मिणी जी ने राधा जी का स्वागत सत्कार किया। जब रुक्मिणीजी श्रीकृष्ण के पैर दबा रही थीं तो उन्होंने देखा कि श्रीकृष्ण के पैरों में छाले हैं। बहुत अनुनय-विनय के बाद श्रीकृष्ण ने बताया कि उनके चरण-कमल राधाजी के हृदय में विराजते हैं। रुक्मिणीजी ने राधा जी को पीने के लिए अधिक गर्म दूध दे दिया था जिसके कारण श्रीकृष्ण के पैरों में फफोले पड गए।

राधा-कृष्ण एक अभिन्न भाग

राधा जी श्रीकृष्ण का अभिन्न भाग हैं। इस तथ्य को इस कथा से समझा जा सकता है कि वृंदावन में श्रीकृष्ण को जब दिव्य आनंद की अनुभूति हुई तब वह दिव्यानंद ही साकार होकर बालिका के रूप में प्रकट हुआ और श्रीकृष्ण की यह प्राणशक्ति ही राधा जी हैं। राधा जन्माष्टमी के दिन व्रत रखकर मन्दिर में यथाविधि राधा जी की पूजा करनी चाहिए तथा श्री राधा मंत्र का जाप करना चाहिए। राधा जी लक्ष्मी का ही स्वरूप हैं अत: इनकी पूजा से धन-धान्य व वैभव प्राप्त होता है। राधा जी का नाम कृष्ण से भी पहले लिया जाता है। राधा नाम के जाप से श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर दया करते हैं। राधाजी का श्रीकृष्ण के लिए प्रेम नि:स्वार्थ था तथा उसके लिए वे किसी भी तरह का त्याग करने को तैयार थीं। एक बार श्रीकृष्ण ने बीमार होने का स्वांग रचा। सभी वैद्य एवं हकीम उनके उपचार में लगे रहे परन्तु श्रीकृष्ण की बीमारी ठीक नहीं हुई। वैद्यों के द्वारा पूछे जाने पर श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया कि मेरे परम प्रिय की चरण धूलि ही मेरी बीमारी को ठीक कर सकती है। रुक्मिणी आदि रानियों ने अपने प्रिय को चरण धूलि देकर पाप का भागी बनने से इनकार कर दिया अंतत: राधा जी को यह बात कही गई तो उन्होंने यह कहकर अपनी चरण धूलि दी कि भले ही मुझे 100 नरकों का पाप भोगना पडे तो भी मैं अपने प्रिय के स्वास्थ्य लाभ के लिए चरण धूलि अवश्य दूंगी। कृष्ण जी का राधा से इतना प्रेम था कि कमल के फूल में राधा जी की छवि की कल्पना मात्र से वो मूर्छित हो गये तभी तो विद्ववत जनों ने कहा-

राधा तू बड़भागिनी, कौन पुण्य तुम कीन।
तीन लोक तारन तरन सो तोरे आधीन।।[3]


वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ब्रह्मा ने कराई राधा-कृष्ण की शादी (हिंदी) आईबीएन ख़बर। अभिगमन तिथि: 13 सितम्बर, 2013।
  2. कृष्ण को याद आया नंद गांव (हिंदी) आईबीएन ख़बर। अभिगमन तिथि: 21 सितम्बर, 2013।
  3. राधा तू बड़भागिनी (हिंदी) ख़ास ख़बर आलेख। अभिगमन तिथि: 21 सितम्बर, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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