विश्वानर एक पुण्यात्मा ब्रह्मचारी तथा भगवान शिव के भक्त थे, जो नर्मदा नदी के तट पर स्थित नर्मपुर नामक ग्राम में निवास करते थे। शुचिष्मति से विवाह कर ये गृहस्थों की तरह रहने लगे। काफ़ी दिनों तक संतान न होने पर विश्वानर ने काशी में 12 महिनों तक तप किया था।[1]
- इन्होंने अपने तप तथा शिवाराधना से गृहपति नामक एक पुत्र प्राप्त पाया था।
- गृहपति को नारदजी से उसके अल्पायु होने का समाचार मिला था।
- मृत्युंजय महादेव की पूजा करके गृहपति ने अग्नि का पद प्राप्त किया।
- यह अग्निकोण के अधिपति एक लोकपाल हो गये, जहाँ यह अपने माता-पिता सहित चले गये।[2]
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