बल्वल

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बल्वल दैत्य इल्वल का पुत्र था। वह यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों में प्राय: विघ्न उत्पन्न किया करता था, जिस कारण ब्राह्मणों के आदेश पर बलराम ने उसका वध किया था।

  • एक बार बलराम तीर्थों का पर्यटन करते हुए नैमिषारण्य क्षेत्र में पहुँचे।
  • वहाँ अनेक ब्राह्मण नीचे बैठे थे और ऊँचे आसन पर सूत जाति का रोमहर्षण विराजमान था।
  • उस प्रतिलोम के जाति के व्यक्ति को ब्राह्मणों से ऊपर का आसन ग्रहण किये हुए देखकर बलराम ने कुश की नोक से उस अशिष्ट पर प्रहार किया।
  • बलराम के इस बलशाली प्रहार से वह तुरन्त ही मर गया, जिस कारण वहाँ एकत्र ब्राह्मण बहुत ही दुखी हुए।
  • ब्राह्मणों ने स्वेच्छा से ही रोमहर्षण को वह उच्च स्थान प्रदान किया था तथा सत्र की समाप्ति तक के लिए उसे शारीरिक कष्ट रहित आयु भी प्रदान कर रखी थी।
  • बलराम से ब्राह्मणों ने कहा कि वे दैत्य इल्वल के पुत्र बल्वल का हनन कर दें, क्योंकि वह प्रत्येक सत्र में विघ्न उत्पन्न करता है।
  • तदनंतर एक वर्ष तक भारत की परिक्रमा करते हुए विभिन्न तीर्थों का सेवन करके वे शुद्ध हो जायेंगे।
  • पर्व के दिन बल्वल ने यज्ञ में व्याघात उत्पन्न करने का प्रयास किया, किंतु बलराम ने आकाशचारी बल्वल को अपने मूसल तथा हल के प्रहारों से मार डाला।
  • बल्वल के वध के उपरान्त बलराम शुद्धता के लिए तीर्थाटन को चल पड़े।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय मिथक कोश |लेखक: डॉ. उषा पुरी विद्यावाचस्पति |प्रकाशक: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 198 |


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