कृष्ण के अवतार
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कृष्ण के अवतारों का वर्णन चैतन्य महाप्रभु ने सनातन गोस्वामी को शिक्षा देते समय किया है।[1] भगवान का वह रूप, जो सृष्टि करने के हेतु भौतिक जगत् में अवतरित होता है, अवतार कहलाता है।[2] कृष्ण के अवतार असंख्य हैं और उनकी गणना कर पाना संभव नहीं है। जिस प्रकार विशाल जलाशयों से लाखों छोटे झरने निकलते हैं, उसी तरह से समस्त शक्तियों के आगार पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्री हरि से असंख्य अवतार प्रकट होते हैं।[3]भगवान कृष्ण के 6 तरह के अवतार होते हैं:-
1. | पुरुषावतार (3) |
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2. | लीला अवतार (25) | चतु:सन (सनक, सनातन, सनत कुमार व सनन्दन), नारद, वराह, मत्स्य, यज्ञ, नर-नारायण, कपिल, दत्तात्रेय, हयग्रीव, हँस, प्रश्निगर्भ, ऋषभ, प्रथू, नृसिंह, कूर्म, धन्वन्तरि, मोहिनी, वामन, परशुराम, राम, व्यास, बलराम, कृष्ण, बुद्ध तथा कल्कि। |
3. | गुण-अवतार (3) | जो भौतिक गुणों का नियन्त्रण करते हैं- |
4. | मन्वन्तर-अवतार (14) | जो प्रत्येक मनु के शासन में प्रकट होते हैं। ब्रह्मा के एक दिन में 14 मनु बदलते हैं। श्रीमद्भागवत[5] में मन्वन्तर-अवतारों की सूचि दी गई है- यज्ञ, विभु, सत्यसेन, हरि, वैकुण्ठ, अजित, वामन, सार्वभौम, ऋषभ, विष्वक्सेंन, धर्मसेतु, सुधामा, योगेश्वर तथा ब्रह्द् भानु। इसमें से यज्ञ तथा वामन की गणना लीलावतारों में भी की जाती है। |
5. | युग-अवतार (4) |
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6. | शक्त्यावेश अवतार | जब-जब भगवान अपनी विविध शक्तियों के अंश रूप में किसी में विधमान रहते हैं, तब वह जीव शक्त्यावेश अवतार कहलाता है।[6]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मध्य लीला अध्याय 20
- ↑ मध्य लीला 20.263
- ↑ मध्य लीला 20.249
- ↑ भगवान कृष्ण के विभिन्न अवतार (हिंदी) ISKCON desire tree। अभिगमन तिथि: 17 अगस्त, 2014।
- ↑ श्रीमद्भागवत (8.1.5,13)
- ↑ मध्य लीला 20.373
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