मथुरा
मथुरा
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विवरण | मथुरा उत्तर प्रदेश राज्य का एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक नगर है जो पर्यटन स्थल के रूप में भी बहुत प्रसिद्ध है। |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
ज़िला | मथुरा ज़िला |
भौगोलिक स्थिति | उत्तर 27.49, पूर्व 77.67 |
मार्ग स्थिति | यह आगरा से दिल्ली की ओर और दिल्ली से आगरा की ओर क्रमश: 58 किमी उत्तर-पश्चिम एवं 145 किमी दक्षिण-पश्चिम में यमुना के किनारे राष्ट्रीय राजमार्ग 2 पर स्थित है। |
तापमान | ग्रीष्म 22° से 45° से., शीत 40° से 32° से. |
प्रसिद्धि | कृष्ण जन्मभूमि, बांके बिहारी मन्दिर, रिफ़ाइनरी, मथुरा संग्रहालय |
कब जाएँ | कभी भी जा सकते हैं |
कैसे पहुँचें | बस, रेल, कार आदि से आसानी से मथुरा पहुँचा जा सकता है। |
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मथुरा जंक्शन, मथुरा कैंट स्टेशन |
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नया बस अड्डा, पुराना बस अड्डा |
कहाँ ठहरें | होटल, धर्मशाला, विश्राम ग्रह |
क्या खायें | चाट, कचौड़ी, जलेबी, लस्सी, मथुरा के पेडे आदि |
क्या ख़रीदें | माला, कंठी, भगवान की मूर्तियाँ, पोशाक, शंख आदि |
एस.टी.डी. कोड | 91(565) |
ए.टी.एम | लगभग सभी |
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गूगल मानचित्र |
संबंधित लेख | यमुना, होली, वृन्दावन, गोवर्धन, बरसाना, गोकुल, नंदगाँव, महावन आदि |
पिन कोड | 281001 |
वाहन पंजीयन | UP-85 |
बाहरी कड़ियाँ | आधिकारिक वेबसाइट |
अद्यतन | 18:58, 15 मार्च 2013 (IST)
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मथुरा (अंग्रेज़ी: Mathura) उत्तर प्रदेश राज्य का एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक नगर है जो पर्यटन स्थल के रूप में भी बहुत प्रसिद्ध है। मथुरा, भगवान कृष्ण की जन्मस्थली और भारत की परम प्राचीन तथा जगद्-विख्यात नगरी है। शूरसेन देश की यहाँ राजधानी थी। पौराणिक साहित्य में मथुरा को अनेक नामों से संबोधित किया गया है जैसे- शूरसेन नगरी, मधुपुरी, मधुनगरी, मधुरा आदि।
भौगोलिक स्थिति
मथुरा यमुना नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। समुद्र तल से ऊँचाई 187 मीटर है। जलवायु-ग्रीष्म 22° से 45° सेल्सियस, शीत 40° से 32° सेल्सियस औसत वर्षा 66 से.मी. जून से सितंबर तक होती है। मथुरा जनपद उत्तर प्रदेश की पश्चिमी सीमा पर स्थित है। इसके पूर्व में जनपद एटा, उत्तर में जनपद अलीगढ़, दक्षिण - पूर्व में जनपद आगरा, दक्षिण-पश्चिम में राजस्थान एवं पश्चिम-उत्तर में हरियाणा राज्य स्थित हैं। मथुरा, आगरा मण्डल का उत्तर-पश्चिमी ज़िला है। यह अक्षांश 27° 41' उत्तर और देशान्तर 77° 41' पूर्व के मध्य स्थित है। मथुरा जनपद में चार तहसीलें- माँट, छाता, महावन और मथुरा तथा 10 विकास खण्ड हैं- नन्दगाँव, छाता, चौमुहाँ, गोवर्धन, मथुरा, फ़रह, नौहझील, मांट, राया और बल्देव हैं। जनपद का भौगोलिक क्षेत्रफल 3329.4 वर्ग किमी है।

प्रमुख नदी 'यमुना'
जनपद की प्रमुख नदी यमुना है, जो उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हुई जनपद की कुल चार तहसीलों मांट, मथुरा, महावन और छाता में से होकर बहती है। यमुना का पूर्वी भाग पर्याप्त उपजाऊ है तथा पश्चिमी भाग अपेक्षाकृत कम उपजाऊ है। इस जनपद की प्रमुख नदी यमुना है। इसकी दो सहायक नदियाँ 'करवन' तथा 'पथवाहा' हैं। यमुना नदी वर्ष भर बहती है तथा जनपद की प्रत्येक तहसील को छूती हुई बहती है। यह प्रत्येक वर्ष अपना मार्ग बदलती रहती है, जिसके परिणामस्वरूप हज़ारों हैक्टेयर क्षेत्रफल बाढ़ से प्रभावित हो जाता है। यमुना नदी के किनारे की भूमि खादर है। जनपद की वायु शुद्ध एवं स्वास्थ्यवर्धक है। गर्मियों में अधिक गर्मी और सर्दियों में अधिक सर्दी पड़ना यहाँ की विशेषता है। वर्षा के अलावा वर्ष भर शेष समय मौसम सामान्यत: शुष्क रहता है। मई व जून के महीनों में तेज़ गर्म पश्चिमी हवायें (लू) चलती हैं। जनपद में अधिकांश वर्षा जुलाई व अगस्त माह में होती है। जनपद के पश्चिमी भाग में आजकल बाढ़ का आना सामान्य हो गया है, जिससे काफ़ी क्षेत्र जलमग्न हो जाता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अंगुत्तरनिकाय, 1।167, एकं समयं आयस्मा महाकच्छानो मधुरायं विहरति गुन्दावने
- ↑ मज्झिम.(2।84
- ↑ मथुरा का निवासी, या वहाँ उत्पन्न हुआ या मथुरा से आया हुआ
- ↑ पाणिनि, 4।2।82
- ↑ पाणिनि(4।3।98
- ↑ 3।1।138 एवं वार्तिक 'गविच विन्दे: संज्ञायाम्'
- ↑ पतंजलि महाभाष्य, जिल्द 1,पृ. 18, 19 एवं 192, 244, जिल्द 3, पृ. 299 आदि
- ↑ महाभारत आदिपर्व (221।46
- ↑ महाभारत, सभापर्व 14।41-45
- ↑ महाभारत, सभापर्व 14।49-50 एवं 67।
- ↑ वराह पुराण (152।8 एवं 11
- ↑ पद्म पुराण(4।69।12)।
- ↑ हरिवंश पुराण (विष्णुपर्व, 57।2-3
- ↑ अर्थात् अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थल
- ↑ तस्मान्माथुरक नाम विष्णोरेकान्तवल्लभम्। पद्म पुराण (4।69।12); मध्यदेशस्य ककुदं धाम लक्ष्म्याश्च केवलम्। श्रृंगं पृथिव्या: स्वालक्ष्यं प्रभूतधनधान्यवत्॥ हरिवंश पुराण (विष्णुपर्व, 57. 2-3)।
- ↑ ब्रह्म पुराण, 14।54-56
- ↑ वायु पुराण(88।185
- ↑ फाँस्बोल, जिल्द 4, पृ. 79-89, संख्या 454
- ↑ दक्षिण के पाण्डवों की नगरी भी मधुरा के नाम से प्रसिद्ध थी
- ↑ रघुवंश(15।28
- ↑ बुद्धिस्ट रिकर्डस आव वेस्टर्न वर्ल्ड, वील, जिल्द 1,पृ. 179
- ↑ कैटलोग आव क्वाएंस आव ऐंश्येण्ट इण्डिया, 1936
- ↑ और देखिए कैम्ब्रिज हिस्ट्री आव इण्डिया, जिल्द 1,पृ. 538
- ↑ मथुरा(सन् 1880 द्वितीय संस्करण
- ↑ मथुराडा. बी. सी. लो का लेख 'मथुरा इन ऐश्येण्ट इण्डिया',जे. ए. एस. आव बंगाल (जिल्द 13, 1947, पृ. 21-30)।
- ↑ पंवत् 8, एपिग्रैफिया इण्डिका, जिल्द 17, पृ. 10
- ↑ सामान्य रूप से कनिष्क की तिथि 78 ई. मानी गयी है। देखिए जे. बी. ओ. आर. एस. (जिल्द 23,1937, पृ. 113-117, डा. ए. बनर्जी-शास्त्री)।
- ↑ एपिग्रै. इण्डि., जिल्द 8, पृ. 181-182);
- ↑ सं. 74, वही, जिल्द 9, पृ. 241
- ↑ वही, पृ. 246
- ↑ वही, जिल्द 24, पृ. 184-210)।
- ↑ वही, जिल्द 1,पृ. 390)।
- ↑ विष्णु पुराण(6।8।31
- ↑ नव नाकास्तु (नागास्तु?) भोक्ष्यन्ति पुरीं चम्पावती नृपा:। मथुरां च पुरीं रम्यां नागा भोक्ष्यन्ति सप्त वै।। अनुगंगं प्रयागं च साकेंत मगधांस्तथा। एताञ् जनपदान्सर्वान् भोक्ष्यन्ते गुप्तवंशजा:॥ वायु पुराण (99।382-83); ब्रह्म पुराण (3।74।194)। डा. जायसवाल कृत 'हिस्ट्री ऑफ इण्डिया (150-350 ई.),' पृ. 3-15, जहाँ नाग-वंश के विषय में चर्चा है।
- ↑ अलबरूनी, भारत(जिल्द 2, पृ0 147
- ↑ अग्नि पुराण(11।8-9
- ↑ अभूत्पूर्मथुरा काचिद्रामोक्तो भरतोवधीत्। कोटित्रयं च शैलूषपुत्राणां निशितै: शरै:॥ शैलूषं दृप्तगन्धर्व सिन्धुतीरनिवासिनम्। अग्नि पुराण (2।8-9)। विष्णुधर्मोत्तर. (1, अध्याय 201-202)में आया है कि शैलूष के पुत्र गन्धर्वो ने सिन्धु के दोनों तटों की भूमि को तहस-नहस किया और राम ने अपने भाई भरत को उन्हें नष्ट करने को भेजा- 'जहि शैलूषतनयान् गन्धर्वान्, पापनिश्चयान्' (1।202-10)। शैलूष का अर्थ अभिनेता भी होता है। क्या यह भरतनाट्यशास्त्र के रचयिता भरत के अनुयायियों एवं अन्य अभिनेताओं के झगड़े की ओर संकेत करता है? नाट्यशास्त्र (17।47) ने नाटक के लिए शूरसेन की भाषा को अपेक्षाकृत अधिक उपयुक्त माना है। काणेकृत 'हिस्ट्री आव संस्कृत पोइटिक्स' (पृ0 40, सन् 1951)।
- ↑ वराह पुराण(अध्याय 152-178)। बृहन्नारदीय. (अध्याय 79-80
- ↑ भागवत. (10
- ↑ विष्णु पुराण(5-6
- ↑ पद्म पुराण(आदिखण्ड, 21।46-47
- ↑ वराह पुराण (152।8 एवं 11
- ↑ पद्म पुराण(4।69।12)।
- ↑ हरिवंश पुराण(विष्णुपर्व, 57।2-3
- ↑ तस्मान्माथुरक नाम विष्णोरेकान्तवल्लभम्। पद्म पुराण (4।69।12); मध्यदेशस्य ककुदं धाम लक्ष्म्याश्च केवलम्। श्रृंगं पृथिव्या: स्वालक्ष्यं प्रभूतधनधान्यवत्॥ हरिवंश पुराण (विष्णुपर्व, 57. 2-3)।
- ↑ `एवं भवतु काकुत्स्थ क्रियतां मम शासनम्, राज्ये त्वामभिषेक्ष्यामि मधोस्तु नगरे शुभे। नगरं यमुनाजुष्टं तथा जनपदाञ्शुभान् यो हि वंश समुत्पाद्य पार्थिवस्य निवेशने` उत्तर. 62,16-18.
- ↑ `तं पुत्रं दुर्विनीतं तु दृष्ट्वा कोधसमन्वित:, मधु: स शोकमापेदे न चैनं किंचिदब्रवीत्`-उत्तर. 61,18।
- ↑ `अर्ध चंद्रप्रतीकाशा यमुनातीरशोभिता, शोभिता गृह-मुख्यैश्च चत्वरापणवीथिकै:, चातुर्वर्ण्य समायुक्ता नानावाणिज्यशोभिता` उत्तर. 70,11।
- ↑ यच्चतेनपुरा शुभ्रं लवणेन कृतं महत्, तच्छोभयति शुत्रध्नो नानावर्णोपशोभिताम्। आरामैश्व विहारैश्च शोभमानं समन्तत: शोभितां शोभनीयैश्च तथान्यैर्दैवमानुषै:` उत्तर. 70-12-13। उत्तर0 70,5 (`इयं मधुपुरी रम्या मधुरा देव-निर्मिता) में इस नगरी को मथुरा नाम से अभिहित किया गया है।
- ↑ बाल्मीकि रामायाण,किष्किन्धाकाण्ड़,त्रिचत्वारिंशः सर्गः। तत्र म्लेच्छान् पुलिन्दांश्र्च शूरसेनां स्तथैव च। प्रस्थलान् भरतांश्र्चैव कुरुंश्र्च सह मद्रकैः॥ 11 काम्बोजयवनांश्र्चैव शकानां पत्तनानि च। अन्वीक्ष्य दरदांश्चैव हिमवन्तं विचिन्वथ ॥ 12
- ↑ `वयं चैव महाराज, जरासंधभयात् तदा, मथुरां संपरित्यज्य यता द्वारावतीं पुरीम्` महा. सभा. 14,67। श्रीमद्भागवत 10,41,20-21-22-23 में कंस के समय की मथुरा का सुंदर वर्णन है।
- ↑ `रूरोध मथुरामेत्य तिस भिम्र्लेच्छकोटिभि:
- ↑ रामायण, उत्तरकांड, सर्ग 62, पंक्ति 17
- ↑ कृष्णदत्त वाजपेयी, मथुरा, पृ 2
- ↑ प्लिनी, नेचुरल हिस्ट्री, भाग 6, पृ 19; तुलनीय ए, कनिंघम, दि ऐंश्येंटज्योग्राफी आफ इंडिया, (इंडोलाजिकल बुक हाउस, वाराणसी, 1963), पृ 315
- ↑ `कनिंघम ने 'क्लीसोबेरा' की पहचान 'केशवुर' या कटरा केशवदेव के मुहल्ले से की है। यूनानी लेखकों के समय में यमुना की मुख्य धारा या उसकी बड़ी शाखा वर्तमान कटरा या केशव देव के पूर्वी दीवार के समीप से बहती रही होगी ओर उसके दूसरी तरफ मथुरा नगर रहा होगा। ए, कनिंघम, दि ऐंश्येंटज्योग्राफी ऑफ इंडिया, इंडोलाजिकल बुक हाउस, वाराणसी, 1963 ई , पृ 315.
- ↑ हरिवंश पुराण, 1,54
- ↑ `सा पुरी परमोदारा साट्टप्रकारतोरणा स्फीता राष्ट्रसमाकीर्णा समृद्धबलवाहना। उद्यानवन संपन्ना सुसीमासुप्रतिष्ठिता, प्रांशुप्राकारवसना परिखाकुल मेखला`।
- ↑ `संप्राप्तश्र्चापि सायाह्ने सोऽक्रूरो मथुरां पुरीम` 5,19,9
- ↑ विष्णु-पुराण, 4,5,101
- ↑ `शत्रुघ्नेनाप्यमितबलपराक्रमो मधुपुत्रो लवणो नाम राक्षसोभिहतो मथुरा च निवेशिता`
- ↑ रघुवंश, 6,48
- ↑ 'यस्यावरोधस्तनचंदनानां प्रक्षालनाद्वारिविहारकाले, कलिंदकन्या मथुरां गतापि गंगोर्मिसंसक्तजलेव भाति`
- ↑ विष्णु पुराण, 1/12/43 मेक्रिण्डिल, ऐंश्येंटइंडिया एज डिस्क्राइब्ड बाई टालेमी (कलकत्ता, 1927), पृ 98
- ↑ `मदुरा य सूरसेणा' देखें-इंडियन एण्टिक्वेरी, संख्या 20, पृ 375
- ↑ जेम्स लेग्गे, दि टे्रवेल्स आफ फ़ाह्यान , द्वितीय संस्करण, 1972), पृ 42
- ↑ थामस वाट्र्स, आन युवॉन् च्वाग्स टे्रवेल्स इन इंडिया, दिल्ली, प्रथम संस्करण, 1961 ई) भाग 1, पृ 301
- ↑ हरमन जैकोबी, सेक्रेड बुक्स ऑफ दि ईस्ट, भाग 45, पृ 112
- ↑ मनुस्मृति, भाग 2, श्लोक 18 और 20
- ↑ ये वसंति महाभागे मथुरायामितरे जना:। तेऽपि यांति परमां सिद्धिं मत्प्रसादन्न संशय: वाराह पुराण, पृ 852, श्लोक 20
- ↑ मथुरायां महापुर्या ये वसंति शुचिव्रता:। बलिभिक्षाप्रदातारो देवास्ते नरविग्रहा:।। तत्रैव, श्लोक 22
- ↑ मथुराममंडमम् प्राप्य श्राद्धं कृत्वा यथाविधि। तृप्ति प्रयांति पितरो यावस्थित्यग्रजन्मन:।। तत्रैव, श्लोक 19
- ↑ पद्मपुराण, पृ 600, श्लोक 53
- ↑ वराह पुराण, अध्याय 152
- ↑ गोवर्द्धनो गिरिवरो यमुना च महानदी। तयोर्मध्ये पुरोरम्या मथुरा लोकविश्रुता।। वाराहपुराण, अध्याय 165, श्लोक 23
- ↑ `शितिर्योजनानातं मथुरां मत्र मंडलम्।' तत्रैव, अध्याय 158, श्लोक1
- ↑ ब्रह्म पुराण, अध्याय 14 श्लोक 54
- ↑ हरिवंश पुराण, अध्याय 37
- ↑ हरिवंश पुराण, अध्याय 195, श्लोक 3
- ↑ स्कन्द पुराण, विष्णु खंड, भागवत माहात्म्य, अध्याय 1
- ↑ वायुपुराण, अध्याय 99; विमलचरण लाहा, इंडोलाजिकल स्टडीज, भाग 2, पृ 32
- ↑ एफ इ पार्जिटर, ऐंश्येंट इंडियन हिस्टारिकल टे्रडिशन पृ 171
- ↑ एफ इ पार्जिटर, ऐंश्येंट इंडियन हिस्टारिकल टे्रडिशन, पृ2.11
- ↑ माधव अर्थात् मधु का वंशज जो कृष्ण को भी कहा जाता है, कृष्ण मधुसूदन भी हैं किन्तु वह मधुकैटव राक्षस से अर्थ है।
- ↑ विमलचरण लाहा, प्राचीन भारत का ऐतिहासिक भूगोल, (उत्तर प्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी, लखनऊ, प्रथम संस्करण, 1972 ई.) पृ 183
- ↑ इयम् मधुपुरी रम्या मधुरा देवनिर्मिता (देवताओं द्वारा बनाई गई) निवेशं प्राप्नयाच्छीध्रमेश मे स्तु वर: पर:।। वाल्मीकि रामायण, उत्तराकांड, सर्ग 70, पंक्ति 5-6
- ↑ एफ ई पार्जिटर, ऐंश्येंटइंडियन हिस्टारिकल ट्रेडिशन, तुलनीय, हेमचंद्र राय चौधरी, प्राचीन भारत का राजनीतिक इतिहास , पृ 107
- ↑ ऋग्वेद, 1/108/8)। ऋग्वेद (तत्रैव, 1/36; 18;5/45/1
- ↑ शतानीक: सामंतासु मेध्यम् सत्राजिता हयम् ,आदत्त यज्ञंकाशीनम् भरत: सत्वतामिव।। -शतपथ ब्राह्मण, 13/5/4/21
- ↑ शतपथ ब्राह्मण, अध्याय 13/5/4/11; तुल हेमचंद्र राय चौधरी, प्राचीन भारत का राजनीतिक इतिहास, पृ 108
- ↑ विंशतिर्योजनानां तु माथुरं परिमण्डलम्। तन्मध्ये मथुरा नाम पुरी सर्वोत्तमोत्तमा॥ नारदीय पुराण उत्तर, 79। 20-21
- ↑ वराह पुराण(अध्याय 153 एवं 161। 6-10
- ↑ नारदीय पुराण (उत्तरार्ध, 79।10-18
- ↑ ग्राउसकृत मथुरा, पृ. 76
- ↑ विष्णुपुराण 5।6।28-40, नारदीय पुराण, उत्तरार्ध 80।6,8 एवं 77)
- ↑ पद्मपुराण पाताल, 75।8-14
- ↑ पद्मपुराण (4।69।9)
- ↑ मत्स्यपुराण (13।38)
- ↑ विष्णुपुराण (5।11।15-24
- ↑ वराहपुराण (164।1)
- ↑ कूर्मपुराण (1।14।18)
- ↑ हरिवंशपुराण (विष्णुपर्व 13।3)
- ↑ कालिदास (रघुवंश 6।51)
- ↑ देखिए चैतन्यचरितामृत, सर्ग 19 एवं कवि कर्णपूर या परमानन्द दास कृत नाटक चैतन्यचन्द्रोदय, अंक 9
- ↑ देखिए प्रो. एस. के. दे कृत 'वैष्णव फेथ एण्ड मूवमेंट इन बेंगाल, 1942, पृ. 83-122
- ↑ देखिए मणिलाल सी. पारिख का वल्लभाचार्य पर ग्रन्थ,पृ. 161
- ↑ देखिए इलिएट एवं डाउसन कृत 'हिस्ट्री आव इण्डिया ऐज टोल्ड बाई इट्स ओन हिस्टोरिएन', जिल्द 7, पृ0 184, जहाँ 'म-असिर-ए-आलमगीरी' की एक उक्ति इस विषय में इस प्रकार अनूदित हुई है,-"औरंगजेब ने मथुरा के 'देहरा केसु राय' नामक मन्दिर (जो, जैसा कि उस ग्रन्थ में आया है, 33 लाख रुपयों से निर्मित हुआ था) को नष्ट करने की आज्ञा दी, और शीघ्र ही वह असत्यता का शक्तिशाली गढ़ पृथिवी में मिला दिया गया और उसी स्थान पर एक बृहत् मसजिद की नींव डाल दी गयी।"
- ↑ सभापर्व (319।23-24)
- ↑ मगध की प्राचीन राजधानी, राजगिर
- ↑ अध्याय 9
- ↑ अध्याय 11
- ↑ चित्रमय भारत (पृ. 253
- ↑ वराह पुराण(अध्याय 153 एवं 161। 6-10
- ↑ नारदीय पुराण(उत्तरार्ध, 79।10-18
- ↑ ग्राउसकृत मथुरा, पृ. 76