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विचित्र वीणा

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विचित्र वीणा
Vichitra Veena

विचित्र वीणा 'भारतीय शास्त्रीय संगीत' में प्रयोग किये जाने वाले वाद्य यंत्रों में से एक है। प्राचीन काल में एकतंत्री वीणा नाम का एक साज़ हुआ करता था, विचित्र वीणा उसी साज़ का आधुनिक रूप है। यह उत्तर भारतीय संगीत में वीणा का नवीनतम रूप है। इस वाद्य की धमकदार आवाज़ और अतिसार सप्तक की धारदार आवाज़ दोनों ही वीणा की ध्वन्यात्मक विशेषताये हैं। विचित्र वीणा में तारों के माध्यम से आवाज़ उत्पन्न की जाती है। इस वाद्य यंत्र को बजाने और निपुणता हासिल करने के लिए बहुत कठिन परिश्रम की आवश्यकता होती है।

संरचना

विचित्र वीणा का स्‍वरूप बहुत कुछ रुद्र वीणा के समान है। किन्‍तु बारीकी से देखने पर यह उससे काफ़ी भिन्‍न दिखाई देती है। इसकी प्रमुख बात ये है कि इसमें परदों का प्रयोग नहीं किया जाता, जिसके कारण इसका वादन क्लिष्‍टतम हो जाता है। लगभग 50 इंच लम्‍बा, 5 इंच चौड़ा एवं ढाई इंच गहरी डाड इस वीणा के बृहद स्‍वरूप को दिखाती है। तुन्‍न या टीक से बने दण्‍ड में बाँयीं और दाहिनी ओर छ: बड़ी खूँटियाँ होती हैं, जिससे मुख्‍य तार बँधे होते हैं। इसके अतिरिक्‍त चार से पाँच खूँटियाँ चिकारी की लगती हैं। दाहिनी ओर दो और बाँयीं ओर तीन खूँटियाँ मुख्‍य दण्‍ड में लगायी जाती हैं। इस प्रकार दस से ग्यारह बड़ी खूँटियाँ इस वाद्य में प्रयुक्‍त होती हैं। इसके अतिरिक्त ग्यारह से पन्द्रह तक तरब की खूँटियाँ भी होती हैं, जिनसे तरब के तार बाँधे जाते हैं। इस बृहद वीणा को दो बड़े तुम्‍बों के सहारे सीधा रखा जाता है, जिसकी उँचाई जमीन से लगभग पन्द्रह इंच पर होती है। इस वाद्य के अग्र भाग में मोर अथवा किसी पक्षी का मुखड़ा एक लकड़ी में नक्‍काशी करके अलग से लगा दिया जाता है। पिछले भाग का हिस्‍सा लगभग बारह इंच का टुकड़ा होता है। मुख्‍य तार की खूँटियाँ इसी टुकड़े के दोनो ओर लगाई जाती हैं। इस वाद्य को काँच के बने बट्टे से बजाया जाता है।[1]

वादन

इस वाद्य यंत्र का वादन करने के लिये लगभग 23 इंच का स्‍थान घुड़च और तार गहन के बीच का होता है। इस पूरे हिस्‍से में काँच का बट्टा बांयें हाथ से रगड़ते हुए स्‍वरों को ध्‍वनित किया जाता है। दा‍हिने हाथ में तर्जनी और मध्‍यमा उँगली में मिजराब धारण करके तारों को छेड़ा जाता है। विचित्र वीणा वादक को दाहिने और बांये हाथ का सामंजस्‍य बनाये रखने के लिये अभ्‍यास करना पड़ता है, जो एक अत्‍यंत कठिन प्रक्रिया है। इस वाद्य की वादन विधि अत्‍यंत कठिन व श्रमसाध्‍य होने के कारण इसका वादन बहुत कम कलाकार कर पाते हैं। बीसवीं सदी में ‍जिन प्रमुख वीणा वादकों का नाम लिया जाता है, उनमें उस्‍ताद अब्‍दुल अज़ीज़ ख़ाँ, संगीतेंदु डॉ. लाल मणि मिश्र, गोपाल कृष्‍ण, रमेश प्रेम, डॉ. गोपालशंकर इत्‍यादि हैं। 21वीं सदी में कुछ महिलाओं ने भी इस वाद्य को अपनाने में पहल की है, जो एक शुभ लक्षण है।

श्रेष्ठ वाद्य यंत्र

विचित्र वीणा सम्‍भवत: भारतीय वाद्यों में इसीलिए श्रेष्ठ कहलाती है, क्‍योंकि जब तक रागदारी, स्‍वरों का समुचित ज्ञान, संवाद तत्‍व और लय-ताल पर अधिकार प्राप्‍त नहीं हो जाता, तब तक इस वाद्य को बजा पाना सम्‍भव नहीं है। जो कलाकार इन तत्‍वों का ज्ञान प्राप्‍त किये बिना ही इसे बजाने की कोशिश करते हैं, वे या तो खुद हास्‍य का पात्र बन जाते हैं या कुछ समय के बाद इसे दु:साध्‍य कहकर छोड़ देते हैं। इस वाद्य में ओजस्विता पैदा कर सकने का गुण मुश्किल से ही आ पाता है। यद्यपि उपर्युक्त तथ्य सभी भारतीय वाद्यों में लागू होते हैं, तथापि अन्‍य तंत्री वाद्यों में सामान्‍यत: स्‍वरों का स्‍थान सारिका अथवा पर्दों के द्वारा निर्धारित कर दिया जाता है, जिसके फलस्‍वरूप वे इतने दुर्बोध नहीं लगते। ये तर्क दिया जा सकता है कि जिन तंत्री वाद्यों में पर्दा व्‍यवस्‍था नहीं होती, जैसे- सरोद, सारंगी इत्यादि, वहाँ भी स्‍वरों के स्‍थान का अंदाज़ अवश्‍य लगाना पड़ता है। किन्‍तु इन वाद्यों की लम्‍बाई, चौड़ाई आमतौर पर उतनी बृहद नहीं होती, जितनी विचित्र वीणा की होती है। फिर चाहे तान क्रिया हो या मुर्की और गमक इत्‍यादि, स्‍वरों को स्‍पर्श करने की प्रक्रिया, उनके बजाने के लिये वाद्य वादन का दायरा उतना ही बड़ा बनाना पड़ता है, जितना बड़ा उस वाद्य को बजाने का क्षेत्र होता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 भारतीय वीणाओं में श्रेष्ठ - विचित्रवीणा (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 21 फ़रवरी, 2013।

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