मदन मोहन मन्दिर वृन्दावन
मदन मोहन मन्दिर वृन्दावन
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विवरण | एक वैष्णव संप्रदाय का मन्दिर है। |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
नगर | वृन्दावन |
निर्माता | राम दास खत्री या कपूरी निवासी मुलतान |
निर्माण | 1590 ई. से 1627 ई. के बीच |
प्रसिद्धि | उत्तरी भारत की स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना |
संबंधित लेख | गोविन्द देव मन्दिर, गोपीनाथ मन्दिर और जुगल किशोर मन्दिर |
शासन काल | मुग़ल (अकबर-जहाँगीर) |
अन्य जानकारी | मदनमोहन जी की मूल मूर्ति अब करौली में है। करौली में राजगोपाल सिंह ने 1725 ई. में उनके स्वागतार्थ नया मन्दिर बनवाया गया। |
अद्यतन | 12:47, 17 जुलाई 2012 (IST)
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मदन मोहन मन्दिर उत्तर प्रदेश राज्य में मथुरा ज़िले के वृन्दावन नगर में स्थित एक वैष्णव संप्रदाय का मन्दिर है। मदन मोहन जी का यह मन्दिर पुरातनता में गोविन्द देव जी के मंदिर के बाद आता है। निर्माण के समय और शिल्पियों के संबन्ध में कुछ जानकारी नहीं है। प्रचलित कथाओं में आता है कि राम दास खत्री (कपूरी नाम से प्रचलित) व्यापारी की व्यापारिक सामान से लदी नाव यहाँ यमुना में फंस गयी थी। जो मदन मोहन जी के दर्शन और प्रार्थना के बाद निकल गयी। वापसी में रामदास ने यह मंदिर बनवाया।
धार्मिक मान्यताएँ एवं कथा
श्रीकृष्ण भगवान के अनेक नामों में से एक प्रिय नाम मदनमोहन भी है। इसी नाम से एक मंदिर कालीदह घाट के समीप शहर के दूसरी ओर ऊँचे टीले पर विद्यमान है। विशालकायिक नाग के फन पर भगवान चरणाघात कर रहे हैं। लक्ष्मणदास के भक्त-सिन्धु में इसकी कथा दी गयी है। यह भक्त-माल का आधुनिक संस्करण है। गोस्वामीपाद रूप गोस्वामी और सनातन गोस्वामी को गोविन्द जी की मूर्ति नन्दगाँव से प्राप्त हुई थी। यहाँ एक गोखिरख में से खोदकर इसे निकाला गया था, इससे इसका नाम गोविन्द हुआ। वहाँ से लाकर गोविन्द जी को ब्रहृकुण्ड के वर्तमान मंदिर की जगह पर पधराया गया। वृन्दावन उन दिनों बसा हुआ नहीं था। वे समीपवर्ती गाँवों में तथा मथुरा भी भिक्षाटन हेतु जाते थे। एक दिन मथुरा के एक व्यक्ति ने उन्हें मदनमोहन की मूर्ति प्रदान की जिसे उन्होंने लाकर दु:शासन पहाड़ी पर कालीदह के पास पधार दिया। वहीं उन्होंने अपने रहने के लिये एक झोंपड़ी भी बना ली और उस जगह का नाम पशुकन्दन घाट रख दिया। क्योंकि मार्ग इतना ऊँचा-नीचा और ख़राब था कि कोई पशु भी नहीं जा सकता था। 'निचाऊ-ऊँचाऊ देखी विशेषन पशुकन्दन वह घाट कहाई, तहाँ बैठी मनसुख लहाई।' एक दिन पंजाब में मुल्तान का रामदास खत्री- जो कपूरी नाम से अधिक जाना जाता था, आगरा जाता हुआ व्यापार के माल से भरी नाव लेकर यमुना में आया किन्तु कालीदह घाट के पास रेतीले तट पर नाव अटक गयी। तीन दिनों तक निकालने के असफल प्रयासों के बाद वह स्थानीय देवता को खोजने और सहायता माँगने लगा। वह किनारे पर आकर पहाड़ी पर चढ़ा। वहाँ उसे सनातन मिले। सनातन ने व्यापारी से मदनमोहन से प्रार्थना करने का आदेश दिया। उसने ऐसा ही किया और तत्काल नाव तैरने लग गई। जब वह आगरे से माल बेचकर लौटा तो उसने सारा पैसा सनातन को अर्पण कर दिया और उससे वहाँ मंदिर बनाने की विनती की। मंदिर बन गया और लाल पत्थर का घाट भी बना।
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