- असिकुण्ड तीर्थ के उत्तर में नवतीर्थ है । यहाँ स्नान करने से भक्ति की नवनवायमान रूप में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है । इससे बढ़कर तीर्थ न हुआ है, और न होगा ।
उत्तरे त्वसिकुण्डाञ्च तीर्थन्तु नवसंश्रकम् ।
नवतीर्थात् परं तीर्थ न भूतं न भविष्यति ।।
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