नन्द बैठक
नन्द बैठक
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विवरण | नन्द बैठक वह स्थान जहाँ ब्रजेश्वर महाराज नन्द अपने बड़े और छोटे भाईयों, वृद्ध गोपों तथा पुरोहित आदि के साथ परामर्श आदि करते थे, इसलिये इसे 'बैठक' कहा गया है। |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
ज़िला | मथुरा |
प्रसिद्धि | हिन्दू धार्मिक स्थल |
कब जाएँ | कभी भी |
बस, कार, ऑटो आदि | |
क्या देखें | नन्दगाँव, नन्द जी मंदिर, जटिला की हवेली, बरसाना, लट्ठमार होली, पानिहारी कुण्ड आदि। |
संबंधित लेख | नंदगाँव, कृष्ण, राधा, वृषभानु, जटिला, ललिता सखी, विशाखा सखी, वृन्दावन, मथुरा, गोवर्धन, आदि।
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अन्य जानकारी | ब्रज चौरासी कोस में महाराज नन्द की बहुत-सी बैठकें हैं। |
अद्यतन | 17:57, 23 जून 2017 (IST)
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नन्द बैठक यानी वह स्थान जहाँ ब्रजेश्वर महाराज नन्द अपने बड़े और छोटे भाईयों, वृद्ध गोपों तथा पुरोहित आदि के साथ समय-समय पर बैठकर कृष्ण के कल्याणार्थ विविध प्रकार के परामर्श आदि करते थे। बैठकर परामर्श करने के कारण इसे 'बैठक' कहा गया है। चौरासी कोस ब्रज में महाराज नन्द की बहुत-सी बैठकें हैं।
संक्षिप्त प्रसंग
नन्दबाबा गोकुल के साथ जहाँ भी विराजमान होते थे, वहीं पर समयोचित बैठकें हुआ करती थीं। इसी प्रकार की छोटी-बड़ी बैठकें अन्य स्थानों में भी हैं। नन्दबाबा, गो, गोप, गोपी आदि के साथ जहाँ भी निवास करते थे, उसे नन्दगोकुल कहा जाता था। बैठकें कैसे होती थीं, उसका एक प्रसंग इस प्रकार है-
गिरिराज गोवर्धन को सात दिनों तक अपनी कनिष्ठ अंगुली पर धारण कर सप्त वर्षीय कृष्ण ने इन्द्र का घमण्ड चकनाचूर कर दिया था। इससे सभी वृद्ध गोप बड़े आश्चर्यचकित हुए। उन्होंने एक बैठक की। नन्द के ज्येष्ठ भ्राता उपानन्द उस बैठक के सभापति हुए। नन्दबाबा भी उस बैठक में बुलाये गये। वृद्ध गोपों ने बैठक में अपना-अपना यह मन्तव्य प्रकट किया कि श्रीकृष्ण एक साधारण बालक नहीं हैं। जन्मते ही पूतना जैसी भयंकर राक्षसी को खेल-ही-खेल में मार डाला। तत्पश्चात् शकटासुर, तृणावर्त, अघासुर आदि को मार गिराया। कालिय जैसे भयंकर नाग का भी दमन कर उसको कालियदह से बाहर कर दिया। अभी कुछ ही दिन हुए गिरिराज जैसे विशाल पर्वत को सात दिनों तक अपनी कनिष्ठ अंगुली पर धारण कर मूसलाधार वृष्टि और आँधी-तूफ़ान से सारे ब्रज की रक्षा की। यह साधारण बालक का कार्य नहीं है। हमें तो ऐसा लगता है कि यह कोई सिद्ध पुरुष, देवता अथवा स्वयं नारायण ही हैं। नन्द और यशोदा का पुत्र मानकर इसे डाँटना, डपटना, चोर, उद्दण्ड आदि सम्बोधन करना उचित नहीं है। अत: नन्द, यशोदा और गोप, गोपी सावधानी से सदैव इसके साथ प्रीति और गौरवमय व्यवहार ही करें। उपस्थित सभी गोपों ने इस वक्तव्य को बहुत ही गम्भीर रूप से ग्रहण किया। सभी ने मिलकर नन्दबाबा को इस विषय में सतर्क कर दिया।
नन्दबाबा ने हँसते हुए उनकी बातों को उड़ा दिया और कहा- "आदरणीय सज्जनों! आपका वक्तव्य मैंने श्रवण किया, किन्तु मैं कृष्ण में लेशमात्र भी किसी देवत्व या भगवत्ता का लक्षण नहीं देख रहा हूँ। मैं इसे जन्म से जानता हूँ। भला भगवान को भूख और प्यास लगती है? यह मक्खन और रोटी के लिए दिन में पचास बार रोता है। क्या भगवान चोरी करता और झूठ बोलता है? यह गोपियों के घरों में जाकर मक्खन चोरी करता है, झूठ बोलता है तथा नाना प्रकार के उपद्रव करता है। पड़ोस की गोपियाँ इसे चुल्लूभर मठ्ठे के लिए, लड्डू के लिए तरह‑तरह से नचाती और इसके साथ खिलवाड़ करती हैं। जैसा भी हो, जब इसने हमारे घर में पुत्र के रूप में जन्म ग्रहण किया है, तब इसके प्रति हमारा यही कर्तव्य है, भविष्य में यह सदाचार आदि सर्वगुणसम्पन्न आदर्श व्यक्ति बने। हाँ एक बात है कि महर्षि गर्गाचार्य ने नामकरण के समय यह भविष्यवाणी की थी कि तुम्हारा यह बालक गुणों में भगवान नारायण के समान होगा। अत: चिन्ता की कोई बात नहीं हैं।" इसके अतिरिक्त कभी-कभी कृष्ण के हित में, उसकी सगाई के लिए तथा अन्य विषयों के लिए समय-समय पर बैठकें हुआ करती थीं।
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