षटतिला एकादशी
षटतिला एकादशी
| |
विवरण | 'षटतिला एकादशी' का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व बताया गया है। यह एकादशी भगवन विष्णु को समर्पित है। |
अनुयायी | हिन्दू, प्रवासी भारतीय |
तिथि | माघ मास, कृष्ण पक्ष की एकादशी |
प्रारम्भ | पौराणिक काल |
सम्बन्धित देव | विष्णु |
महत्त्व | इस एकादशी पर काले तिलों के दान का विशेष महत्त्व है। शरीर पर तिल के तेल की मालिश, जल में तिल डालकर उससे स्नान, तिल जलपान तथा तिल पकवान की इस दिन विशेष महत्ता है। |
संबंधित लेख | विष्णु, माघ मास, माघ स्नान, कृष्ण पक्ष, एकादशी |
अन्य जानकारी | इस दिन छह रूपों में तिलों का प्रयोग किया जाता है, इसीलिए यह एकादशी 'षटतिला' कहलाती है। |
षटतिला एकादशी (अंग्रेज़ी: Shattila Ekadashi, माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन काले तिलों के दान का विशेष महत्त्व है। शरीर पर तिल के तेल की मालिश, जल में तिल डालकर उससे स्नान, तिल जलपान तथा तिल पकवान की इस दिन विशेष महत्ता है। इस दिन तिलों का हवन करके रात्रि जागरण किया जाता है। 'पंचामृत' में तिल मिलाकर भगवान को स्नान कराने से बड़ा मिलता है। षटतिला एकादशी पर तिल मिश्रित पदार्थ स्वयं भी खाएं तथा ब्राह्मण को भी खिलाना चाहिए।
तिल का प्रयोग
इस दिन छ: प्रकार के तिल प्रयोग होने के कारण इसे "षटतिला एकादशी" के नाम से पुकारते हैं। इस प्रकार मनुष्य जितने तिल दान करता है, वह उतने ही सहस्त्र वर्ष स्वर्ग में निवास करता है। इस एकादशी पर तिल का निम्नलिखित छ: प्रकार से प्रयोग किया जाता है[1]-
- तिल स्नान
- तिल की उबटन
- तिलोदक
- तिल का हवन
- तिल का भोजन
- तिल का दान
इस प्रकार छह रूपों में तिलों का प्रयोग 'षटतिला' कहलाता है। इससे अनेक प्रकार के पाप दूर हो जाते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 षटतिला एकादशी पर अन्न एवं तिल दान से धन-धान्य में वृद्धि होती है (हिन्दी) पंजाब केसरी। अभिगमन तिथि: 16 जनवरी, 2014।
संबंधित लेख
|