जीवित्पुत्रिका व्रत
जीवित्पुत्रिका व्रत स्त्रियों द्वारा संतान की मंगल कामना के लिए किया जाता है। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रदोषकाल-व्यापिनी अष्टमी के दिन माताएं अपने पुत्रों की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सम्पन्नता हेतु यह व्रत करती हैं। इसे ग्रामीण इलाकों में "जीउतिया" के नाम से जाना जाता है। मिथिलांचल तथा उत्तर प्रदेश के पूर्वाचल में इस व्रत की बड़ी मान्यता है। माताएं इस व्रत को बड़ी श्रद्धा के साथ करती हैं।
अर्थ
भारतीय संस्कृति अपने पर्व त्यौहारों की वजह से ही इतनी फली-फूली लगती है। यहां हर पर्व और त्यौहार का कोई ना कोई महत्व होता ही है। कई ऐसे भी पर्व हैं जो हमारी सामाजिक और पारिवारिक संरचना को मजबूती देते हैं, जैसे- जीवित्पुत्रिका व्रत, करवा चौथ आदि। जीवित्पुत्रिका व्रत का अर्थ है- "जीवित पुत्र के लिए रखा जाने वाला व्रत"। यह व्रत वह सभी सौभाग्यवती स्त्रियां रखती हैं, जिनको पुत्र होते हैं और साथ ही जिनके पुत्र नहीं होते वह भी पुत्र कामना और बेटी की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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