इन्दिरा एकादशी
इन्दिरा एकादशी
| |
विवरण | भटकते हुए पितरों को गति देने वाली पितृपक्ष की एकादशी का नाम इन्दिरा एकादशी है। |
अनुयायी | हिन्दू |
प्रारम्भ | वैदिक-पौराणिक |
तिथि | अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी |
उद्देश्य | इस एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति के सात पीढ़ियों तक के पितृ तर जाते हैं। इस एकादशी का व्रत करने वाला स्वयं मोक्ष प्राप्त करता है। |
विशेष | इस दिन पूजा तथा प्रसाद में तुलसी की पत्तियों का (तुलसीदल) का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाता है। |
संबंधित लेख | श्राद्ध, पितृपक्ष, श्राद्ध के नियम, तर्पण, पितर, श्राद्ध करने का स्थान, श्राद्ध की महत्ता, श्राद्ध फलसूची, श्राद्ध विधि, पिण्डदान। |
अन्य जानकारी | इस एकादशी के व्रत और पूजा का विधान वही है, जो अन्य एकादशियों का है। अंतर केवल यह है कि इस दिन शालिग्राम की पूजा की जाती है। |
इन्दिरा एकादशी अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहा गया है। हिन्दू धर्म में इसका बहुत महत्त्व है। भटकते हुए पितरों को गति देने वाली पितृपक्ष की एकादशी का नाम 'इन्दिरा एकादशी' है। इस एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति के सात पीढ़ियों तक के पितृ तर जाते हैं। इस एकादशी का व्रत करने वाला स्वयं मोक्ष प्राप्त करता है।
विधि
इस एकादशी के व्रत और पूजा का विधान वही है, जो अन्य एकादशियों का है। अंतर केवल यह है कि इस दिन शालिग्राम की पूजा की जाती है। इस दिन स्नान आदि से पवित्र होकर भगवान शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराकर भोग लगाना चाहिए तथा पूजा कर आरती करनी चाहिए। फिर पंचामृत वितरण कर, ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए। इस दिन पूजा तथा प्रसाद में तुलसी की पत्तियों का (तुलसीदल) का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाता है।
संबंधित लेख
|