रूपनवमी हिन्दू धर्म में किये जाने वाला एक व्रत है। मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष की नवमी को इस व्रत का प्रारम्भ होता है। इस व्रत की देवी चंडिका हैं।
- इस व्रत को करने वाले को नवमी के दिन उपवास या नक्त या एकभक्त पद्धति से आहार करना चाहिए।
- आटे का त्रिशूल तथा चांदी का कमल बनाकर उसे सर्व पापनाशिनी दुर्गाओं को समर्पित कर देना चाहिए।
- पौष माह तथा उसके पश्चात् वाले मासों में भिन्न-भिन्न प्रकार के कृत्रिम पशु बनाये जाते हैं।
- बनाये गए कृत्रिम पशुओं को भिन्न-भिन्न धातु के पात्रों में रखना चाहिए।
- इसके उपरान्त वे देवी को भेंट कर दिये जाते हैं।
- इस व्रत के आचरण से व्रती असंख्य वर्षों तक चंद्रलोक में वास करने के बाद सुन्दर राजा बनता है।
- रूप का तात्पर्य है, शिल्पियों या कलाकारों द्वारा बनायी गई कोई वस्तु अथवा आकृति, जो किसी पशु से समता रखती हो।
- जिन देवताओं का ऊपर उल्लेख किया गया है, वे या तो दुर्गाजी हों या मातृदेवता।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
हिन्दू धर्मकोश |लेखक: डॉ. राजबली पाण्डेय |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 561 |
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