कबीर जयंती

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कबीर जयंती
संत कबीरदास
अनुयायी भारतीय, कबीरपंथी
तिथि ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा
प्रसिद्धि कबीर का जन्म संवत 1455 की ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था। इसीलिए इस दिन देश भर में कबीर जयंती मनाई जाती है।
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अन्य जानकारी कबीरदास जी को हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही संप्रदायों में बराबर का सम्मान प्राप्त था। दोनों संप्रदाय के लोग उनके अनुयायी थे। यही कारण था कि उनकी मृत्यु के बाद उनके शव को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। हिन्दू कहते थे कि उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से होना चाहिए और मुस्लिम कहते थे कि मुस्लिम रीति से। किंतु इसी छीना-झपटी में जब उनके शव पर से चादर हट गई, तब लोगों ने वहाँ फूलों का ढेर पड़ा देखा।

कबीर जयंती प्रत्येक वर्ष के ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को मनाई जाती है। कबीर का नाम कबीरदास, कबीर साहब एवं संत कबीर जैसे रूपों में भी प्रसिद्ध है। ये मध्यकालीन भारत के स्वाधीनचेता महापुरुष थे। इनका परिचय, प्राय: इनके जीवनकाल से ही, इन्हें सफल साधक, भक्त कवि, मतप्रवर्तक अथवा समाज सुधारक मानकर दिया जाता रहा है। इनके नाम पर कबीरपंथ नामक संप्रदाय भी प्रचलित है। कबीरपंथी इन्हें एक अलौकिक अवतारी पुरुष मानते हैं और इनके संबंध में बहुत सी चमत्कारपूर्ण कथाएँ भी सुनी जाती हैं। कबीर का जन्म संवत 1455 की ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था। इसीलिए इस दिन देश भर में कबीर जयंती मनाई जाती है।

प्रसिद्धि

संत कबीरदास

संसारभर में भारत की भूमि ही तपोभूमि (तपोवन) के नाम से विख्यात है। यहाँ अनेक संत, महात्मा और पीर-पैगम्बरों ने जन्म लिया। सभी ने भाईचारे, प्रेम और सद्भावना का संदेश दिया है। इन्हीं संतों में से एक संत कबीरदासजी भी हुए हैं। महात्मा कबीर समाज में फैले आडम्बरों के सख्त विरोधी थे। उन्होंने लोगों को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। वे लेखक और कवि थे। उनके दोहे इंसान को जीवन की नई प्रेरणा देते थे। कबीर ने जिस भाषा में लिखा, वह लोक प्रचलित तथा सरल थी। उन्होंने विधिवत शिक्षा नहीं ग्रहण की थी, इसके बावजूद वे दिव्य प्रभाव के धनी थे।[1]

अनुयायी

कबीरदासजी को हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही संप्रदायों में बराबर का सम्मान प्राप्त था। दोनों संप्रदाय के लोग उनके अनुयायी थे। यही कारण था कि उनकी मृत्यु के बाद उनके शव को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। हिन्दू कहते थे कि उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से होना चाहिए और मुस्लिम कहते थे कि मुस्लिम रीति से। किंतु इसी छीना-झपटी में जब उनके शव पर से चादर हट गई, तब लोगों ने वहाँ फूलों का ढेर पड़ा देखा। यह कबीरजी की ओर से दिया गया बड़ा ही सशक्त संदेश था कि इंसान को फूलों की तरह होना चाहिए- सभी धर्मों के लिए एक जैसा भाव रखने वाले, सभी को स्वीकार्य। बाद में वहाँ से आधे फूल हिन्दुओं ने ले लिए और आधे मुसलमानों ने तथा अपनी-अपनी रीति से उनका अंतिम संस्कार किया।[1]

युगपुरुष

अंधों की बस्ती में रोशनी बेचते कबीर वाकई अपने आने वाले समय की अमिट वाणी थे। कबीर का जन्म इतिहास के उन पलों की घटना है जब सत्य चूक गया था और लोगों को असत्य पर चलना आसान मालूम पड़ता था। अस्तित्व, अनास्तित्व से घिरा था। मृत प्राय मानव जाति एक नए अवतार की बाट जोह रही थी। ऐसे में कबीर की वाणी ने प्रस्फुटित होकर सदियों की पीड़ा को स्वर दे दिए। अपनी कथनी और करनी से मृत प्राय मानव जाति के लिए कबीर ने संजीवनी का कार्य किया। इतिहास गवाह है, आदमी को ठोंक-पीट कर आदमी बनाने की घटना कबीर के काल में, कबीर के ही हाथों हुई। शायद तभी कबीर कवि मात्र ना होकर युगपुरुष कहलाए। 'मसि-कागद' छुए बगैर ही वह सब कह गए जो कृष्ण ने कहा, नानक ने कहा, ईसा मसीह ने कहा और मुहम्मद ने कहा। आश्चर्य की बात, अपने साक्ष्यों के प्रसार हेतु कबीर सारी उम्र किसी शास्त्र या पुराण के मोहताज नहीं रहे। न तो किसी शास्त्र विशेष पर उनका भरोसा रहा और ना ही जीवन भर स्वयं को किसी शास्त्र में बाँधा। कबीर ने समाज की दुखती रग को पहचान लिया था।

संत कबीरदास

वे जान गए थे कि हमारे सारे उत्तर पुराने हो गए हैं। नई समस्याएँ नए समाधान चाहती हैं। नए प्रश्न, नए उत्तर चाहते हैं। नए उत्तर, पुरानेपन से छुटकारा पाकर ही मिलेंगे। तभी तो कबीर के दुस्साहस ने उनसे लिखवाया था-

'तू जो बामण-बामणी जाया,
और राह ह्वै क्यों नहीं आया'

अथवा

तू जो तुरक-तुरकनी जाया
भीतर खतना क्यों ना कराया।

यह कबीर की ही नवीन सोच का परिणाम था कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र, एवं वैश्यों में टूटा समाज फिर से एकजुट होकर बाह्य शक्तियों का सामना करने में सक्षम हो पाया। देश स्वतंत्र हुआ। ज़िंदगी पटरी पर आई और अब कबीर समाज सुधारकों की अपेक्षा साहित्यकारों की विषयवस्तु हो गए।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 कबीर जयंती (हिंदी) वेबदुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 6 जून, 2013।
  2. कबीर : एक संत, जो मंत्र बन गया (हिंदी) वेबदुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 6 जून, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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