शर्करा सप्तमी

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  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • चैत्र शुक्ल पक्ष की सप्तमी पर शर्करासप्तमी व्रत किया जाता है।
  • प्रात:काल तिल युक्त जल से स्नान करना चाहिए।
  • एक वेदी पर कुंकुम से कमल एवं बीजकोष बनाना और उस पर 'नम: सवित्रे' के साथ धूप एवं पुष्पों का अर्पण करना चाहिए।
  • एक घट का स्थापन, जिसमें एक हिरण्य खण्ड डाल दिया जाता है, जिसके ढक्कन पर गुड़ रखा जाता है।
  • पौराणिक मंत्र से पूजन करना चाहिए।
  • पंचगव्य ग्रहण; घट के पास पृथ्वी पर लेटना और धीरे-धीरे सौर मंत्र [1] का पाठ करना चाहिए।
  • अष्टमी को सभी उपयुक्त पदार्थों का दान तथा शर्करा, घी, पायस से ब्रह्मभोज और स्वयं बिना नमक एवं तेल का भोजन करना चाहिए।
  • एक वर्ष तक प्रत्येक मास में यही विधि का पालन करना चाहिए।
  • वर्ष के अन्त में उपकरण युक्त पलंग, शर्करा, सोना, गाय एवं गृह (यदि सम्भव हो सके) तथा 1 से 1000 तक के निष्कों से बने एक स्वर्णिम कमल का दान होना चाहिए।
  • जब सूर्य अमृत पीने लगे तो कुछ बूँदें चावल, मुद्ग एवं ईख पर गिर पड़ीं।
  • शर्करासप्तमी तिथिव्रत; देवता सूर्य है।
  • इस व्रत से चिन्ता दूर होती है, पुत्रोत्पत्ति, दीर्घायु एवं स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। [2]
  • भविष्योत्तरपुराण [3] में भी मत्स्यपुराण के श्लोक पाये जाते हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ॠग्वेद 1|50
  2. मत्स्य पुराण (77|1-17); कृत्यकल्पतरु (व्रत खण्ड 214-217); हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1, 642-643, पद्म पुराण 5|21|263-279 से उद्धरण; कृत्यरत्नाकर (157-159, मत्स्यपुराण से उद्धरण
  3. भविष्योत्तरपुराण 49|1-18

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