आम

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आम
आम
जगत पादप (Plantae)
गण सैपिन्डेल्स (Sapindales)
कुल एनाकार्डियेसी (Anacardiaceae)
जाति मैंगिफ़ेरा (Mangifera)
प्रजाति इंडिका (indica)
द्विपद नाम मैंगिफ़ेरा इंडिका (Mangifera indica)
अन्य जानकारी आम भारत का राष्ट्रीय फल है। आम एक गूदे दार फल है, जिसे पकाकर खाया जाता है या कच्‍चा होने पर इसे अचार आदि में इस्‍तेमाल किया जाता है।

आम (अंग्रेज़ी: Mango) फलों का राजा कहलाता है। आम मैंगिफ़ेरा इंडिका भारत का राष्ट्रीय फल है। काजू परिवार (एनाकार्डिएसी) का सदस्य, विश्व के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण फल है। ऊष्णकटिबंधीय देशों में आम बड़े पैमाने पर पैदा होते हैं। आम को पूर्वी एशिया, म्यांमार[1] और भारत के असम राज्य का स्थानीय फल माना जाता है। आम एक गूदे दार फल है, जिसे पकाकर खाया जाता है या कच्‍चा होने पर इसे अचार आदि में इस्‍तेमाल किया जाता है। यह मैंगिफ़ेरा इंडिका का फल अर्थात् आम है जो उष्‍ण कटिबंधी हिस्‍से का सबसे अधिक महत्‍वपूर्ण और व्‍यापक रूप से उगाया जाने वाला फल है। फलों का राजा आम के बारे में लोगों की अलग- अलग धारणाएं हैं। कुछ लोगों का मानना है कि इस फल में बेहद कैलरीज होती हैं, तो वहीं कुछ इसे सेहत के लिए कई तरह से फ़ायदेमंद बताते हैं। गर्मियों में यही एक ऐसा फल है, जो रसीला व मीठा है और हर उम्र के लोगों को भाता है। भारत में अन्य प्रकार के आम पाए जाते हैं।

आम का वृक्ष

आम अत्यंत उपयोगी, दीर्घजीवी, सघन तथा विशाल वृक्ष है, जो भारत में दक्षिण में कन्याकुमारी से उत्तर में हिमालय की तराई तक (3000 फुट की ऊँचाई तक) तथा पश्चिम में पंजाब से पूर्व में असम तक, अधिकता से होता है। अनुकूल जलवायु मिलने पर इसका वृक्ष 50 - 60 फुट की ऊँचाई तक पहुँच जाता है। वनस्पति वैज्ञानिक वर्गीकरण के अनुसार आम 'ऐनाकार्डियेसी' कुल का वृक्ष है। आम के कुछ वृक्ष बहुत ही बड़े होते हैं।

आम

डॉक्टर एम.एस.रांधवा (1949) के अनुसार 'बुड़नगांव' (चंडीगढ़) में 'छप्पर' नामक आम के एक वृक्ष के तने का घेरा 32 फुट है, अनेक शाखाएँ पाँच से लेकर 12 फुट तक मोटी और 70 से 80 फुट तक लंबी हैं। छप्पर 2700 वर्ग गज स्थान घेरे हुए है और उसके फल की औसत वार्षिक उपज 450 मन है।

  • आम का वृक्ष एक सदाबहार वृक्ष है।
  • इसकी लंबाई 15-18 मीटर तक होती है और इसकी आयु काफ़ी लंबी होती है।
  • इसके कुंताकार पत्ते 30 सेमी तक लंबे होते हैं; फूल छोटे, गुलाबी और ख़ुशबूदार होते हैं। लंबी डंडियों के छोर पर छोटे गुच्छों में होते हैं।
  • यह उभयलिंगी होते हैं, अर्थात् कुछ में पुंकेसर व स्त्रीकेसर, दोनों होते हैं और कुछ में सिर्फ़ पुंकेसर होते हैं।

वृक्ष का स्वरूप

आम का वृक्ष बड़ा और खड़ा अथवा फैला हुआ होता है; ऊँचाई 30 से 90 फुट तक होती है। छाल खुरदरी तथा मटमैली या काली, लकड़ी गठीली और ठस होती है। इसकी पत्तियाँ सादी, एकांतरित, लंबी, प्रासाकार (भाले की तरह) अथवा दीर्घवृत्ताकार, नुकीली, 5 से 16 इंच तक लंबी, 1 से 3 इंच तक चौड़ी, चिकनी और गहरे हरे रंग की होती है; पत्तियों के किनारे कभी कभी लहरदार होते हैं। वृंत (एँठल) 1 से 4 इंच तक लंबे, जोड़ के पास फूले हुए होते है। पुष्पक्रम संयुत एकवर्ध्यक्ष (पैनिकिल), प्रशाखित और लोमश होता है। फूल छोटे, हलके बसंती रंग के या ललछौंह, भीनी गंधमय और प्राय: एँठलरहित होते हैं; नर और उभयलिंगी दोनों प्रकार के फूल एक ही बार (पैनिकिल) पर होते हैं। बाह्मदल (सेपल) लंबे अंडे के रूप के, अवतल (कॉनकेव); पंखुडियाँ बाह्मदल की अपेक्षा दुगुनी बड़ी, अंडाकार, तीन से पाँच तक उभड़ी हुई नारंगी रंग की धारियों सहित, बिंब (डिस्क) मांसल, पाँच भागशील (लोब्ड); एक परागयुक्त (फ़र्टाइल) पुंकेसर, चार छोटे और विविध लंबाइयों के बंध्य पुंकेसर (स्टैमिंनोड); पराग कोश कुछ कुछ बैंगनी और अंडाशय चिकना होता है। फल सरस, मांसल, अष्ठिल, तरह तरह की बनावट एवं आकारवाला, 4 से 25 सेंटीमीटर तक लंबा तथा 1 से 10 सेंटीमीटर तक घेरेवाला होता है। पकने पर इसका रंग हरा, पीला, जोगिया, सिंदुरिया अथवा लाल होता है। फल गूदेदार, फल का गूदा पीला और नारंगी रंग का तथा स्वाद में अत्यंत रुचिकर होता है। इसके फल का छिलका मोटा या काग़ज़ी तथा इसकी गुठली एकल, कठली एवं प्राय: रेशेदार तथा एकबीजक होती है। बीज बड़ा, दीर्घवत्, अंडाकार होता है।

आम का जूस

आम का इतिहास

  • पुर्तग़ाली व्यापारी भारत में आम लेकर आए थे। इसके बीजों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में कठिनाई[2] के कारण संभवतः 1700 ई. में ब्राज़ील में इसे लगाए जाने से पहले पश्चिमी गोलार्द्ध इससे लगभग अपरिचित ही था, 1740 में यह वेस्ट इंडीज़ पहुंचा। कई नवाबों और राजाओं के नामों पर भी इसका नामकरण हुआ।
  • आम का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। डी कैडल (सन्‌ 1844) के अनुसार 'आम्र' प्रजाति (मैंजीफ़ेरा जीनस) संभवत: बर्मा, स्याम तथा मलाया में उत्पन्न हुई, परंतु भारत का आम, मैंजीफ़ेरा इंडिका, जो यहाँ, बर्मा और पाकिस्तान में जगह जगह स्वयं (जंगली अवस्था में) होता है, बर्मा-असम अथवा असम में ही पहले पहल उत्पन्न हुआ होगा।
  • भारत के बाहर लोगों का ध्यान आम की ओर सर्वप्रथम संभवत: बुद्धकालीन प्रसिद्ध यात्री, ह्वेन त्सांग (632-45) ने आकर्षित किया।

प्रजातियाँ

उद्यान में लगाए जानेवाले आम की लगभग 1400 जातियों से हम परिचित हैं। इनके अतिरिक्त कितनी ही जंगली और बीजू किस्में भी हैं। गंगोली आदि (सन्‌ 1955) ने 210 बढ़िया कलमी जातियों का सचित्र विवरण दिया है। विभिन्न प्रकार के आमों के आकार और स्वाद में बड़ा अंतर होता है। कुछ बेर से भी छोटे तथा कुछ, जैसे - सहारनपुर का 'हाथीझूल', भार में दो, ढाई सेर तक होते हैं। कुछ अत्यंत खट्टे अथवा स्वादहीन या चेप से भरे होते हैं, परंतु कुछ अत्यंत स्वादिष्ट और मधुर होते हैं।

विदेशियों द्वारा प्रशंसित

  • 'फ्ऱायर' (सन्‌ 1673) ने आम को आडू और खूबानी से भी रुचिकर कहा है।
  • 'हैमिल्टन' (सन्‌ 1727) ने गोवा के आमों को बड़े, स्वादिष्ट तथा संसार के फलों में सबसे उत्तम और उपयोगी बताया है।
आम

आम के अन्य नाम

  • इस फल का नाम मैंगो, जिससे यह अंग्रेज़ी तथा स्पेनिशभाषी देशों में पहचाना जाता है।
  • तमिल भाषा में मैन-के या मैन-गे से उत्पन्न हुआ है।
  • पुर्तग़ालियों ने पश्चिम भारत में बसने पर मैंगा के रूप में अपनाया था।
  • आम को अलग-अलग नाम दिए गए जैसे लंगड़ा, दशहरी, अलफॉंसो और चौंसा।

भारत में आम

भारत में, पहाड़ी क्षेत्रों को छोड़ कर आम लगभग सभी स्थानों पर पैदा होता है। हमारे यहाँ आम की सैंकड़ों किस्में है। यह आकार और रंगों में अलग-अलग होते हैं। भारत में आम की फ़सल अति प्राचीनकाल से उगाई जाती रही है। आम को अनंत समय से भारत में उगाया जाता रहा है। विश्व के अनेक देशों में आम की अलग-अलग जाति होती है। फिर भी हिंदुस्तान का प्रसिद्ध फल आम ही है। आँकड़ों के मुताबिक़ इस समय भारत में प्रतिवर्ष एक करोड़ टन आम पैदा होता है जो दुनिया के कुल उत्पादन का 52 फ़ीसदी है। स्वाद, स्वास्थ्य एवं बल संवर्धन की दृष्टि से आम सभी फलों में आगे है। आम भिन्न-भिन्न जाति के होते हैं। किन्तु सभी आमों के गुण प्रायः एक से ही होते हैं।

आम विक्रेता

आम भारत के लोकगीतों और धार्मिक अनुष्ठानों से अनिवार्य रूप से जुड़ा है। कवि कालिदास ने इसकी प्रशंसा में गीत लिखे हैं। अलेक्ज़ॅन्डर ने इसका स्‍वाद चखा है और साथ ही चीनी धर्म यात्री हुएन-सांग ने भी। मुग़ल बादशाह अकबर ने बिहार के दरभंगा में 1,00,000 से अधिक आम के पौधे रोपे थे, जिसे अब 'लाखी बाग़' के नाम से जाना जाता है। स्वयं बुद्ध को एक आम्रकुंज भेंट किया गया था, ताकि वह उसकी छाँव में विश्राम कर सकें।

भारत के निवासियों में अति प्राचीन काल से आम के उपवन लगाने का प्रेम है। यहाँ की उद्यानी कृषि में काम आनेवाली भूमि का 70 प्रतिशत भाग आम के उपवन लगाने के काम आता है। स्पष्ट है कि भारतवासियों के जीवन और अर्थव्यवस्था का आम से घनिष्ठ संबंध है। इसके अनेक नाम जैसे 'सौरभ', 'रसाल', 'चुवत', 'टपका', 'सहकार', 'आम', 'पिकवल्लभ' आदि भी इसकी लोकप्रियता के प्रमाण हैं। इसे 'कल्पवृक्ष' अर्थात् मनोवाछिंत फल देनेवाला भी कहते हैं।

शतपथ ब्राह्मण में आम की चर्चा इसकी वैदिक कालीन तथा 'अमरकोश' में इसकी प्रशंसा इसकी बुद्धकालीन महत्ता के प्रमाण हैं। भारतवर्ष में आम से संबंधित अनेक लोकगीत, आख्यायिकाएँ आदि प्रचलित हैं और हमारी रीति, व्यवहार, हवन, यज्ञ, पूजा, कथा, त्योहार तथा सभी मंगलकायाँ में आम की लकड़ी, पत्ती, फूल अथवा एक न एक भाग प्राय: काम आता है। आम के 'बौर' की उपमा 'वसंतदूत' से तथा 'मंजरी' की 'मन्मथतीर' से कवियों ने दी है। उपयोगिता की दृष्टि से आम भारत का ही नहीं वरन् समस्त उष्ण कटिबंध के फलों का राजा है और बहुत तरह से उपयोग होता है। कच्चे फल से चटनी, खटाई, अचार, मुरब्बा आदि बनाते हैं। पके फल अत्यंत स्वादिष्ट होते हैं और इन्हें लोग बड़े चाव से खाते हैं। ये पाचक, रेचक और बलप्रद होते हैं।

आम की फ़सल

आम के लिए किसी विशेष मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन अच्छी क़िस्में सिर्फ़ उन्हीं जगहों पर अच्छी फ़सल देती है, जहाँ फलों की पैदावार बढ़ाने लायक़ बढ़िया शुष्क मौसम रहता हो। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में फफूंद के कारण होने वाला रोग एंथ्रकनोज़ फूलों और कच्चे फलों को नष्ट कर देता है तथा इस पर नियंत्रण भी मुश्किल होता है। ग्राफ़्टिंग या बडिंग के ज़रिये इसका संजनन किया जाता है। दो वृक्षों को बिना काटे क़लम लगाने[3] की प्रक्रिया एशिया के कई इलाक़ों में काफ़ी लोकप्रिय है, लेकिन यह बहुत मेहनत वाली और ख़र्चीली प्रक्रिया है। फ़्लोरिडा में ज़्यादा सक्षम तरीक़ों, पतली परत के आरोपण और काटकर अंकुर लगाने, का विकास किया गया है और इनका वाणिज्यिक उपयोग भी किया जा रहा है।

आम

आकार और लक्षण

  • इसके फल आकार और लक्षणों में भिन्नता लिए होते है; सबसे छोटे फल आलूबुखारा जितना बड़ा होता है। जबकि बड़े फल 1.8 से 2.3 किग्रा तक होते हैं।
  • इसका आकार अंडाकार, गोल, हृदयाकार, गुर्दे के आकार का या लंबा और पतला होता है।
  • इसकी कुछ क़िस्में चटकीली लाल और पीली रंगत वाली होती हैं, जबकि अन्य फीके हरे रंग की होती हैं।
  • फल में पाया जाने वाला एकमात्र बड़ा बीज चपटा होता है और इसके चारों ओर मौजूद गूदा पीले से नारंगी रंग का रसदार होता है और इसका स्वाद विशेष मीठी गंध के साथ मज़ेदार होता है।

स्वास्थ्य और आम

आम लक्ष्मीपतियों के भोजन की शोभा तथा ग़रीबों की उदरपूर्ति का अति उत्तम साधन है। पके फल को तरह तरह से सुरक्षित करके भी रखते हैं। रस का थाली, चकले, कपड़े इत्यादि पर पसार, धूप में सुखा 'अमावट' बनाकर रख लेते हैं। यह बड़ी स्वादिष्ट होती है और इसे लोग बड़े प्रेम से खाते हैं। कहीं कहीं फल के रस को अंडे की सफेदी के साथ मिलाकर अतिसार और आँवे के रोग में देते हैं। पेट के कुछ रोगों में छिलका तथा बीज हितकर होता है। कच्चे फल को भूनकर पना बना, नमक, ज़ीरा, हींग, पोदीना इत्यादि मिलाकर पीते हैं, जिससे तरावट आती है और लू लगने का भय कम रहता है। आम के बीज में 'मैलिक अम्ल' अधिक होता है और यह ख़ूनी बवासीर और प्रदर में उपयोगी है।

आयुर्वेद और आम

आम

आर्युवेदिक मतानुसार आम के पंचांग (पाँच अंग) काम आते हैं। इस वृक्ष की अंतर्छाल का क्वाथ प्रदर, ख़ूनी बवासीर तथा फेफड़ों या आँत से रक्तस्राव होने पर दिया जाता है। छाल, जड़ तथा पत्ते कसैले, मलरोधक, वात, पित्त तथा कफ का नाश करने वाले होते हैं। पत्ते बिच्छू के काटने में तथा इनका धुआँ गले की कुछ व्याधियों तथा हिचकी में लाभदायक है। फूलों का चूर्ण या क्वाथ आतिसार तथा संग्रहणी में उपयोगी कहा गया है।

आम का बौर शीतल, वातकारक, मलरोधक, अग्निदीपक, रुचिवर्धक तथा कफ, पित्त, प्रमेह, प्रदर और अतिसार को नष्ट करने वाला है।

कच्चा फल कसैला, खट्टा, वात पित्त को उत्पन्न करने वाला, आँतों को सिकोड़ने वाला, गले की व्याधियों को दूर करने वाला तथा अतिसार, मूत्रव्याधि और योनिरोग में लाभदायक बताया गया है।

पका फल मधुर, स्निग्ध, वीर्यवर्धक, वातनाशक, शीतल, प्रमेहनाशक तथा व्रण श्लेष्म और रुधिर के रोगों को दूर करने वाला होता है। यह श्वास, अम्लपित्त, यकृतवृद्धि तथा क्षय में भी लाभदायक है।

आधुनिक अनुसंधानों के अनुसार आम के फल में विटामिन ए और सी पाए जाते हैं। अनेक वैद्यों ने केवल आम के रस और दूध पर रोगी को रखकर क्षय, संग्रहणी, श्वास, रक्तविकार, दुर्बलता इत्यादि रोगों में सफलता प्राप्त की है। फल का छिलका गर्भाशय के रक्तस्राव, रक्तमय काले दस्तों में तथा मुँह से बलगम के साथ रक्त जाने में उपयोगी है। गुठली की गरी का चूर्ण (मात्रा 2 माश) श्वास, अतिसार तथा प्रदर में लाभदायक होने के सिवाय कृमिनाशक भी है।

गृहनिर्माण में प्रयोग व नई प्रजाति

आम की लकड़ी गृहनिर्माण तथा घरेलू सामग्री बनाने के काम आती है। यह ईधन के रूप में भी अधिक बरती जाती है। आम की उपज के लिए कुछ कुछ बालूवाली भूमि, जिसमें आवश्यक खाद हो और पानी का निकास ठीक हो, उत्तम होती है। आम की उत्तम जातियों के नए पौधे प्राय: भेंटकलम द्वारा तैयार किए जाते हैं। कलमों और मुकुलन (बर्डिग) द्वारा भी ऐसी किस्में तैयार की जाती हैं। बीजू आमों की भी अनेक बढ़िया जातियाँ हैं, परतु इनमें विशेष असुविधा यह है कि इस प्रकार उत्पन्न आमों में वांछित पैतृक गुण कभी आते हैं, कभी नहीं, इसलिए इच्छानुसार उत्तम जातियाँ इस रीति से नहीं मिल सकतीं। आम की विशेष उत्तम जातियों में वाराणसी का लँगड़ा, बंबई का अलफांजो तथा मलीहाबाद और लखनऊ के दशहरी तथा सफेदा उल्लेखनीय हैं।

आम के विभिन्न प्रयोग

  • यह अपने सभी रूपों में आकर्षण का केंद्र है।
  • आम को चूसकर, काटकर जूस निकालकर, केक, पेस्ट्री में डाल कर या फिर चटनी और अचार में डालकर खाया जा सकता है।
आम
  • बौर, कैरी यानी कच्ची अंबिया और पूरा पका आम को भी खाया जाता है।
  • आम का इस्तेमाल पना बनाने, अचार, मुरब्बे और जैम बनाने में किया जाता है।
  • आम से अमचूर यानी आम की खटाई भी बनती है।

आम के फ़ायदे

  • आम में सभी फलों से अधिक विटामिन ए होता है। इसके अतिरिक्त विटामिन ‘बी’ भी अधिक होते हैं। इसमें 'आयरन' भी बेहद तादाद में पाया जाता है,
  • इसमें विटामिन 'सी' और 'ई' भरपूर तादाद में पाया जाता है। जो आँखों के लिए बेहद फ़ायदेमंद होते हैं।
  • आम और जामुन का रस समान भाग में मिलाकर कुछ दिनों तक पीने से मधुमेह रोग ठीक हो जाता है।
  • आम खाने से गुर्दे की दुर्बलता दूर होती है।
  • आम उन लोगों के लिए भी पोषण युक्त है, जो कमज़ोर, कम ऊर्जा और कम ऊर्जस्विता की दिक्कत से गुज़र रहे है। यह फल शरीर को तुरंत ऊर्जा देता है। यहाँ तक कि हरा आम और कैरी विटामिन 'सी' का अच्छा स्रोत हैं और इसमें चीनी की मात्रा भी न के बराबर होती है।
  • आम एंटी ऑक्सिडेंट का अच्छा स्रोत है। यह एंटी ऑक्सिडेंट न केवल उम्र बढ़ने की प्रगति को कम कर देते हैं, बल्कि त्वचा से जुड़ी कई बीमारियों मसलन, सरवाइकल और कोलन कैंसर से भी बचाता है।
  • आम शरीर से हानिकारक विशेली पदार्थ और फ्री रेडिकल्स को बाहर करने में भी सहायक है।
  • वहीं दूसरी और आम रेशो से भरपूर होता है और कब्ज होने से रोकता है। यह पित्त को कम करता है और पाचन तन्त्र को ठीक बनाए रखता है।
  • अगर चेहरे का सौंदर्य बढ़ाना हो, तो आम के रस में शहद मिलाकर चेहरे पर लगाएं।
  • अगर बाल झड़ते हों, तो आम के कोमल पत्ते तथा डंठल को पानी में उबाल कर सिर धोएं।
  • कान सुन्न होने की समस्या पर आम का पत्ता पीसकर बिना पानी के हल्का गरम कर कान में दो चार बूंद डालें। आँखों के चारों ओर काले घेरे या झाई हों, तो आम के रस को रुई से चेहरे पर लगाएं।

आम खाने से होने वाले नुक़सान

आम
  • आम में चीनी की मात्रा बहुत ज़्यादा होती है, इसलिए इसे कम मात्रा में लें।
  • जो लोग मोटे हैं, वे इसे कम खाया करें। नहीं तो, यह शरीर में हारमोनल बदलाव की वजह बन सकता है।
  • आम को एक साथ बहुत मात्रा में खाना नुक़सानदेह होता है।
  • आम खाने के बाद मुँहासे हो जाते हैं। इसलिए इसे दही या सूखे फलों के साथ खाएंगे, तो यह ज़्यादा फ़ायदेमंद रहेगा।
  • आम के अधिक मात्रा में खाने से मधुमेह व मोटापा बढ़ने की दिक्कत से गुज़रना पड़ सकता है।

आम के शत्रु

आम के अनेक शत्रु हैं। इनमें 'ऐन्थ्रौ कनोस', जो कवकजनित रोग है और आर्द्रता प्रधान प्रदेशों में अधिक होता है, 'पाउडरी मिल्डिउ', जो एक अन्य कवक से उत्पन्न होने वाला रोग है तथा 'ब्लैक टिप', जो बहुधा ईट चूने के भट्ठों के धुएँ के संसर्ग से होता है, प्रधान हैं। अनेक कीड़े मकोड़े भी इसके शत्रु हैं। इनमें 'मैंगोहॉपर', 'मैंगो बोरर', 'फ्रूट फ़्लाई' और 'दीमक' मुख्य हैं। जल - चूना - गंधक मिश्रण, सुर्ती का पानी तथा संखिया का पानी इन रोगों में लाभकारी होता है।


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वीथिका

टीका टिप्पणी

  1. भूतपूर्व बर्मा
  2. यह ज़्यादा समय तक सुरक्षित नहीं रह पाते
  3. जिसमें एक अंकुर तथा एक स्वतंत्र रूप से लगाए गए पौधे के मूलवृंत को जोड़ दिया जाता है और बाद में अंकुर को उसके तने से काटकर हटा दिया जाता है
  • डी.कौंडोल कृत 'ए ओरिजिन ऑफ कल्टिवेटेड प्लांटस' (केगान पॉल ट्रेंच ऍड कं. लंदन, 1884)
  • गांगुली, एस.आर. कृत 'द मैंगो' (इंडियन कांउसिल ऑफ ऐग्रिकल्चरल रिसर्च, नई दिल्ली, 1957)
  • मुकर्जी, एस.के. द्वारा 'द ओरिजिन ऑफ मैंगो' (इंडियन जरनल ऑफ जेनेटिक्स ऍड प्लांट ब्रीडिंग, 1951)
  • मुकर्जी एस.के. द्वारा 'द मैंगो, इट्स बॉटनी, कल्टिवेशन ऍड फ़्यूचर इंप्रूवमेंट स्पेशली ऐज़ ऑब्जर्व्ड इन इंडिया' (इकॉनोमिक बॉट. 7 (2): 132-162, एप्रिल-जून)
  • रांधवा, एम.एस. कृत 'ए जाएँट मैंगो ट्री; वैविलॉव'
  • एन.आई.: 'द आरिजिन, वैरिएशन, इम्म्युनिटी ऍड ब्रीडिंग ऑफ कल्टिवेटेड प्लांटस' (क्रौटिका बोटैनिका, 13(1।6) 1949-50)।
  • हिन्दी विश्व कोश (भाग एक) पृष्ठ - 390 -391

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