शाकल

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शाकल या 'शाकल नगर' एक ऐतिहासिक स्थान, जिसका अभिज्ञान पश्चिमी पाकिस्तान के सियालकोट से किया जाता है। टॉल्मी ने इसे 'यूथेडेमिया' कहा था। महाभारत काल में सियालकोट मद्रों की राजधानी थी। शाकल 326 ई. पू. में सिकन्दर महान के आधिपत्य में चला गया था। उसने इसे झेलम तथा चिनाब के मध्यवर्ती क्षेत्र के क्षत्रप के अधीन कर दिया था।[1]

इतिहास

विद्वानों का मत है कि 'शाकल' नाम का संबंध शक से है। यह स्थान सम्भवतः शकों अथवा शकस्थान के निवासी ईरानियों के निवास के कारण 'शाकल' कहलाता था। ईरानी मगों का संबंध भी शाकल से बताया जाता है। महाभारत में शाकल को 'मद्र देश' में स्थित माना गया है। इस नगर में मद्राधिप शल्य का राज्य था। इन्हें नकुल ने अपनी दिग्विजय यात्रा के प्रसंग में विजित किया था-

'स चास्यगतभी राजन् प्रतिजग्राह शासनम्, ततः शाकल-मम्येत्य मद्राणां पुटभेदनं मातुलं प्रीतिपूर्वेण शल्य चक्रवशे बली।'[2]

यात्री तथा इतिहासकारों का उल्लेख

'मिलिन्दपन्हों' में यवनराज मिलिंद अथवा मिनेंडर[3] की राजधानी 'शागल' या 'शाकल' बताई गई है। अलक्षेंद्र (अलेग्जेंडर) के इतिहास लेखकों ने भी इस स्थान को 'सागल' या 'सांगल' कहा है। यूनानी लेखकों ने सांगल का कठ जाति के वीर क्षत्रियों का मुख्य स्थान बताया है और उनके शौर्य की बहुत प्रशंसा की है। चीनी यात्री युवानच्वांग (7वीं शती) ने इस नगर को देखा था। उसने इसे 'शेकालो' लिखा है और हूण नरेश मिहिरकुल की यहां राजधानी बतायी है। कनिंघम ने 'सागल' का अभिज्ञान ज़िला गुजरांवाला (पंजाब) में स्थित संगला नामक पहाड़ी से किया है। स्मिथ के अनुसार यह स्थान ज़िला झंग में स्थित 'चिनोट' या 'शाहकोट' है। किन्तु अनेक प्रमाणों के बल पर फ्लीट ने सिद्ध किया है कि शाकल वास्तव में सियालकोट ही है।[4][1]

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • महाभारत काल के शाकल निवासियों के आचार व्यवहार को दूषित समझा जाता था-

'शाकलं नाम नगरमापगानाम निम्नगा, जर्तिंकानाम वाहीकास्तेषां वृत्तं सुनिश्चितम्।'[5]

उपरोक्त उद्धरण से सिद्ध होता है कि महाभारत के समय में बाहीकों की राजधानी शाकल में थी तथा वहां 'जर्तिक' (जाट) नामक बाहीको का निवास था।

  • शाकल के निकट 'अपगा' नामक नदी बहती थी। शाकल को महाभारत में शाकल द्वीप भी कहा गया है। महाभारत, कर्णपर्व[6] से भी यह विदित होता है कि बाहीक देश पंजाब की पांच नदियों से तथा छठी सिन्धु से घिरा हुआ था और इसका एक नाम 'आरट्ट' भी था।
  • कलिंगबोधि जातक तथा कुरू जातक में भी सााकल (शाकल) का मद्र प्रदेश के रूप में उल्लेख है। सियालकोट के आसपास का प्रदेश तो गुरु गोविन्द सिंह के समय तक (17वीं शती) तक मद्र देश कहलाता था।[7]
  • एक किवदंती के अनुसार भक्त पूरनमल सियालकोट के निवासी थे। इस स्थान पर वह कूप भी स्थित है, जिसमें पूरनमल को हाथ-पैर काट कर डाल दिया गया था। कूप के निकट ही गुरु गोरखनाथ का मन्दिर है।
  • शाकल या सांगल को सागलनगर भी कहते है। एक प्राचीन किंवदंती के अनुसार शाकल को महाभारत कालीन राजा शाल्व ने बसाया था तथा राजा शालिवाहन ने दुबारा बसाकर यहां एक दुर्ग का निर्माण किया था।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 893 |
  2. महाभारत, सभापर्व 32,14-15
  3. द्वितीय शती ई. पू.
  4. चतुर्दश ग्रोरियंटल कांग्रेस 1905, एलजीयर्स, भारत विभाग-पृ. 164
  5. महाभारत, कर्णपर्व 44,10
  6. कर्णपर्व 44,7
  7. मालकम-स्केच ऑफ दि सिखरा, पृ. 55

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