हूण

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हूण मध्य एशिया की एक खानाबदोश जाति थी। यह जाति अपने समय की सबसे बर्बर जातियों में गिनी जाती थी। इस जाति ने उत्तर-पश्चिमी एशिया में अपने को सुदृढ़ अवस्था में स्थापित कर लिया था। भारतीय इतिहास में हूणों के राजा तोरमाण और उसके पुत्र मिहिरगुल का नाम प्रसिद्ध है। हूणों ने पंजाब और मालवा की विजय करने के बाद भारत में स्थाई निवास बना लिया था।

घुमक्कड़ कबीला

ईसवीसन्के प्रारम्भ से सौ वर्ष पहले और तीन-चार सौ वर्षों बाद तक विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक घुम्मकड़ और लड़ाकू क़बीलों का अस्तित्व था, जैसे 'नोमेड', 'वाइकिंग', 'नोर्मन', 'गोथ', 'कज़्ज़ाक़', 'शक' और 'हूण' आदि। हूणों ने दक्षिण-पूर्वी यूरोप और उत्तर-पश्चिम एशिया में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। रोम के साम्राज्य को तहस-नहस करने में हूणों का भी बहुत बड़ा हाथ था। अटिला हूण ने अपना साम्राज्य चौथी-पाँचवी शताब्दी के दौरान यूरोप में स्थापित किया। मध्य एशिया में यह छठी-सातवीं शताब्दी में बस गए। कॉकेशस से हूणों ने फैलना शुरू किया।

भारत पर आक्रमण

उत्तर-पश्चिम भारत में हूणों द्वारा तबाही और लूट के अनेक उल्लेख मिलते हैं। गुप्त काल में हूणों ने पंजाब तथा मालवा पर अधिकार कर लिया था। तक्षशिला को भी क्षति पहुँचायी। भारत में आक्रमण हूणों के नेता तोरमाण और उसके पुत्र मिहिरकुल के नेतृत्व में हुआ। मथुरा, उत्तर प्रदेश में हूणों ने मन्दिरों, बुद्ध और जैन स्तूपो को क्षति पहुँचायी और लूटमार की। मथुरा में हूणों के अनेक सिक्के भी प्राप्त हुए हैं।

हूणों ने पांचवीं शताब्दी के मध्य में भारत पर पहला आक्रमण किया था। 455 ई. में स्कंदगुप्त ने उन्हें पीछे धकेल दिया था, परंतु बाद के आक्रमण में 500 ई. के लगभग हूणों का नेता तोरमाण मालवा का स्वतंत्र शासक बन गया। उसके पुत्र ने पंजाब में सियालकोट को अपनी राजधानी बनाकर चारों ओर बड़ा आतंक फैलाया। अंत में मालवा के राजा यशोवर्मन और बालादित्य ने मिलकर 528 ई. में उसे पराजित कर दिया। लेकिन इस पराजय के बाद भी हूण वापस मध्य एशिया नहीं गए। वे भारत में ही बस गए और उन्होंने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया।

इन्हें भी देखें: श्वेत हूण


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