जाति

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जाति किसी भी व्यक्ति के समाज, जिसमें उसका जन्म हुआ हो, को कहा जाता है। हिन्दू समाज में इसे 'जात' भी लिखा जाता है। यह शब्द संस्कृत के 'जात' शब्द से व्युत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है- "जन्म लिया" अथवा "अस्तित्व में आया"। यह अस्तित्व के उस स्वरूप की ओर संकेत करता है, जो जन्म से निर्धारित होता है।[1]

समूह बोधक

भारतीय चिंतन में 'जाति' (वर्ग, प्रकार) वस्तुओं के किसी भी समूह का बोध कराती है, जिनमें वंशगत विशिष्टताएं एक समान हों। समाजशास्त्रीय दृष्टि से, 'जाति' शब्द का उपयोग आमतौर पर हिन्दुओं में एक विशिष्ट वर्ग के सूचक के रूप में किया जाता है। यद्यपि परंपरागत हिन्दू आचार संहिता (धर्मशास्त्र) के निर्माता स्वयं जाति को वर्ण (सामाजिक वर्ग) ही मानते प्रतीत होते हैं और अन्य संदर्भों में जाति को चार वर्णों- 'ब्राह्मण', 'क्षत्रिय', 'वैश्य' और 'शूद्र' में पारस्परिक संबंधों का परिणाम मानते हैं।

विभेद

जाति और वर्ण में एक स्पष्ट विभेद किया जाना चाहिए। जाति एक सीमित, क्षेत्रीय, अंतर्विवाह संबंधों को मानने वाले परिवारों का समूह है, वहीं वर्ण सामाजिक वर्ग का एक व्यापक अखिल भारतीय मॉडल है। आधिकारिक हिन्दू दृष्टिकोण जाति को द्वितीयक स्थान देता है और उसे वर्ण का ही स्वरूप मानता है।[1]

भारत के विभिन्न भागों भागों में कुछ जाति समूहों ने वर्ण व्यवस्था में सम्मानित स्थान पाने का प्रयत्न करने के लिए किसी विशेष वर्ण के सदस्य होने का दावा किया है। एक विशिष्ट नमूने के तौर पर और सर्वाधिक सफल इसी प्रकार का दावा राजपूतों ने किया है कि वह क्षत्रिय या अभिजात्य वर्ग के हैं तथा ऊपर से दूसरे वर्ण क्रम के हैं। अपने दावे को मज़बूत बनाने के लिए उन्होंने अपनी नई वंश परंपरा खोज ली है, जैसे- 'अग्निकुल'[2], जो प्राचीन सूर्यवंश और चंद्रवंश के समकक्ष हों। अछूतों ने भी आचार-व्यवहार की उच्च जातीय शैली अपना कर स्वयं को निम्नतम वर्ण 'शूद्र' में शामिल होकर अपना दर्जा बढ़ाने की कोशिश की है, ताकि उन्हें अपनी दुर्दशा से निजात मिले।

जाति संकल्पना पर प्रहार

जाति की संकल्पना पर ही सुधारवादी हिन्दुओं ने प्रहार किए हैं। वे इसे पूर्णट: मिटा देने की मांग तो नहीं करते, लेकिन अक्सर इस व्यवस्था को शुद्ध करने की वकालत करते हैं। वे चाहते हैं कि जातियों को मूल वर्ण व्यवस्था में, जो कर्म पर आधारित पूरक व्यवस्था थी, पुन: समाविष्ट किया जाए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 भारत ज्ञानकोश, खण्ड-2 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 240 |
  2. अग्नि का वंश

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