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'''बुधु भगत''' अथवा 'बुदु भगत' (जन्म- 1800 ई.) [[भारतीय इतिहास]] में प्रसिद्ध क्रांतिकारी के रूप में जाने जाते हैं। इनकी लड़ाई [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] द्वारा किए जा रहे अत्याचार तथा अन्याय के विरुद्ध थी।  
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'''बुधु भगत''' अथवा 'बुदु भगत' (जन्म- [[17 फ़रवरी]], 1792 ई., [[राँची]], [[झारखण्ड]]) [[भारतीय इतिहास]] में प्रसिद्ध क्रांतिकारी के रूप में जाने जाते हैं। इनकी लड़ाई [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] द्वारा किए जा रहे अत्याचार तथा अन्याय के विरुद्ध थी।  
 
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==जन्म==
*आमतौर पर [[1857]] ई. को ही [[स्वतंत्रता संग्राम]] का प्रथम समर माना जाता है। लेकिन इससे 28 [[वर्ष]] पूर्व 1828 ई. में वीर बुधु भगत ने न सिर्फ़ क्रान्ति का शंखनाद किया था, बल्कि अपने साहस व नेतृत्व क्षमता से 1832 ई. में "लरका विद्रोह" नामक ऐतिहासिक आन्दोलन का सूत्रपात्र भी किया।<ref>{{cite web |url= http://panchjanya.com/arch/2007/7/1/File34.htm|title= स्वातंत्र्य संग्राम का एक और महत्वपूर्ण पक्ष जनजातीय नेतृत्व ने दी थी ब्रिटिश सरकार को चुनौती|accessmonthday= 28 मई|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= पंचजन्या.कॉम|language= हिन्दी}}</ref>
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*सन 1800 ई. में [[रांची]] से 37 कि.मी. दूर पश्चिम में चान्हों प्रखण्ड में सिलालाई नामक [[ग्राम]] में जन्मे बुधु भगत ने 1827 में ही अपनी लड़ाई की पहली शुरुआत कर दी थी। शीघ्र ही इसमें [[मुण्डा]], भेरी, होखेखार जनजातियों के लोग भी जुड़ते चले गए।
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====बाल्यकाल====
*लरका विद्रोह मूलत: वनवासियों को अपने परम्परागत जमीनी हक से बेदखल कर उसे [[अंग्रेज़]] हुकूमत, तत्कालीन राजाओं तथा ज़मींदारों को सौंपने व परम्परागत पेय पदार्थ हंडिया पर आबकारी लगाने व अत्याचारों के विरुद्ध था।
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आमतौर पर [[1857]] को ही [[स्वतंत्रता संग्राम]] का प्रथम समर माना जाता है। लेकिन इससे इससे पूर्व ही वीर बुधु भगत ने न सिर्फ़ क्रान्ति का शंखनाद किया था, बल्कि अपने साहस व नेतृत्व क्षमता से 1832 ई. में "लरका विद्रोह" नामक ऐतिहासिक आन्दोलन का सूत्रपात्र भी किया।<ref>{{cite web |url= http://panchjanya.com/arch/2007/7/1/File34.htm|title= स्वातंत्र्य संग्राम का एक और महत्वपूर्ण पक्ष जनजातीय नेतृत्व ने दी थी ब्रिटिश सरकार को चुनौती|accessmonthday= 28 मई|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= पंचजन्या.कॉम|language= हिन्दी}}</ref> [[छोटा नागपुर]] के आदिवासी इलाकों में [[अंग्रेज़]] हुकूमत के दौरान बर्बरता चरम पर थी। [[मुण्डा|मुण्डाओं]] ने ज़मींदारों, साहूकारों के विरुद्ध पहले से ही भीषण विद्रोह छेड़ रखा था। उरांवों ने भी बागी तेवर अपना लिये। बुधु भगत बचपन से ही जमींदारों और अंग्रेज़ी सेना की क्रूरता देखते आये थे। उन्होंने देखा था कि किस तरह तैयार फ़सल ज़मींदार जबरदस्ती उठा ले जाते थे। गरीब गांव वालों के घर कई-कई दिनों तक चूल्हा नहीं जल पाता था। बालक बुधु भगत सिलागाई की [[कोयल नदी]] के किनारे घंटों बैठकर अंग्रेज़ों और जमींदारों को भगाने के बारे में सोचते रहते थे।<ref name="aa">{{cite web |url= http://divaswapan.blogspot.in/2013/08/1832revolt-of-budhu-bhagat-on-bank-of.html|title= कोयल किनारे बुधु भगत की बगावत|accessmonthday= 28 मई|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= दिवा स्वप्न|language= हिन्दी}}</ref>
*बुधु भगत द्वारा चलाये जा रहे लरका विद्रोह का प्रभाव दावानल की तरह [[छोटा नागपुर|छोटा नागपुर क्षेत्र]] में भी फैला।
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==विद्रोह==
*[[27 फ़रवरी]], [[1932]] को [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] में हरकारा में कैप्टन इम्वे को पता चला कि बुधु भगत मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित सिलालाई गाँव में आए हैं तो उसने पूरे गाँव को घेर लिया। ग्रामीणों को चिन्ता होने लगी कि बुधु भगत की रक्षा कैसे की जाए। 300 युवाओं व वृद्धों ने बुधु भगत को अपने बीचों-बीच करके चारों ओर घेरा बनाकर [[ग्राम]] से बाहर निकालने की कोशिश की। सायंकाल तक सिलालाई गाँव की धरती शवों से पट गई। बुधु भगत उनके समर्थक अंग्रेज़ों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए।
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घंटों एकांत में बैठे रहने, तलवार और [[धनुष अस्त्र|धनुष]]-[[बाण अस्त्र|बाण]] चलाने में पारंगत होने के कारण लोगों ने बुधु को देवदूत समझ लिया। तेजस्वी युवक बुधु की बड़ी-बड़ी बातें सुनकर आदिवासियों ने उन्हें अपना उद्धारकर्ता मानना प्रारम्भ कर दिया। विद्रोह के लिए बुधु के पास अब पर्याप्त जन समर्थन था। उन्होंने अन्याय के विरुद्ध बगावत का आह्वान किया। हज़ारों हाथ तीर, धनुष, तलवार, कुल्हाड़ी के साथ उठ खड़े हुए। कैप्टन इंपे द्वारा बंदी बनाए गए सैकड़ों ग्रामीणों को विद्रोहियों ने लड़कर मुक्त करा लिया। अपने दस्ते को बुधु ने [[गुरिल्ला युद्ध]] के लिए प्रशिक्षित किया। घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों का फायदा उठाकर कई बार अंग्रेज़ी सेना को परास्त किया। बुधु को पकड़ने के लिए [[अंग्रेज़]] सरकार ने एक हज़ार [[रुपया|रुपये]] इनाम की घोषणा कर दी थी।
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==अंग्रेज़ों से संघर्ष==
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हज़ारों लोगों के हथियारबंद विद्रोह से अंग्रेज़ सरकार और ज़मींदार कांप उठे। बुधु भगत को पकड़ने का काम कैप्टन इंपे को सौंपा गया। [[बनारस]] की पचासवीं देसी पैदल सेना की छह कंपनी और घुड़सवार सैनिकों का एक बड़ा दल जंगल में भेज दिया गया। टिकू और आसपास के गांवों से हज़ारों ग्रामीणों को गिरफ़्तार कर लिया गया। बुधु के दस्ते ने घाटी में ही बंदियों को मुक्त करा लिया। करारी शिकस्त से कैप्टन बौखला गया।
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==शहादत==
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[[13 फ़रवरी]], सन 1832 ई. को बुधु और उनके साथियों को कैप्टन इंपे ने सिलागांई गांव में घेर लिया। बुधु आत्म समर्पण करना चाहते थे, जिससे अंग्रेज़ों की ओर से हो रही अंधाधुंध गोलीबारी में निर्दोष ग्रामीण न मारे जाएँ। लेकिन बुधु के भक्तों ने वृताकर घेरा बनाकर उन्हें घेर लिया। चेतावनी के बाद कैप्टन ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। अंधाधुंध गोलियाँ चलने लगीं। बूढ़े, बच्चों, महिलाओं और युवाओं के भीषण चीत्कार से इलाका कांप उठा। उस खूनी तांडव में करीब 300 ग्रामीण मारे गए। अन्याय के विरुद्ध जन विद्रोह को हथियार के बल पर जबरन खामोश कर दिया गया। बुधु भगत तथा उनके बेटे 'हलधर' और 'गिरधर' भी अंग्रेज़ों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए।<ref name="aa"/>
  
 
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11:17, 28 मई 2015 का अवतरण

बुधु भगत अथवा 'बुदु भगत' (जन्म- 17 फ़रवरी, 1792 ई., राँची, झारखण्ड) भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध क्रांतिकारी के रूप में जाने जाते हैं। इनकी लड़ाई अंग्रेज़ों द्वारा किए जा रहे अत्याचार तथा अन्याय के विरुद्ध थी।

जन्म

बुधु भगत का जन्म आज के झारखण्ड राज्य में राँची ज़िले के सिलागाई नामक ग्राम में 17 फ़रवरी, सन 1792 ई. को हुआ था। कहा जाता है कि उन्हें दैवीय शक्तियाँ प्राप्त थीं, जिसके प्रतीकस्वरूप वे एक कुल्हाड़ी सदा अपने साथ रखते थे।[1]

बाल्यकाल

आमतौर पर 1857 को ही स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम समर माना जाता है। लेकिन इससे इससे पूर्व ही वीर बुधु भगत ने न सिर्फ़ क्रान्ति का शंखनाद किया था, बल्कि अपने साहस व नेतृत्व क्षमता से 1832 ई. में "लरका विद्रोह" नामक ऐतिहासिक आन्दोलन का सूत्रपात्र भी किया।[2] छोटा नागपुर के आदिवासी इलाकों में अंग्रेज़ हुकूमत के दौरान बर्बरता चरम पर थी। मुण्डाओं ने ज़मींदारों, साहूकारों के विरुद्ध पहले से ही भीषण विद्रोह छेड़ रखा था। उरांवों ने भी बागी तेवर अपना लिये। बुधु भगत बचपन से ही जमींदारों और अंग्रेज़ी सेना की क्रूरता देखते आये थे। उन्होंने देखा था कि किस तरह तैयार फ़सल ज़मींदार जबरदस्ती उठा ले जाते थे। गरीब गांव वालों के घर कई-कई दिनों तक चूल्हा नहीं जल पाता था। बालक बुधु भगत सिलागाई की कोयल नदी के किनारे घंटों बैठकर अंग्रेज़ों और जमींदारों को भगाने के बारे में सोचते रहते थे।[3]

विद्रोह

घंटों एकांत में बैठे रहने, तलवार और धनुष-बाण चलाने में पारंगत होने के कारण लोगों ने बुधु को देवदूत समझ लिया। तेजस्वी युवक बुधु की बड़ी-बड़ी बातें सुनकर आदिवासियों ने उन्हें अपना उद्धारकर्ता मानना प्रारम्भ कर दिया। विद्रोह के लिए बुधु के पास अब पर्याप्त जन समर्थन था। उन्होंने अन्याय के विरुद्ध बगावत का आह्वान किया। हज़ारों हाथ तीर, धनुष, तलवार, कुल्हाड़ी के साथ उठ खड़े हुए। कैप्टन इंपे द्वारा बंदी बनाए गए सैकड़ों ग्रामीणों को विद्रोहियों ने लड़कर मुक्त करा लिया। अपने दस्ते को बुधु ने गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया। घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों का फायदा उठाकर कई बार अंग्रेज़ी सेना को परास्त किया। बुधु को पकड़ने के लिए अंग्रेज़ सरकार ने एक हज़ार रुपये इनाम की घोषणा कर दी थी।

अंग्रेज़ों से संघर्ष

हज़ारों लोगों के हथियारबंद विद्रोह से अंग्रेज़ सरकार और ज़मींदार कांप उठे। बुधु भगत को पकड़ने का काम कैप्टन इंपे को सौंपा गया। बनारस की पचासवीं देसी पैदल सेना की छह कंपनी और घुड़सवार सैनिकों का एक बड़ा दल जंगल में भेज दिया गया। टिकू और आसपास के गांवों से हज़ारों ग्रामीणों को गिरफ़्तार कर लिया गया। बुधु के दस्ते ने घाटी में ही बंदियों को मुक्त करा लिया। करारी शिकस्त से कैप्टन बौखला गया।

शहादत

13 फ़रवरी, सन 1832 ई. को बुधु और उनके साथियों को कैप्टन इंपे ने सिलागांई गांव में घेर लिया। बुधु आत्म समर्पण करना चाहते थे, जिससे अंग्रेज़ों की ओर से हो रही अंधाधुंध गोलीबारी में निर्दोष ग्रामीण न मारे जाएँ। लेकिन बुधु के भक्तों ने वृताकर घेरा बनाकर उन्हें घेर लिया। चेतावनी के बाद कैप्टन ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। अंधाधुंध गोलियाँ चलने लगीं। बूढ़े, बच्चों, महिलाओं और युवाओं के भीषण चीत्कार से इलाका कांप उठा। उस खूनी तांडव में करीब 300 ग्रामीण मारे गए। अन्याय के विरुद्ध जन विद्रोह को हथियार के बल पर जबरन खामोश कर दिया गया। बुधु भगत तथा उनके बेटे 'हलधर' और 'गिरधर' भी अंग्रेज़ों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. झारखण्ड के विभूति (हिन्दी) संवाद। अभिगमन तिथि: 28 मई, 2015।
  2. स्वातंत्र्य संग्राम का एक और महत्वपूर्ण पक्ष जनजातीय नेतृत्व ने दी थी ब्रिटिश सरकार को चुनौती (हिन्दी) पंचजन्या.कॉम। अभिगमन तिथि: 28 मई, 2015।
  3. 3.0 3.1 कोयल किनारे बुधु भगत की बगावत (हिन्दी) दिवा स्वप्न। अभिगमन तिथि: 28 मई, 2015।

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