मुहम्मद अब्दुल बारी

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मुहम्मद अब्दुल बारी (जन्म- 1878 ई., लखनऊ, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 1926 ई.) मुस्लिमों के प्रसिद्ध नेता और स्वतन्त्रता सेनानी थे, जिन्हें सम्मान के साथ 'पीर' कहा जाता था। उन्हें पश्चिमी शिक्षा व्यवस्था से सख्त नफरत थी। मौलाना मुहम्मद अब्दुल बारी ने एक रूढ़िवादी मुस्लिम के रूप में अपना सारा जीवन व्यतीत किया था। उनका मानना था कि भारत में मुस्लिम सम्प्रदाय की बदहाली का सबसे बड़ा कारण ब्रिटिश प्रभाव था। उन्होंने 'जमायते-उलेमा-ए-हिन्द' की स्थापना की थी। 'खिलाफत आन्दोलन' में भी उनका विशेष योगदान था।

जन्म

मुहम्मद अब्दुल बारी का जन्म 1878 ई. में लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पूर्वज अपने को पैगम्बर मुहम्मद का वंशज मानते थे। अब्दुल बारी की शिक्षा मौलवियों के द्वारा केवल इस्लामी विषयों तक ही हुई थी। वे पश्चिमी शिक्षा से बहुत घृणा करते थे और उसे भारत की समस्याओं का कारण मानते थे। यद्यपि आगे चलकर मुहम्मद अब्दुल बारी के शिक्षा सम्बन्धी विचारों में परिवर्तन आ गया था और उन्होंने अपने बच्चों को 'अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी' में पढ़ने लिए भेजा।

हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक

मुहम्मद अब्दुल बारी 'जमायते-उलेमा-ए-हिन्द' के संस्थापक अध्यक्ष थे। 1914 में अंग्रेज़ों के हाथों काबा आदि धार्मिक स्थानों को नष्ट होने से बचाने के लिए उन्होंने एक और संस्था बनाई। मुस्लिम विद्यार्थियों को धार्मिक शिक्षा देने के लिए 'फिरंगी महल', लखनऊ में 'मदरसा-ए-निजामिया' स्थापित किया। मुहम्मद अब्दुल बारी हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक थे। इन दोनों समुदायों में जब भी तनाव बढ़ा, उसे शांत करने के लिए वे सदा आगे रहे।

क्रांतिकारी गतिविधि

'खिलाफत आन्दोलन' में भी उन्होंने सक्रिय भाग लिया था। 'रौलट एक्ट' के भी वे प्रबल विरोधी थे। इसके विरुद्ध गाँधीजी ने जो अहिंसक आन्दोलन आरम्भ किया था, मौलाना अब्दुल बारी उसके समर्थक थे। ब्रिटिश सरकार की कटु आलोचना करने का वे कोई अवसर नहीं छोड़ते थे। फिर भी मुस्लिम समुदाय पर उनके व्यापक प्रभाव को देखते हुए सरकार ने उन्हें गिरफ्तार नहीं किया।[1]

निधन

1926 ई. में मौलाना मुहम्मद अब्दुल बारी का निधन हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 647 |

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