अनिल बरन राय

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Disamb2.jpg अनिल बरन राय एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- अनिल बरन राय (बहुविकल्पी)
अनिल बरन राय
अनिल बरन राय
पूरा नाम अनिल बरन राय
जन्म 3 जुलाई, 1890
जन्म भूमि बंगाल
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि क्रांतिकारी
जेल यात्रा क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए 1924 में जेल की सज़ा भोगी।
विद्यालय कोलकाता विश्वविद्यालय
शिक्षा क़ानून की शिक्षा
अन्य जानकारी अनिल बरन राय 1926 में रिहा होने के बाद पांडिचेरी जा पहुंचे थे और अरविंद के शिष्य के रूप में उन्होंने 40 वर्षों तक योग की साधना की।

अनिल बरन राय (अंग्रेज़ी: Anil Baran Ray, जन्म- 3 जुलाई, 1890, बंगाल) महर्षि अरविंद के प्रमुख अनुयायी थे। वे अपने अध्यापन कार्य को छोड़कर असहयोग आंदोलन में कूद पड़े थे। उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंग्रेज़ सरकार ख़तरनाक मानती थी, जिस कारण उन्हें सन 1924 में गिरफ्तार किया गया। 1926 में रिहा होने के बाद अनिल बरन राय अरविंद घोष के शिष्य बन गए और योग साधना करने लगे।

परिचय

अनिल बरन राय का जन्म 3 जुलाई, 1890 ईसवी को बंगाल के बर्दवान ज़िले में हुआ था। 1915 में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा पूरी की। वे वकालत करना चाहते थे। अपना नाम दर्ज कराने के लिए जाते समय उन्हें मार्ग में एक ज्योतिष मिला। ज्योतिष ने कहा- "तुम्हारे भाग्य में वकालत नहीं, निस्वार्थ भाव से मानवता की सेवा करना लिखा है।" इस पर अनिल बरन राय ने वकालत का विचार त्याग दिया और 7 वर्षों तक कॉलेज में दर्शनशास्त्र पढ़ाते रहे।

क्रांतिकारी शुरुआत

सन 1921 में उन्हें अंतरात्मा की आवाज सुनाई दी कि वह स्वयं को देश सेवा में लगा दें। इस पर अनिल बरन राय ने अध्यापकी छोड़ दी और असहयोग आंदोलन में सम्मिलित हो गए। 1923 में वे देशबंधु चितरंजन दास के नेतृत्व में स्वराज्य पार्टी में सम्मिलित हुए और बंगाल कौंसिल के सदस्य चुने गए। शीघ्र ही उनकी गणना बंगाल के प्रमुख नेताओं में होने लगी। उनकी गतिविधियों को खतरनाक समझकर सरकार ने 1924 में उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया।

योग साधना

इस बीच अनिल बरन पर श्री अरविंद के दार्शनिक विचारों का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। अरविंद ने उन्हें परामर्श दिया कि जेल से छूटने के बाद पांडिचेरी चले आएं। 1926 में रिहा होने के बाद अनिल पांडिचेरी जा पहुंचे और अरविंद के शिष्य के रूप में उन्होंने 40 वर्षों तक योग की साधना की।

राजनीतिक योजना

1966 में अरविंद का राजनीतिक कार्य पूरा करने के लिए वे साधना से बाहर निकले। श्री अरविंद के विचारों के आधार पर उन्होंने एक राजनीतिक योजना प्रस्तुत की। इसमें प्रस्तावित था कि एक नए संविधान के आधार पर भारत का पुन: एकीकरण हो, केंद्र के हाथ में सुरक्षा, परराष्ट्र संबंध और संचार रहे, शिक्षक विषय राज्यों को सौंप दिए जाएं, सर्वधर्म समभाव रहे, लोग ईश्वर में विश्वास करें, मानवता की सेवा का व्रत लिया जाए, बाहरी आचार-विचार त्याग दिए जाएं, गरीबी-अमीरी का भेद समाप्त हो, एक अंतरराष्ट्रीय सेना हो और एक विश्व सरकार बने आदि।

कृतियाँ

अनिल बरन ने अनेक पुस्तकों की रचना की, उनकी कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें हैं-

  1. श्री अरविंदो एंड द न्यू एज
  2. इंडिया मिशन इन द वर्ल्ड
  3. मदर इंडिया


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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