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'''केसरी सिंह बारहट''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kesari Singh Barahath'' ; जन्म- [[21 नवम्बर]], [[1872]], [[शाहपुरा]], [[राजस्थान]]; मृत्यु- [[14 अगस्त]], [[1941]]) प्रसिद्ध [[राजस्थानी भाषा|राजस्थानी]] [[कवि]] और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]], [[मराठी भाषा|मराठी]], [[गुजराती भाषा|गुजराती]] आदि भाषाओं के साथ [[इतिहास]], [[दर्शन]]<ref>भारतीय और यूरोपीय</ref>, मनोविज्ञान, खगोलशास्त्र तथा ज्योतिष आदि का अध्ययन कर प्रमाणिक विद्वत्ता हासिल कर ली थी। केसरी जी के भाई जोरावर सिंह बारहट और पुत्र प्रताप सिंह बारहट ने [[रास बिहारी बोस]] के साथ [[लॉर्ड हार्डिंग]] की सवारी पर बम फेंकने के कार्य में भाग लिया था। केसरी सिंह बारहट ने प्रसिद्ध 'चेतावनी रा चुंग्ट्या' नामक [[सोरठा|सोरठे]] रचे थे, जिन्हें पढ़कर [[मेवाड़]] के महाराणा अत्यधिक प्रभावित हुए थे और वे [[1903]] ई. में [[लॉर्ड कर्ज़न]] द्वारा आयोजित '[[दिल्ली दरबार]]' में शामिल नहीं हुए थे।
 
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केसरी सिंह बारहट (अंग्रेज़ी: Kesari Singh Barahath ; जन्म- 21 नवम्बर, 1872, शाहपुरा, राजस्थान; मृत्यु- 14 अगस्त, 1941) प्रसिद्ध राजस्थानी कवि और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने बांग्ला, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं के साथ इतिहास, दर्शन[1], मनोविज्ञान, खगोलशास्त्र तथा ज्योतिष आदि का अध्ययन कर प्रमाणिक विद्वत्ता हासिल कर ली थी। केसरी जी के भाई जोरावर सिंह बारहट और पुत्र प्रताप सिंह बारहट ने रास बिहारी बोस के साथ लॉर्ड हार्डिंग की सवारी पर बम फेंकने के कार्य में भाग लिया था। केसरी सिंह बारहट ने प्रसिद्ध 'चेतावनी रा चुंग्ट्या' नामक सोरठे रचे थे, जिन्हें पढ़कर मेवाड़ के महाराणा अत्यधिक प्रभावित हुए थे और वे 1903 ई. में लॉर्ड कर्ज़न द्वारा आयोजित 'दिल्ली दरबार' में शामिल नहीं हुए थे।

जन्म

केसरी सिंह बारहट का जन्म 21 नवम्बर, 1872 ई. में देवपुरा रियासत, शाहपुरा, राजस्थान में हुआ था। इनके पिता का नाम कृष्ण सिंह बारहट था। जब केसरी सिंह मात्र एक माह के ही थे, तभी उनकी माता का निधन हो गया। अतः उनका लालन-पालन उनकी दादी माँ ने किया।

शिक्षा

केसरी जी की शिक्षा उदयपुर में हुई। उन्होंने बांग्ला, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं के साथ इतिहास, दर्शन[2], मनोविज्ञान, खगोलशास्त्र तथा ज्योतिष आदि का अध्ययन कर प्रमाणिक विद्वत्ता हासिल कर ली थी। डिंगल-पिंगल भाषा की काव्य-सर्जना तो उनके जन्मजात चारण-संस्कारों में शामिल थी ही। बनारस से गोपीनाथ जी नाम के पंडित को बुलाकर इन्हें संस्कृत की शिक्षा भी दिलवाई गई। केसरी सिंह बारहट के स्वाध्याय के लिए उनके पिता कृष्ण सिंह का प्रसिद्ध पुस्तकालय 'कृष्ण-वाणी-विलास' भी उपलब्ध था। राजनीति में वे इटली के राष्ट्रपिता मैजिनी को अपना गुरु मानते थे। मैजिनी की जीवनी वीर सावरकर ने लन्दन में पढ़ते समय मराठी में लिखकर गुप्त रूप से लोकमान्य तिलक को भेजी थी, क्योंकि उस समय मैजिनी की जीवनी पुस्तक पर ब्रिटिश साम्राज्य ने पाबन्दी लगा रखी थी। केसरी जी ने इस मराठी पुस्तक का हिन्दी अनुवाद किया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय और यूरोपीय
  2. भारतीय और यूरोपीय

बाहरी कड़ियाँ

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