"श्रावणी पूर्णिमा" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "संन्यास" to "सन्न्यास")
छो (Text replacement - "सन्न्यासी" to "संन्यासी")
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
'''श्रावणी पूर्णिमा''' का [[हिन्दू धर्म]] में बड़ा ही महत्त्व है। यह [[श्रावण मास]] की [[पूर्णिमा]] है, जिसमें [[ब्राह्मण]] वर्ग अपनी कर्म शुद्धि के लिए उपक्रम करते हैं। [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में इस दिन किए गए तप और दान का महत्त्व उल्लेखित है। इस दिन '[[रक्षाबंधन]]' का पवित्र त्यौहार मनाया जाता है। इसके साथ ही श्रावणी उपक्रम, श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को आरम्भ होता है। [[हिन्दू]] धर्म ग्रन्थों में श्रावणी कर्म का विशेष महत्त्व बतलाया गया है। श्रावणी पूर्णिमा के दिन '[[यज्ञोपवीत]]' के पूजन तथा [[उपनयन संस्कार]] का भी विधान है।
 
'''श्रावणी पूर्णिमा''' का [[हिन्दू धर्म]] में बड़ा ही महत्त्व है। यह [[श्रावण मास]] की [[पूर्णिमा]] है, जिसमें [[ब्राह्मण]] वर्ग अपनी कर्म शुद्धि के लिए उपक्रम करते हैं। [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में इस दिन किए गए तप और दान का महत्त्व उल्लेखित है। इस दिन '[[रक्षाबंधन]]' का पवित्र त्यौहार मनाया जाता है। इसके साथ ही श्रावणी उपक्रम, श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को आरम्भ होता है। [[हिन्दू]] धर्म ग्रन्थों में श्रावणी कर्म का विशेष महत्त्व बतलाया गया है। श्रावणी पूर्णिमा के दिन '[[यज्ञोपवीत]]' के पूजन तथा [[उपनयन संस्कार]] का भी विधान है।
 
==महत्त्व==
 
==महत्त्व==
हिन्दू धर्म में [[सावन|सावन माह]] की पूर्णिमा बहुत ही पवित्र व शुभ दिन माना जाता है। सावन पूर्णिमा की तिथि धार्मिक दृष्टि के साथ ही साथ व्यावहारिक रूप से भी बहुत ही महत्व रखती है। इस माह को भगवान [[शिव]] की [[पूजा]] उपासना का महीना माना जाता है। सावन में हर दिन भगवान शिव की विशेष पूजा करने का विधान है। इस प्रकार की गई पूजा से भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। इस माह की [[पूर्णिमा]] तिथि इस मास का अंतिम दिन माना जाता है। अत: इस दिन शिव पूजा व जल अभिषेक से पूरे माह की शिव भक्ति का पुण्य प्राप्त होता है। प्राचीन काल में आज के दिन ब्राह्मण अपने यजमानों को रक्षा का धागा अर्थात राखी बांधते थे और साधु-संत एक ही जगह पर चार मास रुक कर अध्ययन-मनन और पठन-पाठन प्रारम्भ करते थे। ऋषि-मुनि और साधु-सन्न्यासी तपोवनों से आकर गांवों व नगरों के समीप रहने लगते थे और एक ही स्थान पर चार मास तक रहकर जनता में [[धर्म]] का प्रचार (चातुर्मास) करते थे। इस प्रक्रिया को "श्रावणी उपक्रम" कहा जाता है।
+
हिन्दू धर्म में [[सावन|सावन माह]] की पूर्णिमा बहुत ही पवित्र व शुभ दिन माना जाता है। सावन पूर्णिमा की तिथि धार्मिक दृष्टि के साथ ही साथ व्यावहारिक रूप से भी बहुत ही महत्व रखती है। इस माह को भगवान [[शिव]] की [[पूजा]] उपासना का महीना माना जाता है। सावन में हर दिन भगवान शिव की विशेष पूजा करने का विधान है। इस प्रकार की गई पूजा से भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। इस माह की [[पूर्णिमा]] तिथि इस मास का अंतिम दिन माना जाता है। अत: इस दिन शिव पूजा व जल अभिषेक से पूरे माह की शिव भक्ति का पुण्य प्राप्त होता है। प्राचीन काल में आज के दिन ब्राह्मण अपने यजमानों को रक्षा का धागा अर्थात राखी बांधते थे और साधु-संत एक ही जगह पर चार मास रुक कर अध्ययन-मनन और पठन-पाठन प्रारम्भ करते थे। ऋषि-मुनि और साधु-संन्यासी तपोवनों से आकर गांवों व नगरों के समीप रहने लगते थे और एक ही स्थान पर चार मास तक रहकर जनता में [[धर्म]] का प्रचार (चातुर्मास) करते थे। इस प्रक्रिया को "श्रावणी उपक्रम" कहा जाता है।
  
 
श्रावण पूर्णिमा के दिन [[चंद्रमा]] अपनी पूर्ण कलाओं के साथ होता है, अत: इस दिन पूजा-उपासना करने से चंद्रदोष से मुक्ति मिलती है। श्रावणी पूर्णिमा का दिन दान, पुण्य के लिए महत्त्वपूर्ण है। इसीलिए इस दिन [[स्नान]] के बाद [[गाय]] आदि को चारा खिलाना, चीटियों, [[मछली|मछलियों]] आदि को दाना खिलाना चाहिए। इस दिन गोदान का बहुत महत्त्व ग्रंथों में बतलाया गया है। श्रावणी पर्व के दिन जनेऊ पहनने वाला हर धर्मावलंबी मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लेकर जनेऊ बदलते हैं। इस दिन ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान देना और भोजन कराया जाता है। इस दिन भगवान [[विष्णु]] और [[लक्ष्मी]] की पूजा का विधान है। विष्णु-लक्ष्मी के दर्शन से सुख, धन और समृद्धि कि प्राप्ति होती है। इस पावन दिन पर भगवान शिव, विष्णु, महालक्ष्मीव हनुमान को रक्षासूत्र अर्पित करना चाहिए।
 
श्रावण पूर्णिमा के दिन [[चंद्रमा]] अपनी पूर्ण कलाओं के साथ होता है, अत: इस दिन पूजा-उपासना करने से चंद्रदोष से मुक्ति मिलती है। श्रावणी पूर्णिमा का दिन दान, पुण्य के लिए महत्त्वपूर्ण है। इसीलिए इस दिन [[स्नान]] के बाद [[गाय]] आदि को चारा खिलाना, चीटियों, [[मछली|मछलियों]] आदि को दाना खिलाना चाहिए। इस दिन गोदान का बहुत महत्त्व ग्रंथों में बतलाया गया है। श्रावणी पर्व के दिन जनेऊ पहनने वाला हर धर्मावलंबी मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लेकर जनेऊ बदलते हैं। इस दिन ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान देना और भोजन कराया जाता है। इस दिन भगवान [[विष्णु]] और [[लक्ष्मी]] की पूजा का विधान है। विष्णु-लक्ष्मी के दर्शन से सुख, धन और समृद्धि कि प्राप्ति होती है। इस पावन दिन पर भगवान शिव, विष्णु, महालक्ष्मीव हनुमान को रक्षासूत्र अर्पित करना चाहिए।
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
भाई और बहन के पवित्र रिश्ते का पर्व '[[रक्षाबंधन]]' का त्यौहार भी श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसे 'सावनी' या 'सलूनो' भी कहते हैं। रक्षाबंधन, 'राखी' या 'रक्षासूत्र' का रूप है। राखी सामान्यतः बहनें अपने भाइयों की कलाई पर बांधती हैं। उनकी आरती उतारती हैं तथा इसके बदले में भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है और उपहार स्वरूप उसे भेंट भी देता है। इसके अतिरिक्त ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा संबंधियों को जैसे पुत्री द्वारा [[पिता]] को भी रक्षासूत्र या राखी बांधी जाती है। इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है, उत्सर्जन, स्नान-विधि, ऋषि-तर्पणादि करके नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। वृत्तिवान ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते हैं।
 
भाई और बहन के पवित्र रिश्ते का पर्व '[[रक्षाबंधन]]' का त्यौहार भी श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसे 'सावनी' या 'सलूनो' भी कहते हैं। रक्षाबंधन, 'राखी' या 'रक्षासूत्र' का रूप है। राखी सामान्यतः बहनें अपने भाइयों की कलाई पर बांधती हैं। उनकी आरती उतारती हैं तथा इसके बदले में भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है और उपहार स्वरूप उसे भेंट भी देता है। इसके अतिरिक्त ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा संबंधियों को जैसे पुत्री द्वारा [[पिता]] को भी रक्षासूत्र या राखी बांधी जाती है। इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है, उत्सर्जन, स्नान-विधि, ऋषि-तर्पणादि करके नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। वृत्तिवान ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते हैं।
 
====कृषि====
 
====कृषि====
[[भारत]] एक [[कृषि]] प्रधान देश है। श्रावण पूर्णिमा आ जाने पर कृषक अपनी अगली फ़सल के लिए आशाएँ संजोता है, [[क्षत्रिय]] भी अपनी विजय यात्रा से विरत होते हैं और [[वैश्य]] भी अपने व्यापार से आराम पाते हैं। इसलिए जब साधु-सन्न्यासी [[वर्षा]] के कारण अपनी तपोभूमि त्यागकर नगर के समीप चौमासा बिताने आते हैं तो सभी श्रद्धालु जन उनके उपदेश सुनकर अपने समय का सदुपयोग करते हैं।  
+
[[भारत]] एक [[कृषि]] प्रधान देश है। श्रावण पूर्णिमा आ जाने पर कृषक अपनी अगली फ़सल के लिए आशाएँ संजोता है, [[क्षत्रिय]] भी अपनी विजय यात्रा से विरत होते हैं और [[वैश्य]] भी अपने व्यापार से आराम पाते हैं। इसलिए जब साधु-संन्यासी [[वर्षा]] के कारण अपनी तपोभूमि त्यागकर नगर के समीप चौमासा बिताने आते हैं तो सभी श्रद्धालु जन उनके उपदेश सुनकर अपने समय का सदुपयोग करते हैं।  
 
==अमरनाथ यात्रा का समापन==
 
==अमरनाथ यात्रा का समापन==
 
[[पुराण|पुराणों]] के अनुसार [[गुरु पूर्णिमा]] के पावन अवसर पर [[अमरनाथ]] की पवित्र छड़ी यात्रा का शुभारंभ होता है और यह यात्रा श्रावण पूर्णिमा को संपन्न होती है। कांवडियों द्वारा श्रावण पूर्णिमा के दिन ही [[शिवलिंग]] पर जल चढ़ाया जाता है और उनकी कांवड़ यात्रा संपन्न होती है। इस दिन भगवान [[शिव]] का पूजन होता है। पवित्रोपना के तहत रूई की बत्तियाँ पंचगव्य में डुबाकर भगवान शिव को अर्पित की जाती हैं।
 
[[पुराण|पुराणों]] के अनुसार [[गुरु पूर्णिमा]] के पावन अवसर पर [[अमरनाथ]] की पवित्र छड़ी यात्रा का शुभारंभ होता है और यह यात्रा श्रावण पूर्णिमा को संपन्न होती है। कांवडियों द्वारा श्रावण पूर्णिमा के दिन ही [[शिवलिंग]] पर जल चढ़ाया जाता है और उनकी कांवड़ यात्रा संपन्न होती है। इस दिन भगवान [[शिव]] का पूजन होता है। पवित्रोपना के तहत रूई की बत्तियाँ पंचगव्य में डुबाकर भगवान शिव को अर्पित की जाती हैं।

11:43, 3 अगस्त 2017 का अवतरण

श्रावणी पूर्णिमा का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। यह श्रावण मास की पूर्णिमा है, जिसमें ब्राह्मण वर्ग अपनी कर्म शुद्धि के लिए उपक्रम करते हैं। ग्रंथों में इस दिन किए गए तप और दान का महत्त्व उल्लेखित है। इस दिन 'रक्षाबंधन' का पवित्र त्यौहार मनाया जाता है। इसके साथ ही श्रावणी उपक्रम, श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को आरम्भ होता है। हिन्दू धर्म ग्रन्थों में श्रावणी कर्म का विशेष महत्त्व बतलाया गया है। श्रावणी पूर्णिमा के दिन 'यज्ञोपवीत' के पूजन तथा उपनयन संस्कार का भी विधान है।

महत्त्व

हिन्दू धर्म में सावन माह की पूर्णिमा बहुत ही पवित्र व शुभ दिन माना जाता है। सावन पूर्णिमा की तिथि धार्मिक दृष्टि के साथ ही साथ व्यावहारिक रूप से भी बहुत ही महत्व रखती है। इस माह को भगवान शिव की पूजा उपासना का महीना माना जाता है। सावन में हर दिन भगवान शिव की विशेष पूजा करने का विधान है। इस प्रकार की गई पूजा से भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। इस माह की पूर्णिमा तिथि इस मास का अंतिम दिन माना जाता है। अत: इस दिन शिव पूजा व जल अभिषेक से पूरे माह की शिव भक्ति का पुण्य प्राप्त होता है। प्राचीन काल में आज के दिन ब्राह्मण अपने यजमानों को रक्षा का धागा अर्थात राखी बांधते थे और साधु-संत एक ही जगह पर चार मास रुक कर अध्ययन-मनन और पठन-पाठन प्रारम्भ करते थे। ऋषि-मुनि और साधु-संन्यासी तपोवनों से आकर गांवों व नगरों के समीप रहने लगते थे और एक ही स्थान पर चार मास तक रहकर जनता में धर्म का प्रचार (चातुर्मास) करते थे। इस प्रक्रिया को "श्रावणी उपक्रम" कहा जाता है।

श्रावण पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ होता है, अत: इस दिन पूजा-उपासना करने से चंद्रदोष से मुक्ति मिलती है। श्रावणी पूर्णिमा का दिन दान, पुण्य के लिए महत्त्वपूर्ण है। इसीलिए इस दिन स्नान के बाद गाय आदि को चारा खिलाना, चीटियों, मछलियों आदि को दाना खिलाना चाहिए। इस दिन गोदान का बहुत महत्त्व ग्रंथों में बतलाया गया है। श्रावणी पर्व के दिन जनेऊ पहनने वाला हर धर्मावलंबी मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लेकर जनेऊ बदलते हैं। इस दिन ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान देना और भोजन कराया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा का विधान है। विष्णु-लक्ष्मी के दर्शन से सुख, धन और समृद्धि कि प्राप्ति होती है। इस पावन दिन पर भगवान शिव, विष्णु, महालक्ष्मीव हनुमान को रक्षासूत्र अर्पित करना चाहिए।

रक्षाबंधन

भाई और बहन के पवित्र रिश्ते का पर्व 'रक्षाबंधन' का त्यौहार भी श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसे 'सावनी' या 'सलूनो' भी कहते हैं। रक्षाबंधन, 'राखी' या 'रक्षासूत्र' का रूप है। राखी सामान्यतः बहनें अपने भाइयों की कलाई पर बांधती हैं। उनकी आरती उतारती हैं तथा इसके बदले में भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है और उपहार स्वरूप उसे भेंट भी देता है। इसके अतिरिक्त ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा संबंधियों को जैसे पुत्री द्वारा पिता को भी रक्षासूत्र या राखी बांधी जाती है। इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है, उत्सर्जन, स्नान-विधि, ऋषि-तर्पणादि करके नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। वृत्तिवान ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते हैं।

कृषि

भारत एक कृषि प्रधान देश है। श्रावण पूर्णिमा आ जाने पर कृषक अपनी अगली फ़सल के लिए आशाएँ संजोता है, क्षत्रिय भी अपनी विजय यात्रा से विरत होते हैं और वैश्य भी अपने व्यापार से आराम पाते हैं। इसलिए जब साधु-संन्यासी वर्षा के कारण अपनी तपोभूमि त्यागकर नगर के समीप चौमासा बिताने आते हैं तो सभी श्रद्धालु जन उनके उपदेश सुनकर अपने समय का सदुपयोग करते हैं।

अमरनाथ यात्रा का समापन

पुराणों के अनुसार गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर अमरनाथ की पवित्र छड़ी यात्रा का शुभारंभ होता है और यह यात्रा श्रावण पूर्णिमा को संपन्न होती है। कांवडियों द्वारा श्रावण पूर्णिमा के दिन ही शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता है और उनकी कांवड़ यात्रा संपन्न होती है। इस दिन भगवान शिव का पूजन होता है। पवित्रोपना के तहत रूई की बत्तियाँ पंचगव्य में डुबाकर भगवान शिव को अर्पित की जाती हैं।

श्रावणी उपक्रम

श्रावणी उपक्रम श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को आरम्भ होता था। श्रावणी के प्रथम दिन अध्ययन का श्री गणेश होता था। श्रावणी कर्म का विशेष महत्त्व है। इस दिन यज्ञोपवीत के पूजन का भी विधान है। इसी दिन उपनयन संस्कार करके विद्यार्थियों को वेदों का अध्ययन एवं ज्ञानार्जन करने के लिए गुरुकुलों में भेजा जाता था। इस दिन ब्राह्मणों को किसी नदी, तालाब के तट पर जाकर शास्त्रों में कथित विधान से श्रावणी कर्म करना चाहिए। पंचगव्य का पान करके शरीर को शुद्ध करके हवन करना 'उपक्रम' है। इसके बाद जल के सामने सूर्य की प्रशंसा करके अरून्धती सहित सप्त ऋषियों की अर्चना करके दहीसत्तू की आहुति देनी चाहिए। इसे 'उत्सर्जन' कहते हैं।

कजरी पूर्णिमा

'कजरी पूर्णिमा' का पर्व भी श्रावण पूर्णिमा के दिन ही पड़ता है। यह पर्व विशेषत: मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के कुछ जगहों में मनाया जाता है। श्रावण अमावस्या के नौंवे दिन से इस उत्सव की तैयारीयाँ आरंभ हो जाती हैं। 'कजरी नवमी' के दिन महिलाएँ पेड़ के पत्तों के पात्रों में मिट्टी भर कर लाती हैं, जिसमें जौ बोया जाता है। कजरी पूर्णिमा के दिन महिलाएँ इन जौ पात्रों को सिर पर रखकर पास के किसी तालाब या नदी में विसर्जित करने के लिए ले जाती हैं। इस नवमी की पूजा करके स्त्रियाँ कजरी बोती है। गीत गाती हैं तथा कथा कहती हैं। महिलाएँ इस दिन व्रत रखकर अपने पुत्र की लंबी आयु और उसके सुख की कामना करती हैं।

अन्य राज्यों में

श्रावण पूर्णिमा को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक नामों से जाना जाता है और उसके अनुसार पर्व रूप में मनाया जाता है, जैसे- उत्तर भारत में 'रक्षाबंधन' के पर्व रूप में, दक्षिण भारत में 'नारयली पूर्णिमा' व 'अवनी अवित्तम', मध्य भारत में 'कजरी पूनम' तथा गुजरात में 'पवित्रोपना' के रूप में मनाया जाता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख