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इस दिन प्रात:काल भक्तों को श्रीहरि का स्मरण करने नियमानुसार विधि विधान के साथ पूजा कर्म करना चाहिए। भगवान वामन का पंचोपचार अथवा षोडषोपचार पूजन करने के पश्चात [[चावल]], [[दही]] इत्यादि वस्तुओं का दान करना उत्तम माना गया है। संध्या समय व्रती भगवान वामन का पूजन करना चाहिए और व्रत कथा सुननी चाहिए तथा समस्त परिवार वालों को भगवान का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। इस दिन व्रत एवं पूजन करने से भगवान वामन प्रसन्न होते हैं और भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।
 
इस दिन प्रात:काल भक्तों को श्रीहरि का स्मरण करने नियमानुसार विधि विधान के साथ पूजा कर्म करना चाहिए। भगवान वामन का पंचोपचार अथवा षोडषोपचार पूजन करने के पश्चात [[चावल]], [[दही]] इत्यादि वस्तुओं का दान करना उत्तम माना गया है। संध्या समय व्रती भगवान वामन का पूजन करना चाहिए और व्रत कथा सुननी चाहिए तथा समस्त परिवार वालों को भगवान का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। इस दिन व्रत एवं पूजन करने से भगवान वामन प्रसन्न होते हैं और भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।
 
==वामन जयंती कथा==
 
==वामन जयंती कथा==
[[वामन अवतार]] भगवान विष्णु का महत्त्वपूर्ण [[अवतार]] माना जाता है। भगवान की लीला अनंत है और उसी में से एक वामन अवतार है। इसके विषय में [[भागवत पुराण|श्रीमद्भगवदपुराण]] में विस्तार से उल्लेख है। वामन अवतार कथानुसार देव और दैत्यों के युद्ध में [[दैत्य]] पराजित होने लगते हैं। पराजित दैत्य मृत एवं आहतों को लेकर अस्ताचल चले जाते हैं और दूसरी ओर दैत्यराज [[बलि]] [[इन्द्र]] के वज्र से मृत हो जाते हैं। तब दैत्यगुरु [[शुक्राचार्य]] अपनी मृत संजीवनी विद्या से बलि और दूसरे दैत्य को भी जीवित एवं स्वस्थ कर देते हैं। राजा बलि के लिए शुक्राचार्य एक [[यज्ञ]] का आयोजन करते हैं तथा [[अग्नि]] से दिव्य रथ, [[बाण]], अभेद्य कवच पाते हैं। इससे असुरों की शक्ति में वृद्धि हो जाती है और असुर सेना [[अमरावती]] पर आक्रमण करने लगती है।  
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[[वामन अवतार]] भगवान विष्णु का महत्त्वपूर्ण [[अवतार]] माना जाता है। भगवान की लीला अनंत है और उसी में से एक वामन अवतार है। इसके विषय में [[भागवत पुराण|श्रीमद्भगवदपुराण]] में विस्तार से उल्लेख है।
 
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====देव-असुर युद्ध====
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वामन अवतार कथानुसार देव और दैत्यों के युद्ध में [[दैत्य]] पराजित होने लगते हैं। पराजित दैत्य मृत एवं आहतों को लेकर अस्ताचल चले जाते हैं और दूसरी ओर दैत्यराज [[बलि]] [[इन्द्र]] के वज्र से मृत हो जाते हैं। तब दैत्यगुरु [[शुक्राचार्य]] अपनी मृत संजीवनी विद्या से बलि और दूसरे दैत्य को भी जीवित एवं स्वस्थ कर देते हैं। राजा बलि के लिए शुक्राचार्य एक [[यज्ञ]] का आयोजन करते हैं तथा [[अग्नि]] से दिव्य रथ, [[बाण]], अभेद्य कवच पाते हैं। इससे असुरों की शक्ति में वृद्धि हो जाती है और असुर सेना [[अमरावती]] पर आक्रमण करने लगती है।  
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====विष्णु का वामन अवतार====
 
इंद्र को राजा बलि की इच्छा का ज्ञान होता है कि राजा बलि इस सौ यज्ञ पूरे करने के बाद स्वर्ग को प्राप्त करने में सक्षम हो जाएंगे, तब इन्द्र भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं। भगवान विष्णु उनकी सहायता करने का आश्वासन देते हैं और वामन रूप में माता [[अदिति]] के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैं। दैत्यराज बलि द्वारा देवों के पराभव के बाद [[कश्यप|ऋषि कश्यप]] के कहने से माता अदिति पयोव्रत का अनुष्ठान करती हैं, जो पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। तब विष्णु [[भाद्रपद मास]] की [[शुक्ल पक्ष]] की [[द्वादशी]] के दिन माता अदिति के गर्भ से प्रकट हो अवतार लेते हैं तथा ब्रह्मचारी [[ब्राह्मण]] का रूप धारण करते हैं।
 
इंद्र को राजा बलि की इच्छा का ज्ञान होता है कि राजा बलि इस सौ यज्ञ पूरे करने के बाद स्वर्ग को प्राप्त करने में सक्षम हो जाएंगे, तब इन्द्र भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं। भगवान विष्णु उनकी सहायता करने का आश्वासन देते हैं और वामन रूप में माता [[अदिति]] के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैं। दैत्यराज बलि द्वारा देवों के पराभव के बाद [[कश्यप|ऋषि कश्यप]] के कहने से माता अदिति पयोव्रत का अनुष्ठान करती हैं, जो पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। तब विष्णु [[भाद्रपद मास]] की [[शुक्ल पक्ष]] की [[द्वादशी]] के दिन माता अदिति के गर्भ से प्रकट हो अवतार लेते हैं तथा ब्रह्मचारी [[ब्राह्मण]] का रूप धारण करते हैं।
  
 
महर्षि कश्यप ऋषियों के साथ उनका [[उपनयन संस्कार]] करते हैं। वामन बटुक को महर्षि [[पुलह]] ने [[यज्ञोपवीत]], [[अगस्त्य]] ने मृगचर्म, [[मरीचि]] ने [[पलाश वृक्ष|पलाश]] का दण्ड, [[आंगिरस]] ने वस्त्र, [[सूर्य]] ने छत्र, [[भृगु]] ने [[खड़ाऊँ]], गुरु देव जनेऊ तथा कमण्डल, अदिति ने कोपीन, [[सरस्वती देवी|सरस्वती]] ने [[रुद्राक्ष]] की माला तथा [[कुबेर]] ने भिक्षा पात्र प्रदान किए। तत्पश्चात भगवान वामन [[पिता]] से आज्ञा लेकर बलि के पास जाते हैं। उस समय राजा बलि [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] के उत्तर-तट पर अन्तिम यज्ञ कर रहे होते हैं।
 
महर्षि कश्यप ऋषियों के साथ उनका [[उपनयन संस्कार]] करते हैं। वामन बटुक को महर्षि [[पुलह]] ने [[यज्ञोपवीत]], [[अगस्त्य]] ने मृगचर्म, [[मरीचि]] ने [[पलाश वृक्ष|पलाश]] का दण्ड, [[आंगिरस]] ने वस्त्र, [[सूर्य]] ने छत्र, [[भृगु]] ने [[खड़ाऊँ]], गुरु देव जनेऊ तथा कमण्डल, अदिति ने कोपीन, [[सरस्वती देवी|सरस्वती]] ने [[रुद्राक्ष]] की माला तथा [[कुबेर]] ने भिक्षा पात्र प्रदान किए। तत्पश्चात भगवान वामन [[पिता]] से आज्ञा लेकर बलि के पास जाते हैं। उस समय राजा बलि [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] के उत्तर-तट पर अन्तिम यज्ञ कर रहे होते हैं।
 
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====बलि द्वारा भूमिदान====
वामन अवतारी श्रीहरि, राजा बलि के यहाँ भिक्षा माँगने पहुँच जाते हैं। [[ब्राह्मण]] बने विष्णु भिक्षा में तीन पग भूमि माँगते हैं। राजा बलि [[शुक्राचार्य|दैत्यगुरु शुक्राचार्य]] के मना करने पर भी अपने वचन पर अडिग रहते हुए, विष्णु को तीन पग भूमि दान में देने का वचन कर देते हैं। वामन रूप में भगवान एक पग में स्वर्गादि उर्ध्व लोकों को ओर दूसरे पग में [[पृथ्वी]] को नाप लेते हैं। अब तीसरा पग रखने को कोई स्थान नहीं रह जाता। बलि के सामने संकट उत्पन्न हो जाता है कि वामन के तीसरा पैर रखने के लिए स्थान कहाँ से लाये। ऐसे में राजा बलि यदि अपना वचन नहीं निभाए तो अधर्म होगा। आखिरकार बलि अपना सिर भगवान के आगे कर देता है और कहता है तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ठीक वैसा ही करते हैं और बलि को [[पाताल लोक]] में रहने का आदेश करते हैं। बलि सहर्ष भवदाज्ञा को शिरोधार्य करता है। बलि के द्वारा वचन पालन करने पर भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न होते हैं और दैत्यराज बलि को वर माँगने को कहते हैं। इसके बदले में बलि रात-दिन भगवान को अपने सामने रहने का वचन माँग लेता है, श्रीविष्णु अपना वचन का पालन करते हुए [[पाताल लोक]] में राजा बलि का द्वारपाल बनना स्वीकार करते हैं।<ref>{{cite web |url=http://abhinavvashishtha.blogspot.in/2012/09/26912.html |title=वामन जयंती  |accessmonthday=13 जनवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=समग्र उन्ननयन (ब्लॉग)|language=हिंदी }}</ref></poem>
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11:25, 2 सितम्बर 2013 का अवतरण

वामन जयन्ती
वामन अवतार
विवरण 'वामन जयंती' हिन्दुओं के प्रमुख देवताओं में से एक भगवान विष्णु के वामन अवतार के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। विश्वास किया जाता है कि इसी दिन भगवान ने वामन अवतार लिया था।
अन्य नाम वामन द्वादशी
तिथि भाद्रपद मास, शुक्ल पक्ष की द्वादशी
अनुयायी हिन्दू व प्रवासी भारतीय हिन्दू
सम्बन्धित देवता विष्णु
धार्मिक मान्यता इस दिन व्रत एवं पूजन करने से भगवान वामन प्रसन्न होते हैं और भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।
संबंधित लेख विष्णु, वामन अवतार, अवतार
अन्य जानकारी वामन अवतारी भगवान विष्णु राजा बलि से तीन पग भूमि का दान माँगते हैं। वामन रूप में भगवान एक पग में स्वर्गादि उर्ध्व लोकों को ओर दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लेते हैं। तीसरा पग भगवान बलि के सिर पर रखते हैं।

वामन जयंती भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है। द्वादशी तिथि के दिन मनाये जाने के कारण ही इसे 'वामन द्वादशी' भी कहा जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी शुभ तिथि को श्रवण नक्षत्र के अभिजित मुहूर्त में भगवान श्रीविष्णु के एक रूप भगवान वामन का अवतार हुआ था। इस तिथि पर मध्याह्न के समय भगवान का वामन अवतार हुआ था, उस समय श्रवण नक्षत्र था।[1] भागवत पुराण[2] में ऐसा आया है कि वामन श्रावण मास की द्वादशी पर प्रकट हुए थे, जबकि श्रवण नक्षत्र था, मुहूर्त अभिजित था तथा वह तिथि विजयद्वादशी कही जाती है।

पूजन विधि

इस दिन प्रात:काल भक्तों को श्रीहरि का स्मरण करने नियमानुसार विधि विधान के साथ पूजा कर्म करना चाहिए। भगवान वामन का पंचोपचार अथवा षोडषोपचार पूजन करने के पश्चात चावल, दही इत्यादि वस्तुओं का दान करना उत्तम माना गया है। संध्या समय व्रती भगवान वामन का पूजन करना चाहिए और व्रत कथा सुननी चाहिए तथा समस्त परिवार वालों को भगवान का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। इस दिन व्रत एवं पूजन करने से भगवान वामन प्रसन्न होते हैं और भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।

वामन जयंती कथा

वामन अवतार भगवान विष्णु का महत्त्वपूर्ण अवतार माना जाता है। भगवान की लीला अनंत है और उसी में से एक वामन अवतार है। इसके विषय में श्रीमद्भगवदपुराण में विस्तार से उल्लेख है।

देव-असुर युद्ध

वामन अवतार कथानुसार देव और दैत्यों के युद्ध में दैत्य पराजित होने लगते हैं। पराजित दैत्य मृत एवं आहतों को लेकर अस्ताचल चले जाते हैं और दूसरी ओर दैत्यराज बलि इन्द्र के वज्र से मृत हो जाते हैं। तब दैत्यगुरु शुक्राचार्य अपनी मृत संजीवनी विद्या से बलि और दूसरे दैत्य को भी जीवित एवं स्वस्थ कर देते हैं। राजा बलि के लिए शुक्राचार्य एक यज्ञ का आयोजन करते हैं तथा अग्नि से दिव्य रथ, बाण, अभेद्य कवच पाते हैं। इससे असुरों की शक्ति में वृद्धि हो जाती है और असुर सेना अमरावती पर आक्रमण करने लगती है।

विष्णु का वामन अवतार

इंद्र को राजा बलि की इच्छा का ज्ञान होता है कि राजा बलि इस सौ यज्ञ पूरे करने के बाद स्वर्ग को प्राप्त करने में सक्षम हो जाएंगे, तब इन्द्र भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं। भगवान विष्णु उनकी सहायता करने का आश्वासन देते हैं और वामन रूप में माता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैं। दैत्यराज बलि द्वारा देवों के पराभव के बाद ऋषि कश्यप के कहने से माता अदिति पयोव्रत का अनुष्ठान करती हैं, जो पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। तब विष्णु भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन माता अदिति के गर्भ से प्रकट हो अवतार लेते हैं तथा ब्रह्मचारी ब्राह्मण का रूप धारण करते हैं।

महर्षि कश्यप ऋषियों के साथ उनका उपनयन संस्कार करते हैं। वामन बटुक को महर्षि पुलह ने यज्ञोपवीत, अगस्त्य ने मृगचर्म, मरीचि ने पलाश का दण्ड, आंगिरस ने वस्त्र, सूर्य ने छत्र, भृगु ने खड़ाऊँ, गुरु देव जनेऊ तथा कमण्डल, अदिति ने कोपीन, सरस्वती ने रुद्राक्ष की माला तथा कुबेर ने भिक्षा पात्र प्रदान किए। तत्पश्चात भगवान वामन पिता से आज्ञा लेकर बलि के पास जाते हैं। उस समय राजा बलि नर्मदा के उत्तर-तट पर अन्तिम यज्ञ कर रहे होते हैं।

बलि द्वारा भूमिदान

वामन अवतारी श्रीहरि, राजा बलि के यहाँ भिक्षा माँगने पहुँच जाते हैं। ब्राह्मण बने विष्णु भिक्षा में तीन पग भूमि माँगते हैं। राजा बलि दैत्यगुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी अपने वचन पर अडिग रहते हुए, विष्णु को तीन पग भूमि दान में देने का वचन कर देते हैं। वामन रूप में भगवान एक पग में स्वर्गादि उर्ध्व लोकों को ओर दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लेते हैं। अब तीसरा पग रखने को कोई स्थान नहीं रह जाता। बलि के सामने संकट उत्पन्न हो जाता है कि वामन के तीसरा पैर रखने के लिए स्थान कहाँ से लाये। ऐसे में राजा बलि यदि अपना वचन नहीं निभाए तो अधर्म होगा। आखिरकार बलि अपना सिर भगवान के आगे कर देता है और कहता है तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ठीक वैसा ही करते हैं और बलि को पाताल लोक में रहने का आदेश करते हैं। बलि सहर्ष भवदाज्ञा को शिरोधार्य करता है। बलि के द्वारा वचन पालन करने पर भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न होते हैं और दैत्यराज बलि को वर माँगने को कहते हैं। इसके बदले में बलि रात-दिन भगवान को अपने सामने रहने का वचन माँग लेता है, श्रीविष्णु अपना वचन का पालन करते हुए पाताल लोक में राजा बलि का द्वारपाल बनना स्वीकार करते हैं।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सर्वपापमोचन; गदाधरपद्धति (कालसार, पृष्ठ 147-148); व्रतार्क (पाण्डुलिपि, 244ए से 247ए तक, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण
  2. भागवतपुराण (8, अध्याय 17-23)। अध्याय 18 (श्लोक 5-6
  3. वामन जयंती (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) समग्र उन्ननयन (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 13 जनवरी, 2013।

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