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'''भीष्म पंचक''' का [[हिन्दू धर्म]] में बड़ा ही महत्त्व है। [[पुराण|पुराणों]] तथा [[हिन्दू]] धर्मग्रंथों में [[कार्तिक माह]] में 'भीष्म पंचक' व्रत का विशेष महत्त्व कहा गया है। यह व्रत कार्तिक माह में [[शुक्ल पक्ष]] की [[एकादशी]] से आरंभ होता है तथा [[कार्तिक पूर्णिमा|पूर्णिमा]] तक चलता है। भीष्म पंचक को 'पंच भीखू' के नाम से भी जाना जाता है। धर्मग्रंथों में [[कार्तिक स्नान]] को बहुत महत्त्व दिया गया है। अत: कार्तिक स्नान करने वाले सभी लोग इस व्रत को करते हैं। [[भीष्म पितामह]] ने इस व्रत को किया था, इसलिए यह 'भीष्म पंचक' नाम से प्रसिद्ध हुआ। | '''भीष्म पंचक''' का [[हिन्दू धर्म]] में बड़ा ही महत्त्व है। [[पुराण|पुराणों]] तथा [[हिन्दू]] धर्मग्रंथों में [[कार्तिक माह]] में 'भीष्म पंचक' व्रत का विशेष महत्त्व कहा गया है। यह व्रत कार्तिक माह में [[शुक्ल पक्ष]] की [[एकादशी]] से आरंभ होता है तथा [[कार्तिक पूर्णिमा|पूर्णिमा]] तक चलता है। भीष्म पंचक को 'पंच भीखू' के नाम से भी जाना जाता है। धर्मग्रंथों में [[कार्तिक स्नान]] को बहुत महत्त्व दिया गया है। अत: कार्तिक स्नान करने वाले सभी लोग इस व्रत को करते हैं। [[भीष्म पितामह]] ने इस व्रत को किया था, इसलिए यह 'भीष्म पंचक' नाम से प्रसिद्ध हुआ। | ||
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भीष्म पंचम व्रत में चार द्वार वाला एक मण्डप बनाया जाता है। मंडप को [[गाय]] के गोबर से लीप कर मध्य में एक वेदी का निर्माण किया जाता है। वेदी पर [[तिल]] रख कर कलश स्थापित किया जाता है। इसके बाद भगवान [[वासुदेव (कृष्ण)|वासुदेव]] की [[पूजा]] की जाती है। इस व्रत में कार्तिक शुक्ल एकादशी से लेकर [[कार्तिक पूर्णिमा]] तिथि तक [[घी]] के [[दीपक]] जलाए जाते हैं। भीष्म पंचक व्रत करने वाले को पांच दिनों तक संयम एवं सात्विकता का पालन करते हुए यज्ञादि कर्म करना चाहिए। इस व्रत में [[गंगा]] पुत्र भीष्म की तृप्ति के लिए [[श्राद्ध]] और [[तर्पण (श्राद्ध)|तर्पण]] का भी विधान है। | भीष्म पंचम व्रत में चार द्वार वाला एक मण्डप बनाया जाता है। मंडप को [[गाय]] के गोबर से लीप कर मध्य में एक वेदी का निर्माण किया जाता है। वेदी पर [[तिल]] रख कर कलश स्थापित किया जाता है। इसके बाद भगवान [[वासुदेव (कृष्ण)|वासुदेव]] की [[पूजा]] की जाती है। इस व्रत में कार्तिक शुक्ल एकादशी से लेकर [[कार्तिक पूर्णिमा]] तिथि तक [[घी]] के [[दीपक]] जलाए जाते हैं। भीष्म पंचक व्रत करने वाले को पांच दिनों तक संयम एवं सात्विकता का पालन करते हुए यज्ञादि कर्म करना चाहिए। इस व्रत में [[गंगा]] पुत्र भीष्म की तृप्ति के लिए [[श्राद्ध]] और [[तर्पण (श्राद्ध)|तर्पण]] का भी विधान है। | ||
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− | पंच भीखू व्रत में एक अन्य कथा का भी उल्लेख आता है। इस कथा के अनुसार- "एक नगर में एक साहूकार था। इस साहूकार की पुत्रवधु बहुत ही संस्कारी थी। वह [[कार्तिक माह]] में बहुत [[पूजा]]-पाठ किया करती थी। कार्तिक माह में वह ब्रह्म मुहुर्त में ही [[गंगा]] में [[स्नान]] के लिए जाती थी। जिस नगर में वह रहती थी, उस नगर के राजा का बेटा भी गंगा स्नान के लिए जाता था। उसके अंदर बहुत अहंकार भरा था। वह कहता कि कोई भी व्यक्ति उससे पहले गंगा स्नान नहीं कर सकता है। जब कार्तिक स्नान के पांच दिन रहते हैं, तब साहूकार की पुत्रवधु स्नान के लिए जाती है। वह जल्दबाजी में हार भूल जाती है और वह हार राजा के लड़के को मिलता है। हार देखकर वह उस स्त्री को पाना चाहता है। इसके विषय में यह कहा गया है कि वह एक [[तोता]] रख लेता है ताकि वह उसे बता सके कि साहूकार की पुत्रवधू आई है। लेकिन साहूकार की पुत्रवधु भगवान से अपने पतिव्रता धर्म की रक्षा करने की प्रार्थना करती है।<ref name="aa"/> | + | पंच भीखू व्रत में एक अन्य [[कथा]] का भी उल्लेख आता है। इस कथा के अनुसार- "एक नगर में एक साहूकार था। इस साहूकार की पुत्रवधु बहुत ही संस्कारी थी। वह [[कार्तिक माह]] में बहुत [[पूजा]]-पाठ किया करती थी। कार्तिक माह में वह ब्रह्म मुहुर्त में ही [[गंगा]] में [[स्नान]] के लिए जाती थी। जिस नगर में वह रहती थी, उस नगर के राजा का बेटा भी गंगा स्नान के लिए जाता था। उसके अंदर बहुत अहंकार भरा था। वह कहता कि कोई भी व्यक्ति उससे पहले गंगा स्नान नहीं कर सकता है। जब [[कार्तिक स्नान]] के पांच दिन रहते हैं, तब साहूकार की पुत्रवधु स्नान के लिए जाती है। वह जल्दबाजी में हार भूल जाती है और वह हार राजा के लड़के को मिलता है। हार देखकर वह उस स्त्री को पाना चाहता है। इसके विषय में यह कहा गया है कि वह एक [[तोता]] रख लेता है ताकि वह उसे बता सके कि साहूकार की पुत्रवधू आई है। लेकिन साहूकार की पुत्रवधु भगवान से अपने पतिव्रता धर्म की रक्षा करने की प्रार्थना करती है।<ref name="aa"/> |
भगवान उसकी रक्षा करते हैं। उनकी माया से रोज रात में साहूकार के बेटे को नींद आ जाती। वह सुबह सो कर उठा और तोते से पूछता है, तब वह कहता है कि वह स्नान करने आई थी। पांच दिन स्नान करने के बाद साहूकार की पुत्रवधु तोते से कहती है कि "मैं पांच दिन तक स्नान कर चुकी हूं, तुम अपने स्वामी से मेरा हार लौटाने को कह देना"। राजा के पुत्र को समझ आया कि वह स्त्री कितनी श्रद्धालु है। कुछ समय बाद ही राजा के पुत्र को कोढ़ हो जाता है। राजा को जब कोढ़ होने का कारण पता चलता है, तब वह इसके निवारण का उपाय ब्राह्मणों से पूछता है। ब्राह्मण कहते हैं कि यह साहूकार की पुत्रवधु को अपनी बहन बनाए और उसके नहाए हुए पानी से स्नान करे, तब यह ठीक हो सकता है। राजा की प्रार्थना को साहूकार की पुत्रवधु स्वीकार कर लेती है और राजा का पुत्र ठीक हो जाता है। | भगवान उसकी रक्षा करते हैं। उनकी माया से रोज रात में साहूकार के बेटे को नींद आ जाती। वह सुबह सो कर उठा और तोते से पूछता है, तब वह कहता है कि वह स्नान करने आई थी। पांच दिन स्नान करने के बाद साहूकार की पुत्रवधु तोते से कहती है कि "मैं पांच दिन तक स्नान कर चुकी हूं, तुम अपने स्वामी से मेरा हार लौटाने को कह देना"। राजा के पुत्र को समझ आया कि वह स्त्री कितनी श्रद्धालु है। कुछ समय बाद ही राजा के पुत्र को कोढ़ हो जाता है। राजा को जब कोढ़ होने का कारण पता चलता है, तब वह इसके निवारण का उपाय ब्राह्मणों से पूछता है। ब्राह्मण कहते हैं कि यह साहूकार की पुत्रवधु को अपनी बहन बनाए और उसके नहाए हुए पानी से स्नान करे, तब यह ठीक हो सकता है। राजा की प्रार्थना को साहूकार की पुत्रवधु स्वीकार कर लेती है और राजा का पुत्र ठीक हो जाता है। | ||
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− | भीष्म पंचक व्रत अति मंगलकारी और पुण्यदायी है। जो कोई भी श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करता है, उसे मृत्यु | + | भीष्म पंचक व्रत अति मंगलकारी और पुण्यदायी है। जो कोई भी श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करता है, उसे मृत्यु पश्चात् उत्तम गति प्राप्त होती है। यह व्रत पूर्व संचित पाप कर्मों से मुक्ति प्रदान करने वाला और कल्याणकारी है। जो भी यह व्रत रखता है, वह सदैव स्वस्थ रहता है तथा उसे प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।<ref name="aa"/> |
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05:26, 31 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
भीष्म पंचक
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अन्य नाम | पंच भीखू |
अनुयायी | हिन्दू |
तिथि | यह व्रत कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरंभ होता है तथा पूर्णिमा तक चलता है। |
धार्मिक मान्यता | 'भीष्म पंचक' व्रत अति मंगलकारी और पुण्यदायी है। जो कोई भी श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करता है, उसे मृत्यु पश्चात् उत्तम गति प्राप्त होती है। |
विशेष | इस व्रत में गंगा पुत्र भीष्म की तृप्ति के लिए श्राद्ध और तर्पण का भी विधान है। |
अन्य जानकारी | कार्तिक स्नान करने वाले सभी लोग इस व्रत को करते हैं। भीष्म पितामह ने इस व्रत को किया था, इसलिए यह 'भीष्म पंचक' नाम से प्रसिद्ध हुआ। |
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भीष्म पंचक का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। पुराणों तथा हिन्दू धर्मग्रंथों में कार्तिक माह में 'भीष्म पंचक' व्रत का विशेष महत्त्व कहा गया है। यह व्रत कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरंभ होता है तथा पूर्णिमा तक चलता है। भीष्म पंचक को 'पंच भीखू' के नाम से भी जाना जाता है। धर्मग्रंथों में कार्तिक स्नान को बहुत महत्त्व दिया गया है। अत: कार्तिक स्नान करने वाले सभी लोग इस व्रत को करते हैं। भीष्म पितामह ने इस व्रत को किया था, इसलिए यह 'भीष्म पंचक' नाम से प्रसिद्ध हुआ।
कथा
जब महाभारत युद्ध के बाद पाण्डवों की जीत हो गयी, तब श्रीकृष्ण पाण्डवों को भीष्म पितामह के पास ले गये और उनसे अनुरोध किया कि वह पाण्डवों को ज्ञान प्रदान करें। शर सैय्या पर लेटे हुए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतिक्षा कर रहे भीष्म ने कृष्ण के अनुरोध पर कृष्ण सहित पाण्डवों को राज धर्म, वर्ण धर्म एवं मोक्ष धर्म का ज्ञान दिया। भीष्म द्वारा ज्ञान देने का क्रम एकादशी से लेकर पूर्णिमा तिथि यानि पांच दिनों तक चलता रहा। भीष्म ने जब पूरा ज्ञान दे दिया, तब श्रीकृष्ण ने कहा कि "आपने जो पांच दिनों में ज्ञान दिया है, यह पांच दिन आज से अति मंगलकारी हो गए हैं। इन पांच दिनों को भविष्य में 'भीष्म पंचक' के नाम से जाना जाएगा।"[1]
व्रत पूजा विधि
भीष्म पंचम व्रत में चार द्वार वाला एक मण्डप बनाया जाता है। मंडप को गाय के गोबर से लीप कर मध्य में एक वेदी का निर्माण किया जाता है। वेदी पर तिल रख कर कलश स्थापित किया जाता है। इसके बाद भगवान वासुदेव की पूजा की जाती है। इस व्रत में कार्तिक शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तिथि तक घी के दीपक जलाए जाते हैं। भीष्म पंचक व्रत करने वाले को पांच दिनों तक संयम एवं सात्विकता का पालन करते हुए यज्ञादि कर्म करना चाहिए। इस व्रत में गंगा पुत्र भीष्म की तृप्ति के लिए श्राद्ध और तर्पण का भी विधान है।
पंच भीखू कथा
पंच भीखू व्रत में एक अन्य कथा का भी उल्लेख आता है। इस कथा के अनुसार- "एक नगर में एक साहूकार था। इस साहूकार की पुत्रवधु बहुत ही संस्कारी थी। वह कार्तिक माह में बहुत पूजा-पाठ किया करती थी। कार्तिक माह में वह ब्रह्म मुहुर्त में ही गंगा में स्नान के लिए जाती थी। जिस नगर में वह रहती थी, उस नगर के राजा का बेटा भी गंगा स्नान के लिए जाता था। उसके अंदर बहुत अहंकार भरा था। वह कहता कि कोई भी व्यक्ति उससे पहले गंगा स्नान नहीं कर सकता है। जब कार्तिक स्नान के पांच दिन रहते हैं, तब साहूकार की पुत्रवधु स्नान के लिए जाती है। वह जल्दबाजी में हार भूल जाती है और वह हार राजा के लड़के को मिलता है। हार देखकर वह उस स्त्री को पाना चाहता है। इसके विषय में यह कहा गया है कि वह एक तोता रख लेता है ताकि वह उसे बता सके कि साहूकार की पुत्रवधू आई है। लेकिन साहूकार की पुत्रवधु भगवान से अपने पतिव्रता धर्म की रक्षा करने की प्रार्थना करती है।[1]
भगवान उसकी रक्षा करते हैं। उनकी माया से रोज रात में साहूकार के बेटे को नींद आ जाती। वह सुबह सो कर उठा और तोते से पूछता है, तब वह कहता है कि वह स्नान करने आई थी। पांच दिन स्नान करने के बाद साहूकार की पुत्रवधु तोते से कहती है कि "मैं पांच दिन तक स्नान कर चुकी हूं, तुम अपने स्वामी से मेरा हार लौटाने को कह देना"। राजा के पुत्र को समझ आया कि वह स्त्री कितनी श्रद्धालु है। कुछ समय बाद ही राजा के पुत्र को कोढ़ हो जाता है। राजा को जब कोढ़ होने का कारण पता चलता है, तब वह इसके निवारण का उपाय ब्राह्मणों से पूछता है। ब्राह्मण कहते हैं कि यह साहूकार की पुत्रवधु को अपनी बहन बनाए और उसके नहाए हुए पानी से स्नान करे, तब यह ठीक हो सकता है। राजा की प्रार्थना को साहूकार की पुत्रवधु स्वीकार कर लेती है और राजा का पुत्र ठीक हो जाता है।
महत्त्व
भीष्म पंचक व्रत अति मंगलकारी और पुण्यदायी है। जो कोई भी श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करता है, उसे मृत्यु पश्चात् उत्तम गति प्राप्त होती है। यह व्रत पूर्व संचित पाप कर्मों से मुक्ति प्रदान करने वाला और कल्याणकारी है। जो भी यह व्रत रखता है, वह सदैव स्वस्थ रहता है तथा उसे प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 भीष्म पंचक (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 03 मई, 2014।
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