"पद्मिनी एकादशी" के अवतरणों में अंतर

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'''पद्मिनी एकादशी / कमला एकादशी'''<br />
 
'''पद्मिनी एकादशी / कमला एकादशी'''<br />
[[अधिक मास]] या पुरुषोत्तम मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी कहते हैं। इसे कमला एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन [[राधा]]-[[कृष्ण]] और [[शिव]]-[[पार्वती देवी|पार्वती]] की [[पूजा]] की जाती है। अन्य एकादशियों के समान ही इस वृत के विधि विधान हैं। इस वृत में दान का विशिष्ट महत्त्व है। इस दिन कांसे के पात्र में भोजन, मसूर की [[दाल]], [[चना]], कांदी, शहद, शाक, पराया अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। इस दिन नमक का प्रयोग भी न करें तथा कंदमूल फलादि का भोजन करें। अधिक मास की एकादशी अनेक पुण्यों को देने वाली है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को जाता है। यह अनेक पापों को नष्ट करने वाली तथा मुक्ति और भक्ति प्रदान करने वाली है। इसके फल व गुणों को ध्यानपूर्वक सुनो: दशमी के दिन व्रत शुरू करना चाहिए। एकादशी के दिन प्रात: नित्यक्रिया से निवृत्त होकर [[पुण्य]] क्षेत्र में स्नान करने चले जाना चाहिए। उस समय गोबर, मृत्तिका, तिल, कुश तथा आमलकी चूर्ण से विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। स्नान करने से पहले शरीर में मिट्टी लगाते हुए उसी से प्रार्थना करनी चाहिए:- ‘हे मृत्तिके! मैं तुमको नमस्कार करता हूँ। तुम्हारे स्पर्श से मेरा शरीर पवित्र हो। समस्त औषधियों से पैदा हुई और पृथ्वी को पवित्र करनेवाली, तुम मुझे शुद्ध करो। ब्रह्मा के थूक से पैदा होनेवाली! तुम मेरे शरीर को छूकर मुझे पवित्र करो। हे शंख चक्र गदाधारी देवों के देव! जगन्नाथ! आप मुझे स्नान के लिए आज्ञा दीजिये।
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'''पद्मिनी एकादशी''' [[अधिक मास]] या पुरुषोत्तम मास के [[शुक्ल पक्ष]] की [[एकादशी]] को कहते हैं। इसे 'कमला एकादशी' भी कहा जाता है। इस दिन [[राधा]]-[[कृष्ण]] और [[शिव]]-[[पार्वती देवी|पार्वती]] की [[पूजा]] की जाती है। अन्य एकादशियों के समान ही इस वृत के विधि विधान हैं। इस वृत में दान का विशिष्ट महत्त्व है। इस दिन कांसे के पात्र में भोजन, मसूर की [[दाल]], [[चना]], कांदी, [[शहद]], शाक, पराया अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। इस दिन [[नमक]] का प्रयोग भी न करें तथा कंदमूल फलादि का भोजन करें।
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==व्रत विधि==
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अधिक मास की एकादशी अनेक पुण्यों को देने वाली है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को जाता है। यह अनेक पापों को नष्ट करने वाली तथा मुक्ति और भक्ति प्रदान करने वाली है। इसके फल व गुणों को ध्यानपूर्वक सुनो: दशमी के दिन व्रत शुरू करना चाहिए। एकादशी के दिन प्रात: नित्यक्रिया से निवृत्त होकर [[पुण्य]] क्षेत्र में स्नान करने चले जाना चाहिए। उस समय गोबर, मृत्तिका, [[तिल]], कुश तथा आमलकी चूर्ण से विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। स्नान करने से पहले शरीर में [[मिट्टी]] लगाते हुए उसी से प्रार्थना करनी चाहिए:-
  
इसके उपरान्त वरुण मंत्र को जपकर पवित्र तीर्थों के अभाव में उनका स्मरण करते हुए किसी तालाब में स्नान करना चाहिए। स्नान करने के पश्चात् स्वच्छ और सुन्दर वस्त्र धारण करके संध्या, तर्पण करके मंदिर में जाकर भगवान की धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, केसर आदि से पूजा करनी चाहिए। उसके उपरान्त भगवान के सम्मुख नृत्य गान आदि करें। भक्तजनों के साथ भगवान के सामने [[पुराण]] की कथा सुननी चाहिए। अधिक मास की शुक्लपक्ष की 'पद्मिनी एकादशी' का व्रत निर्जल करना चाहिए। यदि मनुष्य में निर्जल रहने की शक्ति न हो तो उसे जल पान या अल्पाहार से व्रत करना चाहिए। रात्रि में जागरण करके नाच और गान करके भगवान का स्मरण करते रहना चाहिए। प्रति पहर मनुष्य को भगवान या महादेवजी की पूजा करनी चाहिए।
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‘हे मृत्तिके! मैं तुमको नमस्कार करता हूँ। तुम्हारे स्पर्श से मेरा शरीर पवित्र हो। समस्त औषधियों से पैदा हुई और पृथ्वी को पवित्र करने वाली, तुम मुझे शुद्ध करो। [[ब्रह्मा]] के थूक से पैदा होने वाली! तुम मेरे शरीर को छूकर मुझे पवित्र करो। हे शंख, चक्र गदाधारी देवों के देव! जगन्नाथ! आप मुझे स्नान के लिए आज्ञा दीजिये।'
  
पहले पहर में भगवान को नारियल, दूसरे में बिल्वफल, तीसरे में सीताफल और चौथे में सुपारी, नारंगी अर्पण करना चाहिए । इससे पहले पहर में अग्नि होम का, दूसरे में [[वाजपेय|वाजपेय यज्ञ]] का, तीसरे में [[अश्वमेध यज्ञ]] का और चौथे में [[राजसूय यज्ञ]] का फल मिलता है। इस व्रत से बढ़कर संसार में कोई [[यज्ञ]], तप, दान या पुण्य नहीं है। एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य को समस्त तीर्थों और यज्ञों का फल मिल जाता है। इस तरह से सूर्योदय तक जागरण करना चाहिए और स्नान करके ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए। इस प्रकार जो मनुष्य विधिपूर्वक भगवान की पूजा तथा व्रत करते हैं, उनका जन्म सफल होता है और वे इस लोक में अनेक सुखों को भोगकर अन्त में भगवान [[विष्णु]] के परम धाम को जाते हैं।  
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इसके उपरान्त वरुण मंत्र को जपकर पवित्र तीर्थों के अभाव में उनका स्मरण करते हुए किसी तालाब में [[स्नान]] करना चाहिए। स्नान करने के पश्चात् स्वच्छ और सुन्दर वस्त्र धारण करके संध्या, तर्पण करके मंदिर में जाकर भगवान की [[धूप]], दीप, नैवेद्य, [[पुष्प]], केसर आदि से पूजा करनी चाहिए। उसके उपरान्त भगवान के सम्मुख नृत्य गान आदि करें। भक्तजनों के साथ भगवान के सामने [[पुराण]] की [[कथा]] सुननी चाहिए। [[अधिक मास]] की शुक्ल पक्ष की 'पद्मिनी एकादशी' का व्रत निर्जल करना चाहिए। यदि मनुष्य में निर्जल रहने की शक्ति न हो तो उसे जल पान या अल्पाहार से व्रत करना चाहिए। रात्रि में जागरण करके नाच और गान करके भगवान का स्मरण करते रहना चाहिए। प्रति पहर मनुष्य को [[शिव|महादेव जी]] की पूजा करनी चाहिए।
====कथा====
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==परमधाम की प्राप्ति==
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पहले पहर में भगवान को [[नारियल]], दूसरे में बिल्वफल, तीसरे में सीताफल और चौथे में सुपारी, नारंगी अर्पण करना चाहिए। इससे पहले पहर में अग्नि होम का, दूसरे में [[वाजपेय|वाजपेय यज्ञ]] का, तीसरे में [[अश्वमेध यज्ञ]] का और चौथे में [[राजसूय यज्ञ]] का फल मिलता है। इस व्रत से बढ़कर संसार में कोई [[यज्ञ]], तप, दान या पुण्य नहीं है। [[एकादशी]] का व्रत करने वाले मनुष्य को समस्त तीर्थों और यज्ञों का फल मिल जाता है। इस तरह से सूर्योदय तक जागरण करना चाहिए और स्नान करके ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए। इस प्रकार जो मनुष्य विधिपूर्वक भगवान की पूजा तथा व्रत करते हैं, उनका जन्म सफल होता है और वे इस लोक में अनेक सुखों को भोगकर अन्त में [[विष्णु|भगवान विष्णु]] के परमधाम को जाते हैं।  
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==कथा==
 
प्राचीन काल में महिष्मती नगरी में कृतवीर्य नामक राजा राज्य करता था। उसकी अनेक रानियां थीं। उसने अनेक व्रत-उपवास और यज्ञ किए पर कोई लाभ न हुआ। इससे दुखी हो राजा वन में जाकर तपस्या करने लगा। दस हज़ार वर्ष तप करते हुए बीत गए, परन्तु भगवान प्रसन्न न हुए। तब एक दिन उसकी एक रानी प्रमदा ने [[अत्रि]] की पत्नी महासती [[अनुसूया]]जी की सेवा कर उनसे पुत्र प्राप्ति का उपाय पूछा। उन्होंने उसे पद्मिनी एकादशी का विधान से व्रत करने को कहा। जिसे करने से भगवान राजा के सामने प्रकट हुए और उसे प्रसन्न होकर वरदान दिया-'तेरे सर्वश्रेष्ठ, सर्व विजयी,  देवदानवादि से अजय,सहस्त्र भुजा वाला पुत्र उत्पन्न होगा।'
 
प्राचीन काल में महिष्मती नगरी में कृतवीर्य नामक राजा राज्य करता था। उसकी अनेक रानियां थीं। उसने अनेक व्रत-उपवास और यज्ञ किए पर कोई लाभ न हुआ। इससे दुखी हो राजा वन में जाकर तपस्या करने लगा। दस हज़ार वर्ष तप करते हुए बीत गए, परन्तु भगवान प्रसन्न न हुए। तब एक दिन उसकी एक रानी प्रमदा ने [[अत्रि]] की पत्नी महासती [[अनुसूया]]जी की सेवा कर उनसे पुत्र प्राप्ति का उपाय पूछा। उन्होंने उसे पद्मिनी एकादशी का विधान से व्रत करने को कहा। जिसे करने से भगवान राजा के सामने प्रकट हुए और उसे प्रसन्न होकर वरदान दिया-'तेरे सर्वश्रेष्ठ, सर्व विजयी,  देवदानवादि से अजय,सहस्त्र भुजा वाला पुत्र उत्पन्न होगा।'
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इस व्रत के प्रभाव से उनके घर में एक प्रपाति पुत्र हुआ। जिसने तीनों लोकों के विजेता [[रावण]] को हराकर बंदी बना लिया तथा उसे बाँधकर अपने घुड़साल के स्थान पर रखा और घर में रावण के दस मस्तकों पर दस दीपक जलाकर उसे खड़ा रखा।
 
इस व्रत के प्रभाव से उनके घर में एक प्रपाति पुत्र हुआ। जिसने तीनों लोकों के विजेता [[रावण]] को हराकर बंदी बना लिया तथा उसे बाँधकर अपने घुड़साल के स्थान पर रखा और घर में रावण के दस मस्तकों पर दस दीपक जलाकर उसे खड़ा रखा।
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Disamb2.jpg पद्मिनी एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- पद्मिनी (बहुविकल्पी)
पद्मिनी एकादशी
लक्ष्मी तथा विष्णु
विवरण अधिक मास श्रीकृष्ण और श्रीविष्णु के भक्तों के लिए किसी बड़े पर्व की तरह होता है। इस मास में पड़ने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को 'पद्मिनी एकादशी' कहते हैं।
माह अधिक मास या पुरुषोत्तम मास
तिथि शुक्ल पक्ष, एकादशी
देवी-देवता राधा-कृष्ण और शिव-पार्वती
महत्त्व पद्मिनी एकादशी भगवान विष्णु को अति प्रिय है। इस व्रत का विधिपूर्वक पालन करने वाला विष्णुलोक को जाता है। व्रत के पालन से व्यक्ति सभी प्रकार के यज्ञों, व्रतों एवं तपस्चर्या का फल प्राप्त कर लेता है।
अन्य जानकारी इस एकादशी के दिन व्रती को शरीर की क्षमता के अनुसार निराजल या फलाहार व्रत करना चाहिए। इस दिन अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए।

पद्मिनी एकादशी / कमला एकादशी
पद्मिनी एकादशी अधिक मास या पुरुषोत्तम मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं। इसे 'कमला एकादशी' भी कहा जाता है। इस दिन राधा-कृष्ण और शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। अन्य एकादशियों के समान ही इस वृत के विधि विधान हैं। इस वृत में दान का विशिष्ट महत्त्व है। इस दिन कांसे के पात्र में भोजन, मसूर की दाल, चना, कांदी, शहद, शाक, पराया अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। इस दिन नमक का प्रयोग भी न करें तथा कंदमूल फलादि का भोजन करें।

व्रत विधि

अधिक मास की एकादशी अनेक पुण्यों को देने वाली है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को जाता है। यह अनेक पापों को नष्ट करने वाली तथा मुक्ति और भक्ति प्रदान करने वाली है। इसके फल व गुणों को ध्यानपूर्वक सुनो: दशमी के दिन व्रत शुरू करना चाहिए। एकादशी के दिन प्रात: नित्यक्रिया से निवृत्त होकर पुण्य क्षेत्र में स्नान करने चले जाना चाहिए। उस समय गोबर, मृत्तिका, तिल, कुश तथा आमलकी चूर्ण से विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। स्नान करने से पहले शरीर में मिट्टी लगाते हुए उसी से प्रार्थना करनी चाहिए:-

‘हे मृत्तिके! मैं तुमको नमस्कार करता हूँ। तुम्हारे स्पर्श से मेरा शरीर पवित्र हो। समस्त औषधियों से पैदा हुई और पृथ्वी को पवित्र करने वाली, तुम मुझे शुद्ध करो। ब्रह्मा के थूक से पैदा होने वाली! तुम मेरे शरीर को छूकर मुझे पवित्र करो। हे शंख, चक्र गदाधारी देवों के देव! जगन्नाथ! आप मुझे स्नान के लिए आज्ञा दीजिये।'

इसके उपरान्त वरुण मंत्र को जपकर पवित्र तीर्थों के अभाव में उनका स्मरण करते हुए किसी तालाब में स्नान करना चाहिए। स्नान करने के पश्चात् स्वच्छ और सुन्दर वस्त्र धारण करके संध्या, तर्पण करके मंदिर में जाकर भगवान की धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, केसर आदि से पूजा करनी चाहिए। उसके उपरान्त भगवान के सम्मुख नृत्य गान आदि करें। भक्तजनों के साथ भगवान के सामने पुराण की कथा सुननी चाहिए। अधिक मास की शुक्ल पक्ष की 'पद्मिनी एकादशी' का व्रत निर्जल करना चाहिए। यदि मनुष्य में निर्जल रहने की शक्ति न हो तो उसे जल पान या अल्पाहार से व्रत करना चाहिए। रात्रि में जागरण करके नाच और गान करके भगवान का स्मरण करते रहना चाहिए। प्रति पहर मनुष्य को महादेव जी की पूजा करनी चाहिए।

परमधाम की प्राप्ति

पहले पहर में भगवान को नारियल, दूसरे में बिल्वफल, तीसरे में सीताफल और चौथे में सुपारी, नारंगी अर्पण करना चाहिए। इससे पहले पहर में अग्नि होम का, दूसरे में वाजपेय यज्ञ का, तीसरे में अश्वमेध यज्ञ का और चौथे में राजसूय यज्ञ का फल मिलता है। इस व्रत से बढ़कर संसार में कोई यज्ञ, तप, दान या पुण्य नहीं है। एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य को समस्त तीर्थों और यज्ञों का फल मिल जाता है। इस तरह से सूर्योदय तक जागरण करना चाहिए और स्नान करके ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए। इस प्रकार जो मनुष्य विधिपूर्वक भगवान की पूजा तथा व्रत करते हैं, उनका जन्म सफल होता है और वे इस लोक में अनेक सुखों को भोगकर अन्त में भगवान विष्णु के परमधाम को जाते हैं।

कथा

प्राचीन काल में महिष्मती नगरी में कृतवीर्य नामक राजा राज्य करता था। उसकी अनेक रानियां थीं। उसने अनेक व्रत-उपवास और यज्ञ किए पर कोई लाभ न हुआ। इससे दुखी हो राजा वन में जाकर तपस्या करने लगा। दस हज़ार वर्ष तप करते हुए बीत गए, परन्तु भगवान प्रसन्न न हुए। तब एक दिन उसकी एक रानी प्रमदा ने अत्रि की पत्नी महासती अनुसूयाजी की सेवा कर उनसे पुत्र प्राप्ति का उपाय पूछा। उन्होंने उसे पद्मिनी एकादशी का विधान से व्रत करने को कहा। जिसे करने से भगवान राजा के सामने प्रकट हुए और उसे प्रसन्न होकर वरदान दिया-'तेरे सर्वश्रेष्ठ, सर्व विजयी, देवदानवादि से अजय,सहस्त्र भुजा वाला पुत्र उत्पन्न होगा।'


इस व्रत के प्रभाव से उनके घर में एक प्रपाति पुत्र हुआ। जिसने तीनों लोकों के विजेता रावण को हराकर बंदी बना लिया तथा उसे बाँधकर अपने घुड़साल के स्थान पर रखा और घर में रावण के दस मस्तकों पर दस दीपक जलाकर उसे खड़ा रखा।


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