दोलोत्सव

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दोलोत्सव भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।

  • पद्म पुराण[1] जिसमें आया है कि कलियुग में फाल्गुन चतुर्दशी पर आठवें प्रहर में या पूर्णिमा तथा प्रथमा के योग पर दोलोत्सव 3 दिनों या 5 दिनों तक किया जाता है।
  • पालने में झूलते हुए कृष्ण को दक्षिणामुख हो एक बार देख लेने से पापों के भार से मुक्ति मिल जाती है।
  • पद्मपुराण[2] में विष्णु का दोलोत्सव भी वर्णित है।
  • चैत्र शुक्ल तृतीया पर गौरी का तथा[3] राम का दोलोत्सव[4] होता है।
  • कृष्ण का दोलोत्सव चैत्र शुक्ल एकादशी[5] पर होता है।
  • गायत्री के समान मन्त्र यह है—'ओं दोलारूढाय विद्महे माधवाय च धीमहि। तन्नो देवः प्रचोदयात्।।'
  • आज भी मथुरा-वृन्दावन, अयोध्या, द्वारका, डाकोर आदि में कृष्ण का दोलोत्सव मनाया जाता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पद्मपुराण 4|80|45-50
  2. पद्मपुराण 6|85
  3. पुरुषचिन्तामणि 85, व्रतराज 84
  4. समयमयूख 35
  5. पद्मपुराण 6|85

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