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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक [[व्रत]] संस्कार है।  
*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक [[व्रत]] संस्कार है।  
*किसी भी शुभ दिन; यह प्रकीर्णन है; ब्रह्माण्ड की एक स्वर्ण प्रतिमा; तीन दिनों तक तिल का दान; अग्नि की पूजा तथा किसी गृहस्थ एवं उसकी पत्नी को प्रतिमा एवं तिल का दान;  
*किसी भी शुभ दिन; यह प्रकीर्णन है; ब्रह्माण्ड की एक स्वर्ण प्रतिमा; तीन दिनों तक तिल का दान; अग्नि की पूजा तथा किसी गृहस्थ एवं उसकी पत्नी को प्रतिमा एवं तिल का दान;  
*कर्ता [[ब्रह्मलोक]] में पहुँच जाता है और पुनः जन्म नहीं लेता है। <ref>कृत्यकल्पतरु (व्रत0, 445-446, 27वाँ षष्टिव्रत)</ref> <ref>हेमाद्रि (व्रत0 2, 886, पद्मपुराण से उद्धरण)</ref>। <ref>मत्स्यपुराण (101-46-48)</ref>;  
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*[[द्वितीया]] को ब्रह्मचारी (वैदिक छात्र) का भोजन से सम्मान; ब्रह्म प्रतिमा का निर्माण उसे [[कमल]] दल पर रखकर गंध आदि से पूजा की जाती हैं।  
*[[द्वितीया]] को ब्रह्मचारी (वैदिक छात्र) का भोजन से सम्मान; ब्रह्म प्रतिमा का निर्माण उसे [[कमल]] दल पर रखकर गंध आदि से पूजा की जाती हैं।  
*घी एवं समिधा से होम करना चाहिए <ref>हेमाद्रि (व्रत0 1, 377, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण)</ref>।  
*घी एवं समिधा से होम करना चाहिए <ref>हेमाद्रि (व्रत0 1, 377, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण</ref>।  
 
 



12:54, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • किसी भी शुभ दिन; यह प्रकीर्णन है; ब्रह्माण्ड की एक स्वर्ण प्रतिमा; तीन दिनों तक तिल का दान; अग्नि की पूजा तथा किसी गृहस्थ एवं उसकी पत्नी को प्रतिमा एवं तिल का दान;
  • कर्ता ब्रह्मलोक में पहुँच जाता है और पुनः जन्म नहीं लेता है। [1] [2][3];
  • द्वितीया को ब्रह्मचारी (वैदिक छात्र) का भोजन से सम्मान; ब्रह्म प्रतिमा का निर्माण उसे कमल दल पर रखकर गंध आदि से पूजा की जाती हैं।
  • घी एवं समिधा से होम करना चाहिए [4]

 


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कृत्यकल्पतरु (व्रत0, 445-446, 27वाँ षष्टिव्रत
  2. हेमाद्रि (व्रत0 2, 886, पद्मपुराण से उद्धरण
  3. मत्स्यपुराण (101-46-48
  4. हेमाद्रि (व्रत0 1, 377, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण

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