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*उन्होंने अलर्क को योग का सिद्धान्त बतलाया।<ref>(ब्रह्मपुराण 213|106-112; [[मार्कण्डेय पु्राण]] 16|14; ब्रह्माण्ड पुराण 3|8|84)</ref> | *उन्होंने [[अलर्क]] को योग का सिद्धान्त बतलाया।<ref>(ब्रह्मपुराण 213|106-112; [[मार्कण्डेय पु्राण]] 16|14; ब्रह्माण्ड पुराण 3|8|84)</ref> | ||
*वे सह्य की घाटियों में रहते थे, अवधूत कहलाते थे, वे मद्य का पान करते थे और स्त्रियों की संगति चाहते थे।<ref>देखिए [[पद्म पुराण]] (2|103|110-112) एवं मार्कण्डेयपुराण (16|132-134)</ref> | *वे सह्य की घाटियों में रहते थे, अवधूत कहलाते थे, वे मद्य का पान करते थे और स्त्रियों की संगति चाहते थे।<ref>देखिए [[पद्म पुराण]] (2|103|110-112) एवं मार्कण्डेयपुराण (16|132-134)</ref> | ||
*तमिल पंचांगों में प्रकट होता है कि दत्तात्रेय-जयन्ती तमिल में भी मनायी जाती है। | *तमिल पंचांगों में प्रकट होता है कि दत्तात्रेय-जयन्ती तमिल में भी मनायी जाती है। |
13:12, 3 जुलाई 2011 का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- मार्गशीर्ष की पूर्णमासी पर यह व्रत होता है।
- अत्रि की पत्नी अनसूया ने उन्हें 'दत्त' नाम दिया (क्योंकि देवों के पुत्र के रूप में उन्हें दिया था) तथा वे अत्रि के पुत्र थे। अतः उनका नाम दत्तात्रेय पड़ा।[1]
- दत्त-भक्ति का प्रचलन अधिकतर महाराष्ट्र में है और इससे सम्बन्धित स्थान, यथा—औदुम्बर, गणगापुर, नर्सोबावाड़ी महाराष्ट्र में अवस्थित हैं।
- दत्तात्रेय ने कार्तवीर्य को वर दिये।[2]
- वे विष्णु के अवतार थे।
- उन्होंने अलर्क को योग का सिद्धान्त बतलाया।[3]
- वे सह्य की घाटियों में रहते थे, अवधूत कहलाते थे, वे मद्य का पान करते थे और स्त्रियों की संगति चाहते थे।[4]
- तमिल पंचांगों में प्रकट होता है कि दत्तात्रेय-जयन्ती तमिल में भी मनायी जाती है।
अन्य संबंधित लिंक
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ निर्णयसिन्धु (210); स्मृतिकौस्तुभ (430), वर्षक्रियादीपक (107-108)
- ↑ (वनपर्व 115, 12; ब्रह्म पुराण, 13|160-185; मत्स्य पुराण 43|15-16)
- ↑ (ब्रह्मपुराण 213|106-112; मार्कण्डेय पु्राण 16|14; ब्रह्माण्ड पुराण 3|8|84)
- ↑ देखिए पद्म पुराण (2|103|110-112) एवं मार्कण्डेयपुराण (16|132-134)