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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।  
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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।  
 
*सौरत्रिविक्रम व्रत मासव्रत है।
 
*सौरत्रिविक्रम व्रत मासव्रत है।
 
*सौरत्रिविक्रम व्रत के [[देवता]] [[सूर्य देव|सूर्य]] हैं।
 
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*सौरत्रिविक्रम व्रत एकभक्त होकर तथा एक [[ब्राह्मण]] को रात्रिकाल का भोजन दान देना चाहिए।
 
*सौरत्रिविक्रम व्रत एकभक्त होकर तथा एक [[ब्राह्मण]] को रात्रिकाल का भोजन दान देना चाहिए।
 
*यही विधि [[मार्गशीर्ष]] एवं [[पौष]] में सूर्य की पूजा [[विभाकर]] एवं [[दिवाकर]] के रूप में की जाती है।
 
*यही विधि [[मार्गशीर्ष]] एवं [[पौष]] में सूर्य की पूजा [[विभाकर]] एवं [[दिवाकर]] के रूप में की जाती है।
*[[युवावस्था]] तथा [[मध्यावस्था]] में किये गये पाप तथा यहाँ तक की महापाप भी कट जाते हैं।
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*युवावस्था तथा मध्यावस्था में किये गये पाप तथा यहाँ तक की महापाप भी कट जाते हैं।
*इसे '[[त्रिविक्रम]]' इसलिए कहा जाता है कि सूर्य के तीन नाम व्यक्ति को तीन मासों या तीन वर्षों में मुक्ति देते हैं।<ref>हेमाद्रि (व्रत खण्ड 2, 853, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण)</ref>
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*इसे '[[त्रिविक्रम]]' इसलिए कहा जाता है कि सूर्य के तीन नाम व्यक्ति को तीन मासों या तीन वर्षों में मुक्ति देते हैं।<ref>हेमाद्रि (व्रत खण्ड 2, 853, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण</ref>
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12:58, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • सौरत्रिविक्रम व्रत मासव्रत है।
  • सौरत्रिविक्रम व्रत के देवता सूर्य हैं।
  • सौरत्रिविक्रम व्रत तीन मासों या तीन वर्षों तक किया जाता है।
  • कार्तिक में जगन्नाथ या सूर्य की पूजा की जाती है।
  • सौरत्रिविक्रम व्रत एकभक्त होकर तथा एक ब्राह्मण को रात्रिकाल का भोजन दान देना चाहिए।
  • यही विधि मार्गशीर्ष एवं पौष में सूर्य की पूजा विभाकर एवं दिवाकर के रूप में की जाती है।
  • युवावस्था तथा मध्यावस्था में किये गये पाप तथा यहाँ तक की महापाप भी कट जाते हैं।
  • इसे 'त्रिविक्रम' इसलिए कहा जाता है कि सूर्य के तीन नाम व्यक्ति को तीन मासों या तीन वर्षों में मुक्ति देते हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रत खण्ड 2, 853, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण

संबंधित लेख

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