"मृगशीर्ष व्रत" के अवतरणों में अंतर

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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।  
 
*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।  
 
*[[श्रावण माह|श्रावण]] के [[शुक्ल पक्ष]] की [[प्रतिपदा]] पर [[शिव]] ने तीन फलकों के एक बाण से हरिण का रूप धारण किये हुए [[यज्ञ]] के तीन मुखों को भेदा था।  
 
*[[श्रावण माह|श्रावण]] के [[शुक्ल पक्ष]] की [[प्रतिपदा]] पर [[शिव]] ने तीन फलकों के एक बाण से हरिण का रूप धारण किये हुए [[यज्ञ]] के तीन मुखों को भेदा था।  
*कर्ता को मिट्टी से मृगशीर्ष की प्रतिमा बना कर तरकारियों एवं सरसों से युक्त आटे के विभिन्न नैवेद्य से पूजा करनी चाहिए<ref> हेमाद्रि (व्रत0 1, 358-359)</ref>; <ref>स्मृतिकौस्तुभ (146)</ref>
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*कर्ता को मिट्टी से मृगशीर्ष की प्रतिमा बना कर तरकारियों एवं सरसों से युक्त आटे के विभिन्न नैवेद्य से पूजा करनी चाहिए।<ref> हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 358-359)</ref>; <ref>स्मृतिकौस्तुभ (146)</ref>
 
 
 
 
  
 
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05:02, 11 सितम्बर 2010 का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • श्रावण के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा पर शिव ने तीन फलकों के एक बाण से हरिण का रूप धारण किये हुए यज्ञ के तीन मुखों को भेदा था।
  • कर्ता को मिट्टी से मृगशीर्ष की प्रतिमा बना कर तरकारियों एवं सरसों से युक्त आटे के विभिन्न नैवेद्य से पूजा करनी चाहिए।[1]; [2]

 


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 358-359)
  2. स्मृतिकौस्तुभ (146)

संबंधित लिंक

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