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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।
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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।  
*इस व्रत के विषय में विभिन्न मत हैं।
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*[[भाद्रपद]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[अष्टमी]] को जब सूर्य [[कन्या राशि]] में होता है, 'महालक्ष्मी' की पूजा का आरम्भ होता है, और जब सूर्य कन्या राशि के अर्ध भाग में होता है तो आगे की अष्टमी को समाप्ति होती है, इस प्रकार इस व्रत में 16 दिन लगते हैं।
*कृत्यसारसमुच्चय<ref>कृत्यसारसमुच्चय<, (पृ0 11)</ref> एवं अहल्याकामधेनु<ref>अहल्याकामधेनु, (535 बी-539 बी)</ref> के मत से-[[भाद्रपद]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[अष्टमी]] को आरम्भ तथा [[आषाढ़]] कृष्ण अष्टमी को समाप्त (पूर्णिमान्त गणना) होता है।
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*यदि सम्भव हो तो [[ज्येष्ठा नक्षत्र]] में चन्द्र की स्थिति में व्रत करना चाहिए।
*यह 16 दिनों तक चलती है।
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*16 वर्षों के लिए; नारियों एवं पुरुषों के लिए यहाँ 16 की संख्या (पुष्पों एवं फलों आदि के विषय में) महत्त्वपूर्ण है।  
*प्रतिदिन महालक्ष्मी पूजा तथा महालक्ष्मी के विषय की गाथाओं का श्रवण होता है।  
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*कर्ता को दाहिने हाथ में 16 धागों एवं 16 गांठों का एक डोरक बाँधना चाहिए।<ref> हेमाद्रि (व्रत0 2, 495-499</ref>
*निर्णयसिन्धु<ref>निर्णयसिन्धु, (पृ0 153-154)</ref> में भी यह अवधि दी हुई है, किन्तु पहली बार किये जाने पर पार दोषों से बचना होता है, यथा—अवमदिन न हो, तिथि त्रयःस्पृक् न हो, नवमी से युक्त न हो, सूर्य हस्त नक्षत्र के भाग में न हो।
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*ऐसी मान्यता है कि [[लक्ष्मी]] कर्ता को तीन जीवनों तक नहीं त्यागती है।<ref>निर्णयसिन्धु (153-154</ref>
*[[महाराष्ट्र]] में यह पूजा विवाहित स्त्रियों द्वारा आषाढ़ शुक्ल की नवमी को मध्याह्न में की जाती है और रात्रि में सभी विवाहित नारियाँ एक साथ पूजा करती हैं, खाली घड़ों को हाथ में रखती हैं, उनमें श्वास लेती हैं और अपने शरीर को भाँति-भाँति ढंगों से मोड़ती हैं।
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*वह दीर्घायु स्वास्थ्य आदि पाता है।<ref>स्मृतिकौस्तुभ (231-239</ref> <ref>पुरुषार्थचिन्तामणि (129-132</ref> <ref>व्रतराज(300-315</ref>
*पुरुषार्थचिन्तामणि<ref>पुरुषार्थचिन्तामणि, (129-132)</ref> में इसके विषय में एक लम्बा विवेचन है।
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*इसके मत से यह व्रत नारियों एवं पुरुषों दोनों का है।
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07:27, 27 जुलाई 2012 के समय का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को जब सूर्य कन्या राशि में होता है, 'महालक्ष्मी' की पूजा का आरम्भ होता है, और जब सूर्य कन्या राशि के अर्ध भाग में होता है तो आगे की अष्टमी को समाप्ति होती है, इस प्रकार इस व्रत में 16 दिन लगते हैं।
  • यदि सम्भव हो तो ज्येष्ठा नक्षत्र में चन्द्र की स्थिति में व्रत करना चाहिए।
  • 16 वर्षों के लिए; नारियों एवं पुरुषों के लिए यहाँ 16 की संख्या (पुष्पों एवं फलों आदि के विषय में) महत्त्वपूर्ण है।
  • कर्ता को दाहिने हाथ में 16 धागों एवं 16 गांठों का एक डोरक बाँधना चाहिए।[1]
  • ऐसी मान्यता है कि लक्ष्मी कर्ता को तीन जीवनों तक नहीं त्यागती है।[2]
  • वह दीर्घायु स्वास्थ्य आदि पाता है।[3] [4] [5]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रत0 2, 495-499
  2. निर्णयसिन्धु (153-154
  3. स्मृतिकौस्तुभ (231-239
  4. पुरुषार्थचिन्तामणि (129-132
  5. व्रतराज(300-315